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NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

by Sudhir
December 17, 2021
in Class 10th Solutions, 10th Hindi
Reading Time: 5 mins read
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NCERT Class 10th Hindi Solutions
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Table of Contents

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  • NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र
    • पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
      • मौखिक
      • लिखित
    • भाषा अध्ययन
    • योग्यता विस्तार
    • परियोजना कार्य
    • अन्य पाठेतर हल प्रश्न
      • लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
      • दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
  •  

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 13 तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए

प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को कौन-कौन से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है?
उत्तर

‘तीसरी कसम’ नामक फ़िल्म को निम्नलिखित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है|

  • राष्ट्रपति स्वर्णपदक
  • बंगला जर्नलिस्ट ऐसोसिएशन का सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार
  • मास्को फ़िल्म फेस्टिवल पुरस्कार।

प्रश्न 2.
शैलेंद्र ने कितनी फ़िल्में बनाई?
उत्तर

शैलेंद्र मूलतः गीतकार थे, फ़िल्म निर्माता नहीं। उन्होंने अपने जीवन में केवल एक ही फ़िल्म बनाई वह थी-तीसरी कसम।

प्रश्न 3.
राजकपूर द्वारा निर्देशित कुछ फ़िल्मों के नाम बताइए।
उत्तर
राजकपूर ने अनेक फ़िल्मों का निर्माण किया। जिसमें प्रमुख है-मेरा नाम जोकर, संगम, सत्यम् शिवम् सुंदरम्, अजंता, मैं और मेरा दोस्त, जागते रहो आदि।

प्रश्न 4.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक व नायिकाओं के नाम बताइए और फ़िल्म में इन्होंने किन पात्रों का अभिनय किया है?
उत्तर

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म के नायक थे-राजकपूर, जिन्होंने हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई। इस फ़िल्म की नायिका थी-वहीदा रहमान जिन्होंने नौटंकी वाली हीराबाई का चरित्र निभाया।

प्रश्न 5.
फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण किसने किया था?
उत्तर

फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण गीतकार व कवि शैलेंद्र ने किया था।

प्रश्न 6.
राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय किस बात की कल्पना भी नहीं की थी?
उत्तर

राजकपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ नामक फ़िल्म बनाते समय इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि इस फ़िल्म का एकभाग बनाने में ही छह साल का लंबा समय लग जाएगा।

प्रश्न 7.
राजकपूर की किस बात पर शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया?
उत्तर

‘तीसरी कसम’ की कहानी सुनने के बाद राजकपूर ने अपना पारिश्रमिक एडवांस माँगा। यह सुनकर शैलेंद्र का चेहरा उतर | गया। उनको राजकपूर से यह उम्मीद नहीं थी कि वे जिंदगी भर की दोस्ती का यह बदला देंगे।

प्रश्न 8.
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को किस तरह का कलाकार मानते थे?
उत्तर
फ़िल्म समीक्षक राजकपूर को उच्चकोटि का कलाकार मानते थे। उन्हें फ़िल्म जगत का अच्छा अनुभव था। वे अभिनय के सूक्ष्म भावों को आँखों से व्यक्त कर देते थे।

लिखित

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में ) लिखिए

प्रश्न 1.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को ‘सैल्यूलाइड पर लिखी कविता’ क्यों कहा गया है?
उत्तर

सैल्यूलाइड का अर्थ है-फ़िल्म को कैमरे की रील में उतारकर चित्र प्रस्तुत करना। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता इसलिए कहा गया है क्योंकि यह फ़िल्म कविता के समान कोमल भावनाओं से पूर्ण एक सार्थक फ़िल्म है। | इस फ़िल्म की मार्मिकता कविता के समान है। इस फ़िल्म को देखकर कविता जैसी अनुभूति होती है।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?
उत्तर

तीसरी फ़िल्म का निर्माण शैलेंद्र ने पैसा और यश कमाने के लिए न करके आत्मसंतुष्टि के लिए किया था। इसमें मूल साहित्य से न कोई छेड़-छाड़ की गई थी और न लोक-लुभावन मसालों का प्रयोग किया था। इसमें करुणा का भाव इस तरह भरा गया था कि भावनात्मक शोषण न हो। ऐसी साहित्यिक फ़िल्म को इसलिए खरीददार नहीं मिले।

प्रश्न 3.
शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य क्या है?
उत्तर

शैलेंद्र के अनुसार कलाकार का कर्तव्य है कि वह दर्शकों की रुचियों में परिष्कार करने का प्रयत्न करे। उनके मानसिक स्तर को ऊपर उठाए। वह लोगों में जागृति लाए और उनमें अच्छे-बुरे की समझ को विकसित करे। वह उपभोक्ता रुचियों में सुधार लाने का प्रयत्न करे, उन्हें ऊँचा उठाए।

प्रश्न 4.
फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरिफाई क्यों कर दिया जाता है?
उत्तर
फ़िल्मों में त्रासद स्थितियों का चित्रांकन ग्लोरीफाई इसलिए कर दिया जाता है ताकि दर्शक ऐसे दृश्यों को देखने के लिए सिनेमाहाल की ओर खिंचे चले आएँ और फ़िल्म निर्माता अधिकाधिक लाभ कमा सके।

प्रश्न 5.
“शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं-इस कथन से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

शैलेंद्र मूलतः एक कवि और गीतकार थे और राजकपूर की फ़िल्मों के लिए गीत लिखा करते थे। राजकपूर व शैलेंद्र अनन्य सहयोगी थे। उनमें गहन मित्रता थी। शैलेंद्र ने जब अपनी पहली फिल्म बनाने का निर्णय लिया तो उन्होंने राजकपूर को उसमें काम करने के लिए आमंत्रित किया। शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को शब्द दिए हैं, ऐसा इसलिए कहा जाता है कि इस फिल्म में शैलेंद्र ने बड़ी कुशलता व सौंदर्यपूर्ण ढंग से राजकपूर के भावों को अभिव्यक्ति प्रदान की है। कलो मर्मज्ञ राजकपूर को आँखों से बात करने वाला कलाकार मानते थे। राजकपूर फ़िल्मों के माध्यम से जो भी कहना चाहते थे उन सभी भावनाओं को शैलेंद्र संवाद व गीतों के माध्यम से प्रकट कर देते थे। राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व फ़िल्मों में निभाए गए पात्र में पूरी तरह समा जाते थे। फ़िल्म को देखकर कोई भी राजकपूर की भावनाओं को पढ़ सकता था।

प्रश्न 6.
लेखक ने राजकपूर को एशिया का सबसे बड़ा शोमैन कहा है। शोमैन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर
शोमैन से तात्पर्य है-अत्यंत प्रसिद्ध और आकर्षक व्यक्तित्व। राजकपूर अपनी अभिनय कला, गुण व्यक्तित्व आदि के कारण विख्यात एवं लोकप्रिय हो चुके थे। वे भारत में ही नहीं अपितु बाहर के दर्शकों के बीच भी खूब लोकप्रिय थे।

प्रश्न 7.
फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति क्यों की?

उत्तर
फ़िल्म ‘श्री 420′ के गीत ‘रातों दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पर संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति की क्योंकि उनका मानना था कि दर्शक चार दिशाएँ तो समझते हैं लेकिन दस दिशाओं का गहन ज्ञान दर्शकों को नहीं होता। उनके अनुसार साहित्यिक व्यक्तियों व जन सामान्य की सोच में अंतर होता है। कहानी या गीत लिखते समय उसका दर्शकों के साथ तालमेल होना जरूरी है ताकि वे दर्शकों की भावनाओं को छू सके। शैलेंद्र इस परिवर्तन के लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि वे दर्शकों की रुचि की आड़ में उन पर उथलापन थोपना नहीं चाहते थे।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए

प्रश्न 1.
राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह करने पर भी शैलेंद्र ने यह फ़िल्म क्यों बनाई?
उत्तर

राजकपूर फ़िल्म जगत में एक उच्चकोटि के फिल्म निर्माता व निदेशक थे। वे जानते थे कि शैलेंद्र फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में अनुभवहीन हैं। उन्होंने एक सच्चे मित्र व हितैषी के रूप में शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह कर दिया था, परंतु शैलेंद्र ने फ़िल्म की असफलता के खतरों से परिचित होने पर भी फ़िल्म इसलिए बनाई क्योंकि उनके मन में इस कलात्मक फ़िल्म को बनाने की तीव्र लालसा थी। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। वे फ़िल्म में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करना चाहते थे। उन्हें अपार धन-दौलत व यश की कामना नहीं थी वे केवल अपनी आत्मा की संतुष्टि चाहते थे। ऐसा नहीं था कि शैलेंद्र फ़िल्म उद्योग के नियम-कानून नहीं जानते थे परंतु वे उन नियमों से बँधकर अपने अंदर के कलाकार को नष्ट नहीं करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
‘तीसरी कसम’ में राजकपूर का महिमामय व्यक्तित्व किस तरह हीरामन की आत्मा में उतर गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में अभिनेता हैं राजकपूर, जिन्होंने हीरामन नामक गाड़ीवान की भूमिका निभाई जो भुच्च देहाती है। जिस समय राजकपूर यह भूमिका निभा रहे थे उस समय तक वे ख्याति प्राप्त अभिनेता के रूप में जाने पहचाने जाते थे पर राजकपूर ने इतना सशक्त अभिनय किया कि लगता था जैसे राजकपूर स्वयं हीरामन हो। इसके अलावा वे हीराबाई नामक पात्र पर पूरी तरह रीझ जाते हैं। इस तरह उनका महिमामय व्यक्तित्व हीरामन की आत्मा में उतर जाता है।

प्रश्न 3.
लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम’ ने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है?
उत्तर
‘तीसरी कसम’ फ़िल्म साहित्यिक रचना पर आधारित थी। इस फ़िल्म से पहले भी साहित्यिक रचनाओं पर आधारित फ़िल्में बनती रहती थीं। उन फ़िल्मों में साहित्यिक रचना की मूल कथा में कुछ काल्पनिक तत्त्वों का समावेश करके उसे मनोरंजक बनाया जाता था। उन फिल्मों का उद्देश्य दर्शकों की रुचि के अनुरूप सामग्री डालकर धन कमाना होता था किंतु ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में ऐसा नहीं था। इस फ़िल्म में मूल साहित्यिक रचना को उसी रूप में प्रस्तुत किया गया। उसमें दर्शकों के लिए किसी प्रकार के काल्पनिक व मनोरंजक तत्वों को नहीं डाला गया जिससे उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ न हो सके। शैलेंद्र तथा अन्य सभी कलाकारों ने अपनी प्रतिभा के माध्यम से इस रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है तथा कथा की भावनात्मकता तथा आत्मा को संर्पूणता के साथ प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 4.
शैलेंद्र के गीतों की क्या विशेषताएँ हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर

शैलेंद्र गीतकार होने के साथ ही कवि हृदय भी रखते थे, जिससे उनके गीतों में भाव प्रवणता होती थी। उनके गीतों में संवेदना तो होती थी पर दुरूहता नहीं होती थी। उनके गीतों में लोकजीवन तत्व मौजूद होता था जिससे उनके गीतों को अधिकांश लोग पसंद करते थे। इसके अलावा वे अपने गीत केवल अभिजात्य वर्ग के लिए ही नहीं लिखते थे बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए लिखते थे। उनके गीतों में बसी करुणा में भी प्रेरणा होती है जो उत्साहित करती है।

प्रश्न 5.
फ़िल्म निर्माता के रूप में शैलेंद्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर

फिल्म निर्माता के रूप में तीसरी कसम’ शैलेंद्र की पहली और अंतिम फ़िल्म थी। उन्होंने इस फ़िल्म का निर्माण पैसा कमाने के उद्देश्य से नहीं किया था। वे एक आदर्शवादी भावुक कवि थे। उन्होंने तो आत्म-संतुष्टि के लिए फ़िल्म बनाई थी। शैलेंद्र फ़िल्म की असफलता से होनेवाले खतरों से परिचित थे। फिर भी उन्होंने शुद्ध साहित्यिक फ़िल्म बनाकर साहसी फ़िल्म निर्माता होने का परिचय दिया। शैलेंद्र एक मानवतावादी फ़िल्म निर्माता थे। उन्होंने फ़िल्म उद्योग में रहते हुए भी अपनी आदमियत नहीं खोई थी। शैलेंद्र ने तीसरी कसम फ़िल्म का निर्माण पूरी तरह साहित्यिक रचना के अनुसार करके उसके साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। वे चाहते तो इसमें फेर-बदल करके उसे अधिक मनोरंजक बना सकते थे। उन्होंने फ़िल्म के असफल होने के डर से घबराकर सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं किया। इस प्रकार वे एक आदर्श फिल्म निर्माता के रूप में सामने आए।

प्रश्न 6.
शैलेंद्र के निजी जीवन की छाप उनकी फ़िल्म में झलकती है-कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

गीतकार शैलेंद्र अपने जीवन में गंभीर और शांत व्यक्तित्व रहे हैं। वे अपने गीतों में श्रोताओं की रुचि को ध्यान में रखकर गीत नहीं लिखते थे। वे श्रोताओं की रुचि का परिष्कार करने के पक्षधर थे। उन्हें धन और यश लिप्सा की नहीं बल्कि आत्म संतुष्टि की चाह थी। उनके जीवन की यही छाप उनके द्वारा बनाई गई फ़िल्म तीसरी कसम में भी झलकती है। उन्होंने व्यावसायिकता से दूर रहकर यह फ़िल्म बनाई है।

प्रश्न 7.
लेखक के इस कथन से कि ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था, आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

लेखक के इस कथन से हम पूर्णतः सहमत हैं कि तीसरी कसम फ़िल्म को कोई कवि हृदय ही बना सकता है। एक कवि का हृदय शांत, भावुक व संवेदनशील होता है इसलिए संवेदना की गहराइयों से पूर्ण भावुकता को स्वयं में समेटे तीसरी कसम एक कवि हृदय द्वारा निर्मित फ़िल्म थी। जिसे न तो धन का लोभ था और न ही दर्शकों की भीड़ की चाह थी, उन्हें केवल आत्मसंतुष्टि की अभिलाषा थी। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में नायक और नायिका के मनोभावों को प्रस्तुत करने के लिए एक कवि-हृदय की ही आवश्यकता थी। शैलेंद्र उन कोमल अनुभूतियों को बारीकी से समझते थे और उन्हें प्रस्तुत करने में सक्षम थे। फ़िल्म को देखकर ऐसा लगता है मानो ये साहित्य की मार्मिक कृति है जिसे कलाकारों ने पूरी ईमानदारी व मनोयोग से परदे पर उतारा है। ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म में शैलेंद्र ने व्यवसायिक खतरों को उठाया। उसमें गहरी कलात्मकता को पिरो दिया। उसमें उन्होंने करुणा और संघर्षशीलता को स्थान दिया। उन्होंने अपने पात्रों से आँखों की भाषा में अभिव्यक्ति कराई। इस । फ़िल्म में कोमल भावनाओं की प्रधानता होने के कारण ही लेखक ने कहा है कि इसे कोई सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
… वह तो एक आदर्शवादी भावुक कवि था, जिसे अपार संपत्ति और यश तक की इतनी कामना नहीं थी जितनी आत्मसंतुष्टि के सुख की अभिलाषा थी।
उत्तर

शैलेंद्र सच्चे अर्थों में कलाकार थे। वे एक आदर्शवादी, भावुक कवि हृदय थे। उन्होंने भावनाओं, संवेदनाओं और साहित्य की विधाओं के आधार पर तीसरी कसम फ़िल्म का निर्माण किया था। राजकपूर द्वारा फ़िल्म की असफलताओं से आगाह किए जाने पर भी उन्होंने फ़िल्म का निर्माण किया क्योंकि उन्हें अपार संपत्ति और लोकप्रियता की इतनी कामना नहीं थी। जितनी आत्मसंतुष्टि व मानसिक शांति की थी। जीवन-मूल्यों में विश्वास रखनेवाले कवि शैलेंद्र ने तीसरी कसम जैसी फ़िल्म का निर्माण आत्मसुख के लिए किंया था जिसमें वे सफल रहे थे।

प्रश्न 2.
उनका यह दृढ़ मंतव्य था कि दर्शकों की रुचि की आड़ में हमें उथलेपन को उन पर नहीं थोपना चाहिए। कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह उपभोक्ता की रुचियों का परिष्कार करने का प्रयल करें।
उत्तर

प्रायः देखा जाता है कि अपने गानों को लोकप्रिय बनाने और व्यावसायिकता से प्रभावित होने के कारण गीतकार श्रोताओं के सामने ऐसे गीत परोसते हैं जिनमें उथलापन होता है। इससे दर्शक और श्रोता की रुचि बुरी तरह प्रभावित होती है, पर शैलेंद्र दर्शकों की रुचि के आड़ में उथलापन परोसने से बचना चाहते थे। इसके विपरीत वे दर्शकों के समक्ष कुछ ऐसा रखना चाहते थे जिससे उनकी रुचि में परिष्कार हो।

प्रश्न 3.
व्यथा आदमी को पराजित नहीं करती, उसे आगे बढ़ने का संदेश देती है।
उत्तर

लेखक के अनुसार हमारी जिंदगी में दुख तकलीफें तो आती ही रहती हैं परंतु हमें उन दुखों से हार नहीं मानना चाहिए। जीवन की कठिनाइयों का साहसपूर्वक सामना करके उन पर काबू पाना चाहिए। यदि व्यथा या करुणा को सकारात्मक ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो वह मनुष्य को परास्त या निराश नहीं करती। वह मनुष्य को आगे-ही-आगे कुछ कर गुजरने की प्रेरणा देती है। शैलेंद्र के गीतों के माध्यम से यह सीख मिलती है कि हमें दुख की घड़ी में भी निराशा का दामन छोड़कर आशावादी बनना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ना चाहिए।

प्रश्न 4.
दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने वाले की समझ से परे है।
उत्तर

‘तीसरी कसम’ फ़िल्म का निर्माण धन या यश कमाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। इसे व्यावसायिकता से मुक्त रखा गया था। इसमें संवेदनशीलता, भावप्रवणता, साहित्यिक गहराई थी जिसे पैसे से पैसा बनाने वाले लोग नहीं समझ सकते थे। वे तो चमक-दमक वाली मसाले और लटके-झटके से युक्त कमाई वाली फ़िल्मों को ही श्रेष्ठ समझते हैं।

प्रश्न 5.
उनके गीत भाव-प्रवण थे-दुरूह नहीं।
उत्तर

शैलेंद्र एक संवेदनशील और आदर्शवादी कवि थे। उनके गीत बहुत गहरे और भावनापूर्ण होते थे परंतु उनमें कठिनता नहीं होती थी। वे बिलकुल सहज-सरल और प्रवाहपूर्ण होते थे। वे गीत भावों और विचारों की गहराई लिए हुए समाज को संदेश देने वाले होते थे। अर्थात् शैलेंद्र के गीतों में भावनाओं की अधिकता थी लेकिन उन भावनाओं को व्यक्त करने वाली भाषा बेहद सरल व आम बोलचाल की भाषा थी।

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
पाठ में आए ‘से’ के विभिन्न प्रयोगों से वाक्य की संरचना को समझिए।
(क) राजकपूर ने एक अच्छे और सच्चे मित्र की हैसियत से शैलेंद्र को फ़िल्म की असफलता के खतरों से आगाह भी किया।
(ख) रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ।।
(ग) फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ थे।
(घ) दरअसल इस फ़िल्म की संवेदना किसी दो से चार बनाने के गणित जाननेवाले की समझ से परे थी।
(ङ) शैलेंद्र राजकपूर की इस याराना दोस्ती से परिचित तो थे।
उत्तर

स्वयं करें

प्रश्न 2.
इस पाठ में आए निम्नलिखित वाक्यों की संरचना पर ध्यान दीजिए
(क) “तीसरी कसम’ फ़िल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।
(ख) उन्होंने ऐसी फ़िल्म बनाई थी जिसे सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था।
(ग) फ़िल्म कब आई, कब चली गई, मालूम ही नहीं पड़ा।
(घ) खालिस देहाती भुच्च गाड़ीवान जो सिर्फ दिल की जुबान समझता है, दिमाग की नहीं।
उत्तर

स्वयं करें।

प्रश्न 3.
पाठ में आए निम्नलिखित मुहावरों से वाक्य बनाइए
चेहरा मुरझाना, चक्कर खा जाना, दो से चार बनाना, आँखों से बोलना।
उत्तर

चेहरा मुरझाना-जैसे ही उसने लॉटरी का परिणाम समाचार पत्र में देखा उसका चेहरा मुरझा गया।
चक्कर खा जाना-दसवीं परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने का समाचार सुनकर वह चक्कर खा गई।
दो से चार बनाना-आजकल क्रिकेट के खेल में खिलाड़ियों से अधिक सट्टेबाज रुचि लेते हैं जिनका काम दो से चार बनाना है।
आँखों से बोलना-तीसरी कसम में अभिनेत्री वहीदा रहमान अपने प्रेम को शब्दों से नहीं आँखों से बोलकर प्रकट करती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के हिंदी पर्याय दीजिए-

1. शिद्दत – …….
2. याराना – ……….
3. बमुश्किल – ………
4. खालिस – ………..
5. नावाकिफ़ – ……..
6. यकीन – …………
7. हावी – …………
8. रेशा – ……….

उत्तर-
1. शिद्दत – श्रद्धा
2. याराना – मित्रता
3. बमुश्किल – कठिनाई से
4. खालिस – शुद्ध
5. नावाकिफ़ – अनभिज्ञ
6. यकीन – विश्वास
7. हावी – आक्रामक
8. रेशा – पतले-पतले धागे

प्रश्न 5. निम्नलिखित संधि विच्छेद कीजिए-

चित्रांकन – ……… + ………
सर्वोत्कृष्ट – ………. + ………..
चर्मोत्कर्ष – ………… + ………….
रूपांतरण – ……….. + ………….
घनानंद – ………… + …………..

उत्तर-
चित्रांकन – चित्र + अंकन
सर्वोत्कृष्ट – सर्व + उत्कर्ष
चर्मोत्कर्ष – चर्म + उत्कर्ष
रूपांतरण – रूप + अंतरण
घनानंद – घन + आनंद

प्रश्न 6. निम्नलिखित का समास विग्रह कीजिए और समास का नाम भी लिखिए-
(क) कला-मर्मज्ञ
(ख) लोकप्रिय
(ग) राष्ट्रपति

उत्तर- * विग्रह * समास का नाम
(क) कला-मर्मज्ञ कला का मर्मज्ञ . संबंध तत्पुरुष
समास

(ख) लोकप्रिय लोक में प्रिय . अधिकरण
तत्पुरुष समास

(ग) राष्ट्रपति राष्ट्र का पति . संबंध तत्पुरुष
समास

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.फणीश्वरनाथ रेणु की किस कहानी पर ‘तीसरी कसम’ फ़िल्म आधारित है, जानकारी प्राप्त कीजिए और मूल रचना पढ़िए।

उत्तर- छात्र स्वयं पढ़ें।


प्रश्न 2. समाचार पत्रों में फ़िल्मों की समीक्षा दी जाती है। किन्हीं तीन फ़िल्मों की समीक्षा पढ़िए और तीसरी कसम’ फ़िल्म को देखकर इस फ़िल्म की समीक्षा स्वयं लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर- छात्र स्वयं पढ़ें।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. फ़िल्मों के संदर्भ में आपने अकसर यह सुना होगा-‘जो बात पहले की फ़िल्मों में थी, वह अब कहाँ’। वतर्ममान दौर की फ़िल्मों और पहले की फ़िल्मों में क्या समानता और अंतर है? कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3. लोकगीत हमें अपनी संस्कृति से जोड़ते हैं। तीसरी कसम’ फ़िल्म में लोकगीतों का प्रयोग किया गया है। आप भी अपने क्षेत्र के प्रचलित दो-तीन लोकगीतों को एकत्र कर परियोजना कॉपी पर लिखिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. संगम की सफलता से उत्साहित राजकपूर ने कन-सा कदम उठाया?

उत्तर- राजकपूर को संगम फ़िल्म से अद्भुत सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में थीं-अजंता, मेरा नाम जोकर, मैं और मेरा दोस्त, सत्यम् शिवम् सुंदरम्।


प्रश्न 2. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ अपनी मित्रता ? निर्वाह कैसे किया?

उत्तर- राजकपूर ने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में पूरी तन्मयता से काम किया। इस काम के बदले उन्होंने किसी प्रकार के पारिश्रमिक की अपेक्षा नहीं की। उन्होंने मात्र एक रुपया एडवांस लेकर काम किया और मित्रता का निर्वाह किया।


प्रश्न 3. एक निर्माता के रूप में बड़े व्यावसायिक सा- युवा भी चकर क्यों खा जाते हैं?

उत्तर- एक निर्माता जब फ़िल्म बनाता है तो उसका लक्ष्य होता है फ़िल्म अधिकाधिक लोगों को पसंद आए और लोग उसे बार बार देखें, तभी उसे अच्छी आय होगी। इसके लिए वे हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं फिर भी फ़िल्म नहीं चलती और वे चक्कर खा जाते हैं।


प्रश्न 4. राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ किस तरह यारउन्ना मस्ती की ?

उत्तर- गीतकार शैलेंद्र जब अपने मित्र राजकपूर के पास फ़िल्म में काम करने का अनुरोध करने गए तो राजकपूर ने हाँ कह दिया, परंतु साथ ही यह भी कह दिया कि ‘निकालो मेरा पूरा एडवांस।’ फिर उन्होंने हँसते हुए एक रुपया एडवांस माँगा। एडवांस माँग कर राजकपूर ने शैलेंद्र के साथ याराना मस्ती की।

प्रश्न 5. शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए दवा किया?

उत्तर- शैलेंद्र ने अच्छी फ़िल्म बनाने के लिए राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे श्रेष्ठ कलाकारों को लिया। इसके अलावा उन्होंने फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ की मार्मिक कृति ‘तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम’ की कहानी को पटकथा बनाकर सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा।

प्रश्न 6. ‘तीसरी कसम’ जैसी फ़िल्म बनाने के पीछे शैलेंद्र की मंशा क्या थी?

उत्तर- शैलेंद्र कवि हृदय रखने वाले गीतकार थे। तीसरी कसम बनाने के पीछे उनकी मंशा यश या धनलिप्सा न थी। आत्म संतुष्टि के लिए ही उन्होंने फ़िल्म बनाई।

प्रश्न 7. शैलेंद्र द्वारा बनाई गई फ़िल्म चल रहीं, इसके कारण क्या थे?

उत्तर- तीसरी कसम संवेदनापूर्ण भाव-प्रणव फ़िल्म थी। संवेदना और भावों की यह समझ पैसा कमाने वालों की समझ से बाहर होती है। ऐसे लोगों का उद्देश्य अधिकाधिक लाभ कमाना होता है। तीसरी कसम फ़िल्म में रची-बसी करुणा अनुभूति की। चीज़ थी। ऐसी फ़िल्म के खरीददार और वितरक कम मिलने से यह फ़िल्म चले न सकी।

 
प्रश्न 8. ‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी नयाँ’ इस पंक्ति के रेखांकित अंश पर किसे आपत्ति थी और क्यों ?

उत्तर- रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’ पंक्ति के दसों दिशाओं पर संगीतकार शंकर जयकिशन को आपत्ति थी। उनका मानना था कि जन साधारण तो चार दिशाएँ ही जानता-समझता है, दस दिशाएँ नहीं। इसका असर फ़िल्म और गीत की लोकप्रियता पर पड़ने की आशंका से उन्होंने ऐसा किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- जिस समय फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए राजकपूर ने काम करने के लिए हामी भरी वे अभिनय के लिए प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय हो गए थे। इस फ़िल्म में राजकपूर ने ‘हीरामन’ नामक देहाती गाड़ीवान की भूमिका निभाई थी। फ़िल्म में राजकपूर का अभिनय इतना सशक्त था कि हीरामन में कहीं भी राजकपूर नज़र नहीं आए। इसी प्रकार छींट की सस्ती साड़ी में लिपटी हीराबाई’ का किरदार निभा रही वहीदा रहमान का अभिनय भी लाजवाब था जो हीरामन की बातों का जवाब जुबान से । नहीं आँखों से देकर वह सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की जिसे शब्द नहीं कह सकते थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ में राजकपूर और वहीदा रहमान का अभिनय लाजवाब था।


प्रश्न 2. हिंदी फ़िल्म जगत में एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म बनाना कठिन और जोखिम का काम है।’ स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- हिंदी फ़िल्म जगत की एक सार्थक और उद्देश्यपरक फ़िल्म है तीसरी कसम, जिसका निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र ने किया। इस फ़िल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे प्रसिद्ध सितारों का सशक्त अभिनय था। अपने जमाने के मशहूर संगीतकार शंकर जयकिशन का संगीत था जिनकी लोकप्रियता उस समय सातवें आसमान पर थी। फ़िल्म के प्रदर्शन के पहले ही इसके सभी गीत लोकप्रिय हो चुके थे। इसके बाद भी इस महान फ़िल्म को कोई न तो खरीदने वाला था और न इसके वितरक मिले। यह फ़िल्म कब आई और कब चली गई मालूम ही न पड़ा, इसलिए ऐसी फ़िल्में बनाना जोखिमपूर्ण काम है।

प्रश्न 3. ‘राजकपूर जिन्हें समीक्षक और कलामर्मज्ञ आँखों से बात करने वाला मानते हैं’ के आधार पर राजकपूर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- राजकपूर हिंदी फ़िल्म जगत के सशक्त अभिनेता थे। अभिनय की दुनिया में आने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे उत्तरोत्तर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते गए और अपने अभिनय से नित नई ऊचाईयाँ छूते रहे। संगम फ़िल्म की अद्भुत सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने एक साथ चार फ़िल्मों के निर्माण की घोषणा की। ये फ़िल्में सफल भी रही। इसी बीच राजकपूर अभिनीत फ़िल्म ‘तीसरी कसम’ के बाद उन्हें एशिया के शोमैन के रूप में जाना जाने लगा। इनका अपना व्यक्तित्व लोगों के लिए किंवदंती बन चुका था। वे आँखों से बात करने वाले कलाकार जो हर भूमिका में जान फेंक देते थे। वे अपने रोल में इतना खो जाते थे कि उनमें राजकपूर कहीं नज़र नहीं आता था। वे सच्चे इंसान और मित्र भी थे, जिन्होंने अपने मित्र शैलेंद्र की फ़िल्म में मात्र एक रुपया पारिश्रमिक लेकर काम किया और मित्रता का आदर्श प्रस्तुत किया।

 

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