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Home Class 10th Solutions 10th Hindi

NCERT Class 10 Hindi Solutions Kshitij – Chapter 11 बालगोबिन भगत

by Sudhir
November 6, 2021
in 10th Hindi, Class 10th Solutions
Reading Time: 2 mins read
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NCERT Class 10th Hindi Solutions
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NCERT Class 10 Hindi Solutions Kshitij – Chapter 11 बालगोबिन भगत

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Class 10 Hindi Solutions Kshitij – Chapter 11 बालगोबिन भगत.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? [A.I. CBSE 2008; 2008 C; CBSE 2010; CBSE]
अथवा
‘बालगोबिन भगत सच्चे साधु थे’ के संदर्भ में उनके चरित्र पर प्रकाश डालिए। [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत खेतीबारी करने वाले गृहस्थ थे। फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। सबसे पहली बात यह थी कि वे अपना जीवन ‘साहब’ को समर्पित किए हुए थे। वे स्वयं को भगवान का बंदा मानते थे। वे अपनी कमाई पर भी पहले भगवान का हक मानते थे। इसलिए फसलों को पहले साहब के दरबार में अर्थात् कबीरपंथी मठ में ले जाते थे। वहाँ से जो प्रसाद रूप में वापस मिलता था, उसी में अपना गुजारा करते थे। वे अपने जीवन को भी भगवान की देन मानते थे। इसलिए वे मृत्यु को दुख नहीं बल्कि उत्सव मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाया।
भगत जी कभी किसी के साथ झूठ नहीं बोलते थे, झगड़ा नहीं करते थे। किसी की कोई चीज नहीं लेते थे। यहाँ तक कि किसी के खेत में शौच तक होने नहीं जाते थे। यह साधु होने के ही लक्षण हैं। वे अपना तन-मन प्रभु-भक्ति और भक्ति-गीत गाने में लगाया करते थे।

प्रश्न 2.
भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? । [CBSE; CBSE 2010]
उत्तर:
भगत की पुत्रवधू जानती थी कि भगत जी संसार में अकेले हैं। उनका एकमात्र पुत्र मर चुका है। वे बूढे हैं और भक्त हैं। उन्हें घर-बार और संसार में कोई रुचि नहीं है। अतः वे अपने खाने-पीने और स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान नहीं दे पाएँगे। इसलिए पुत्रवधू सेवा-भाव से उनके चरणों की छाया में अपने दिन बिताना चाहती थी। वह उनके लिए भोजन और दवा-दारू का प्रबंध करना चाहती थी।

प्रश्न 3.
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस तरह व्यक्त कीं? [CBSE]
उत्तर:
भगत ने अपने बेटे की मृत्यु को ईश्वर की इच्छा कहकर उसका सम्मान किया। उन्होंने उस मृत्यु को आत्मा-परमात्मा का शुभ मिलन माना। इसलिए उसे उत्सव की तरह मनाया। उन्होंने पुत्र के शव को सफेद वस्त्र से ढंककर उसे फूलों से सजाया। उसके सिरहाने दीपक रखा। फिर वे उसके सामने प्रभु-भक्ति के गीत गाने लगे। वे बँजड़ी की ताल पर तल्लीन होकर गाते चले गए। उन्होंने विलाप करती हुई पतोहू को भी उत्सव मनाने के लिए कहा।

प्रश्न 4.
भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए। [Imp.][केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत की संक्षिप्त पहचान लिखिए। [CBSE]
उत्तर:
भगत जी गृहस्थ होते हुए भी सीधे-सरल भगत साधु थे। उनकी आयु साठ वर्ष से कुछ ऊपर थी। वे मॅझोले कद के गोरे-चिट्टे आदमी थे। उनके बाल सफेद हो गए थे। उनका चेहरा सदा सफेद बालों के कारण जगमगाता रहता था। हाँ, वे लंबी दाढी या जटाएँ नहीं रखते थे। वे कपड़े भी बहुत कम पहनते थे। वे प्रायः कमर में एक लंगोटी-सी पहने रहते थे और सिर पर कबीरपंथियों की भाँति एक कनफटी टोपी पहने रहते थे। सर्दियों में वे काला कंबल ओढ़े रहते थे। उनके माथे पर सदा एक रामानंदी चंदन सुशोभित रहता था जो नाक के एक किनारे से शुरू होता था। उनके गले में तुलसी की माला बँधी रहती थी।
भगत जी का व्यक्तित्व गायक भक्तों जैसा था। वे सदा खैजड़ी की लय पर प्रभु-भक्ति के गाने गाते रहते थे। उनकी तल्लीनता सुनने वालों को बरबस अपनी ओर खींच लेती थी।

प्रश्न 5.
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी? [Imp.][CBSE]
अथवा
बालगोबिन के किन गुणों के कारण लोगों को कुतूहल होता था? [CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों को हैरान कर देती थी। वे भगत जी की सरलता, सादगी और निस्वार्थता पर हैरान होते थे। भगत जी भूलकर भी किसी से कुछ नहीं लेते थे। वे बिना पूछे किसी की चीज छूते भी नहीं थे। यहाँ तक कि किसी दूसरे के खेत में शौच भी नहीं करते थे। लोग उनके इस खरे व्यवहार पर मुग्ध थे।
लोग भगत जी पर तब और भी आश्चर्य करते थे जब वे भोरकाल में उठकर दो मील दूर स्थित नदी में स्नान कर आते थे। वापसी पर वे गाँव के बाहर स्थित पोखर के किनारे प्रभु-भक्ति के गीत टेरा करते थे। उनके इन प्रभाती-गानों को सुनकर लोग सचमुच हैरान रह जाते थे।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए। [CBSE]
अथवा
बालगोबिन भगत का संगीत किस प्रकार लोगों के सिर पर चढ़कर बोलता था?[CBSE]
उत्तर:
बालगोबिन भगत प्रभु-भक्ति के मस्ती-भरे गीत गाया करते थे। उनके गानों में सच्ची टेर होती थी। उनका स्वर इतना मोहक, ऊँचा और आरोही होता था कि सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे। औरतें उस गीत को गुनगुनाने लगती थीं। खेतों में काम करने वाले किसानों के हाथ और पाँव एक विशेष लय में चलने लगते थे। उनके संगीत में जादुई प्रभाव था। वह मनमोहक प्रभाव सारे वातावरण पर छा जाता था। यहाँ तक कि घनघोर सर्दी और गर्मियों की उमस भी उन्हें डिगा नहीं पाती थी।

प्रश्न 7.
कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि बालगोबिन भगत का अंतर्मन ही उन्हें आदेश देता था। वे समाज की मान्यताओं पर विश्वास नहीं करते थे। समाज की मान्यता है कि पति की चिता को पत्नी आग नहीं दे सकती। पत्नी को चाहिए कि वह पति की मृत्यु के बाद विधवा बनकर सास-ससुर की सेवा में दिन बिताए। बालगोबिन ने इन दोनों मान्यताओं के विरुद्ध व्यवहार किया। उन्होंने अपने बेटे की चिता को पतोहू के हाथों से ही आग दिलवाई। उसके बाद उन्होंने पतोहू को दूसरे विवाह के लिए स्वयं उसके भाइयों के साथ वापस भेज दिया।
बालगोबिन भगत ने समाज की देखादेखी पुत्र की मृत्यु पर शोक भी नहीं मनाया। उन्होंने पुत्र की मृत्यु को परमात्मा से मिलन का उत्सव माना। इसलिए वे शोक मनाने की बजाय प्रभु-भक्ति के गीतों में तल्लीन हो गए। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी शोक न मनाने की सलाह दी।

प्रश्न 8.
धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर लहरियाँ किस तरह चमत्कृत कर देती थीं? उस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
खेतों में धान की रोपाई चल रही थी। बालगोबिन भगत भी एक-एक उँगुली से धान के पौधों को पंक्तिबद्ध करके रोप रहे थे। तभी उन्होंने मस्ती भरी तान छेड़ी। उनके गीत का स्वर इतना मनमोहक, ऊँचा और आरोही था कि वह सीधे आकाश में स्थित परमात्मा को टेरता प्रतीत होता था। उसे सुनकर खेतों में उछल-कूद मचाते बच्चों में एक मस्ती आ गई। मेड़ों पर बैठी औरतों के ओंठ गाने के लिए बेचैन हो उठे। किसानों की उँगलियों में भी एक क्रमिक लय आ गई। हल चलाने वाले किसानों के पैर संगीत की थाप पर चलने लगे। इस प्रकार उनके संगीत का जादू सारे वातावरण पर छा गया।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
पाठ के आधार पर बताएँ कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हुई है? [CBSE 2008, 2010]
उत्तर:
बालगोबिन भगत कबीर के प्रति असीम श्रद्धा रखते थे। उन्होंने अपनी श्रद्धा को निम्न रूपों में व्यक्त किया• उन्होंने स्वयं को कबीर-पंथ के प्रति समर्पित कर दिया। वे अपना जीवन कबीर के आदेशों पर चलाते थे।
कबीर ने गृहस्थी करते हुए संसार के आकर्षणों से दूर रहने की सलाह दी थी। बालगोबिन भगत ने भी यही किया। उन्होंने खेतीबारी करते हुए कभी लोभ-लालच, स्वार्थ या आडंबर-भरा जीवन नहीं जिया। जैसे कबीर अपने व्यवहार में खरे थे, उसी प्रकार बालगोबिन भगत भी व्यवहार में खरे रहे। • भगत जी ने अपनी फसलों को भी ईश्वर की संपत्ति माना। वे फसलों को कबीरमठ में अर्पित करके प्रसाद रूप में पाई फसलों का भोग करते थे। कबीर ने नर-नारी की समानता पर बल दिया। बाहरी आडंबरों पर चोट की। बालगोबिन भगत ने भी कबीर के आदेशानुसार अपनी आत्मा की आवाज़ पर व्यवहार किया। उन्होंने वही किया, जो उन्हें उचित और हितकारी लगा। • कबीर मनुष्य-शरीर को नश्वर मानते थे। वे जीवन को प्रभु-भक्ति में लगाने की सीख देते थे। बालगोबिन भगत ने उनके इन आदेशों को पूरी तरह माना। उन्होंने अपने पुत्र की मृत्यु को भी उत्सव में बदल दिया। वे अंत तक मस्ती-भरे गीत गाते रहे।

प्रश्न 10.
आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे? [CBSE]
उत्तर:
मेरी दृष्टि में भगत सच्चे सरल-हृदय किसान थे। वे कबीर की भक्ति से प्रभावित हुए होंगे। उन्हें कबीर की साफ़ आवाज़ में सच्चाई नज़र आई होगी। यह सच्चाई उनके सच्चे हृदय में पैठ गई होगी। उन्होंने तब से अपनी आत्मा को कबीर के चरणों में झुका दिया होगा। उन्होंने कबीर को अपना गुरु मान लिया होगा तथा अपने जीवन को उन्हीं के अनुसार ढाल दिया होगा।

प्रश्न 11.
गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?
उत्तर:
भारत कृषि प्रधान देश है। यहाँ के गाँव कृषि पर आधारित हैं। कृषि वर्षा पर आधारित है। वर्षा आषाढ़ मास में शुरू होती है। इसलिए आषाढ़ मास में गाँववासी बहुत प्रसन्न नज़र आते हैं। वे साल-भर आषाढ़ मास की प्रतीक्षा करते हैं ताकि खेतों में धान रोप सकें। उन दिनों बच्चे भी खेतों की गीली मिट्टी में लथपथ होकर आनंद-क्रीड़ा करते हैं। औरतें नाश्ता परोसकर किसानों का भरपूर सहयोग करती हैं। किसान हल जोतते हैं तथा दिन-भरं बुवाई करते हैं। वे सभी फसलों की आशा में उल्लास से भरे जाते हैं। इन्हीं दिनों गाँव का सामाजिक वातावरण सांस्कृतिक रंगों से ओतप्रोत हो उठता है।

प्रश्न 12.
ऊपर की तसवीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।”क्या ‘साधु’ की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति ‘साधु’ है?
उत्तर:
साधु की पहचान उसके पहनावे से भी होती है। साधु व्यक्ति अगर संसारी आकर्षणों से बँधा नहीं है तो वह सुंदर पहनावे की ओर ध्यान नहीं देता। वह कम-से-कम कपड़े पहनता है। प्रायः वह धोती, कंबल जैसे बिना सिले कपड़े पहनता है और सादगी से रहता है। परंतु साधु की सच्ची पहचान ये कपड़े नहीं हैं। बहुत से ढोंगी लोग साधुओं का वेश धारण करके संसार के सुखों का भोग करते हैं।
| मेरे विचार से साधु की सच्ची पहचान उसके व्यवहार से होती है। सच्चा साधु अपना ध्यान संसार की ओर नहीं, प्रभु-भक्ति की ओर लगाता है। वह व्यवहार में सच्चा, सादा, आडंबरहीन, खरा और साफ़ रहता है। वह किसी से झगड़ा मोल नहीं लेता। कभी किसी का अधिकार नहीं छीनता। वह अपनी कमाई को भी प्रभु-चरणों में अर्पित कर देता है।

प्रश्न 13.
मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे? [Imp.] [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE]
उत्तर:
मोह और प्रेम में निश्चित रूप से अंतर होता है। मोह में मनुष्य अपने स्वार्थ की चिंता करता है। प्रेम में वह प्रिय का हित देखता है। बालगोबिन भगत ने अपने व्यवहार से यह अंतर सिद्ध किया। उन्होंने अपनी पतोहू के प्रति मोह प्रकट न करके प्रेम प्रकट किया। यदि वे उसे अपनी सेवा के लिए रख लेते तो यह उनका मोह होता। उन्होंने पतोहू के भविष्य की चिंता की। इसलिए उसका जीवन सुधारने के लिए उसे दूसरा विवाह करने की सलाह दी। इससे उनका प्रेम प्रकट हुआ।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 14.
इस पाठ में आए कोई दस क्रियाविशेषण छाँटकर लिखिए और उनके भेद भी बताइए।
उत्तर:
1. वह जब-जब सामने आता।
जब-जब-कालवाची क्रियाविशेषण
सामने-स्थानवाची क्रियाविशेषण
2. तब तक मुझमें वह ज्ञान भी नहीं था।
तब तक-कालवाची क्रियाविशेषण
3. कपड़े बिल्कुल कम पहनते।
बिल्कुल कम-परिमाणवाचक क्रियाविशेषण
4. भोर में लोगों ने गीत नहीं सुना।
नहीं-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
5. न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते।
खामखाह-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
6. वे दिन-दिन छीजने लगे।
दिन-दिन-कालवाची क्रियाविशेषण
7. जो सदा-सर्वदा सुनने को मिलते।
सदा-सर्वदा-कालवाची क्रियाविशेषण ।
8. धान के पौधे को पंक्तिबद्ध खेत में बिठा रही है।
पंक्तिबद्ध-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
9. बँजड़ी डिमक-डिमक बज रही है।
डिमक-डिमक-रीतिवाचक क्रियाविशेषण
10. इन दिनों वे सवेरे ही उठते।
सवेरे ही-कालवाची क्रियाविशेषण।

पाठेतर सक्रियता

पाठ में ऋतुओं के बहुत ही सुंदर शब्द-चित्र उकेरे गए हैं। बदलते हुए मौसम को दर्शाते हुए चित्र/फ़ोटो का
संग्रह कर एक अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

पाठ में आषाढ़, भादो, माघ आदि में विक्रम संवत कलेंडर के मासों के नाम आए हैं। यह कलैंडर किस माह से आरंभ होता है? महीनों की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
यह कलैंडर चैत्र मास से शुरू होता है। इसके महीनों को क्रम इस प्रकार हैचैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ,
आषाढ, श्रावण,
भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष,
फाल्गुन।

कार्तिक के आते ही भगत ‘प्रभाती’ गाया करते थे। प्रभाती प्रात:काल गाए जाने वाले गीतों को कहते हैं। प्रभाती
गायन का संकलन कीजिए और उसकी संगीतमय प्रस्तुति कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है वह आपके आसपास के वातावरण से कैसे भिन्न है?
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

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