NCERT Class 10 Hindi Grammar (Hindi Vyakaran) छन्द
परिभाषा
छन्द का शब्दार्थ बन्धन है। वर्ण,मात्रा, गति, यति,तुक आदि नियमों से नियोजित शब्द-रचना छन्द कहलाती है।
छन्द के अंग
(1) वर्ण-वर्ण अक्षर को कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-
(अ) लघु (ह्रस्व) वर्णों के बोलने में बहुत कम समय लगता है; जैसे-क, उ, नि, ह आदि।
(आ) दीर्घ (गुरु) वर्णों के बोलने में कुछ अधिक समय लगता है; जैसे-तू, आ,पौ आदि।
(2) मात्रा-वर्ण के बोलने में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं। मात्रा दो प्रकार की होती हैं-
(अ) लघु,
(आ) दीर्घ।
लघु वर्ण की एक तथा दीर्घ वर्ण की दो मात्राएँ होती हैं। लघु का चिह्न (l) और दीर्घ का चिह्न (s) होता है।
(3) यति–विराम या रुकने को यति कहते हैं। छन्द पढ़ते समय जहाँ कुछ समय रुकते हैं,वही यति है। इसके संकेत के लिए विराम चिह्न प्रयोग किये जाते हैं।
(4) चरण या पाद-छन्द के एक भाग को चरण या पाद कहते हैं। प्रत्येक छन्द में चरणों की संख्या निश्चित होती है; जैसे–चार पद,छ: पद आदि।
(5) तुक-छन्द की प्रत्येक पंक्ति के अन्तिम भाग की समान ध्वनि तुक कहलाती है।
(6) गति (यल)-पढ़ते समय कविता के कर्णमधुर प्रवाह को गति कहते हैं।
(7) गण– लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गण आठ हैं-यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, संगण। ‘यमाताराजभानसलगा’ इन गणों को याद करने का सूत्र है। इनका स्पष्टीकरण अग्रलिखित है-
यमाता | यगण | । ऽ ऽ | यशोदा |
मातारा | मगण | ऽ ऽ ऽ | मायावी |
ताराज | तगण | ऽ ऽ । | तालाब |
राजभा | रगण | ऽ । ऽ | रामजी |
जभान | जगण | । ऽ । | जलेश |
भानस | भगण | ऽ । । | भारत |
नसल | नगण | । । । | नगर |
सलगा | सगण | । । ऽ | सरिता |
यमाता | यगण | । ऽ ऽ | यशोदा |
छन्द के भेद
छन्द दो प्रकार के होते हैं-
(i) मात्रिक छन्द-जिन छन्दों में मात्रा की गणना की जाती है, वे मात्रिक छन्द कहलाते हैं।
(ii) वर्णिक छन्द-जिन छन्दों में वर्गों की गणना की जाती है, वे वर्णित छन्द होते हैं।
छन्दों का परिचय
मात्रिक छन्द
1. चौपाई
यह एक सम-मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (I ऽ I) और तगण (ऽऽ I) के प्रयोग का निषेध है; अर्थात् चरण के अन्त में गुरु लघु (ऽ I) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (ऽ ऽ), दो लघु (I I), लघु-गुरु (I ऽ) हो सकते हैं।
ऽ।। | ।। | ।। | ।।। | ।ऽऽ | ।।। | ।ऽ। | ।।। | ।। ऽऽ |
बंदउँ | गुरु | पद | पदुम | परागा। | सुरुचि | सुबास | सरस | अनुरागा। |
।।। | ऽ।।। | ऽ।। | ऽऽ | ।।। | ।।। | ।। | ।। | ।।ऽऽ |
अमिय | मूरिमय | चूरन | चारू। | समन | सकल | भव | रुज | परियारू।। |
2. दोहा
यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13, 13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे (सम) चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। अन्त के वर्ण गुरु और लघु होते हैं; यथा–
ऽऽ | ।। | ऽऽ | ।ऽ | ऽऽ | ऽ।। | ऽ। | |||
मेरी | भव | बाधा | हरौ, | राधा | नागरि | सोइ। | 13 +11 = 24 | ||
ऽ | ।। | ऽ | ऽऽ | ।ऽ | ऽ। | ।।। | ।। | ऽ। | |
जा | तन | की | झाई | परै, | स्यामु | हरित | दुति | होइ।। | 13 + 11 = 24 |
3. सोरठा
यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहे का उल्टा होता है; यथा—
।।। | ।ऽ।। | ऽ। | ।। | ।ऽ। | ।। | ।।। | ।। | |
सुनत | सुमंगल | बैन, | मन | प्रमोद | तन | पुलक | भर। | 11 + 13 = 24 |
।।। | ।ऽ।। | ऽ। | ।।ऽ | ।ऽ | ।ऽ। | ।। | ||
सरद | सरोरुह | नैन, | तुलसी | भरे | सनेह | जल ।। | 11 +13 = 24 |
4. कुण्डलिया
यह एक विषम मात्रिक छन्द है जो छ: चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; यथा-
।।।। | ।।। | ।ऽ। | ऽ | ऽ। | ।ऽ | ऽ | ऽ। | |
कृतघन कतहुँ न मानहीं कोटि करौ जो कोय। | 13 +11 = 24 | |||||||
सरबस आगे राखिये तऊ न अपनो होय।। | ||||||||
तऊ न अपनो होय भले की भली न मानै। | 11 +13 = 24 | |||||||
काम काढ़ि चुपि रहे फेरि तिहि नहिं पहचान।। | ||||||||
कह ‘गिरधर कविराय’ रहत नित ही निर्भय मन। | ||||||||
मित्र शत्रु ना एक दाम के लालच कृतघन।। |
5. गीतिका
लक्षण-गीतिका मात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 14 तथा 12 पर यति होती हैं; कुल मात्राएँ 26 होती हैं। अन्त में लघु-गुरु होता है; जैसे-
हे प्रभो आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।
6. हरिगीतिका
लक्षण-इसमें कुल 28 मात्राएँ होती हैं तथा 16 एवं 12 पर यति होती है। अन्त में लघु-गुरु होता है; जैसे-
संसार की समर स्थली में, वीरता धारण करो।
चलते हुए निज इष्ट पथ पर, संकटों से मत डरो॥
जीते हुए भी मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो।
वीर वीर बनकर आप, अपनी विघ्न बाधाएँ हरो॥
7. उल्लाला
लक्षण-उल्लाला छन्द के प्रथम तथा तृतीय चरण में 15 मात्राएँ होती हैं; जैसे-
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की।
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।
8. रोला
लक्षण-रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 एवं 13 पर यति होती है। अन्त में प्रायः दो गुरु होते हैं; जैसे
नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र, युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मण्डल हैं।
बन्दीजन खग-वृन्द, शेष प्राय सिंहासन हैं।
वर्णिक छंद
जिन छंदों में वर्णों की संख्या, क्रम, गणविधान तथा लघु-गुरु के आधार पर
पदरचना होती है, उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- केवल वर्णगणना के आधार पर रचा गया छन्द ‘वार्णिक छन्द’ कहलाता है।
सरल शब्दों में- जिस छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या समान हो। उन्हें ‘वर्णिक छंद’ कहते हैं।
वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णो की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
‘वृतों’ की तरह इसमें लघु-गुरु का क्रम निश्र्चित नहीं होता, केवल वर्णसंख्या ही निर्धारित रहती है और इसमें चार चरणों का होना भी अनिवार्य नहीं।
वार्णिक छन्द के भेद
वार्णिक छन्द के दो भेद है- (i) साधारण और (ii) दण्डक
१ से २६ वर्ण तक के चरण या पाद रखनेवाले वार्णिक छन्द ‘साधारण’ होते है और इससे अधिकवाले दण्डक।