NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 6 are provided here. We have covered all the intext questions of your textbook given in the lesson. We have also provided some additional questions which are important with respect to your exam. Read all of them to get good marks.
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1. प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ और ‘प्रियतम’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर
प्रस्तुत कविता में ‘दीपक’ प्रभु आस्था व प्रेम का प्रतीक है और ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य अर्थात् परमात्मा का प्रतीक है। कवयित्री आस्था का दीपक जलाती है। उसकी आस्था स्नेह से परिपूर्ण है। ‘प्रियतम कवयित्री के आराध्य देव हैं। वह अपने प्रियतम को पाने के लिए आस्था रूपी दीपक जलाना चाहती है। वह प्रियतम के साथ एकाकार होना चाहती है।
प्रश्न 2.दीपक से किस बात का आग्रह किया जा रहा है और क्यों?
उत्तर
कवयित्री द्वारा दीपक से निरंतर हँस-हँसकर जलने का आग्रह किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि यह दीपक कवयित्री की आस्था एवं भक्ति का दीप है। वह इस आस्था और भक्ति को कभी कम नहीं होने देना चाहती है, इसलिए वह चाहती है कि दीपक हँस-हँसकर जलता रहे।
प्रश्न 3. ‘विश्व-शलभ’ दीपक के साथ क्यों जल जाना चाहता है?
उत्तर
‘विश्व-शलभ’ का आशय है-सारा संसार। कवयित्री शलभ अर्थात् पतंगों के समान प्रभु भक्ति की लौ में लगकर अपने अहं को गलाना चाहती है। जिस प्रकार पतंगा दीपक के साथ जलकर अपना अस्तित्व मिटा देना चाहता है। वह सोचता है कि जब एक छोटा-सा दीपक अपने शरीर का कण-कण जलाकर औरों को प्रकाश दे सकता है तो वह भी किसी के लिए पना बलिदान देकर अनंत के साथ मिलकर एकाकार होना चाहता है। दूसरे शब्दों में, संसार के लोग अपने अहंकार को गलाकर प्रभु को पा लेना चाहते हैं।
प्रश्न 4.आपकी दृष्टि में ‘मधुर मधुर मेरे दीपक जल’ कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर है?
(क) शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) सफल बिंब अंकन पर।
उत्तर
(क) मेरा मानना यह है कि ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता का सौंदर्य शब्दों की आवृत्ति और सफल बिंबांकन दोनों पर ही निर्भर है; जैसे- शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य- इस कविता में अनेक स्थानों पर शब्दों की आवृत्ति से उत्पन्न सौंदर्य देखिए-
मधुर मधुर मेरे दीपक जल !
युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर !
सौरभ फैला विपुल धूप बन,
मृदुल मोम सा घुल रे मृदु तन;
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल !
पुलक पुलक मेरे दीपक जल !
- सफल बिम्बांकन से उत्पन्न सौंदर्य- कविता में बिम्बों को सफल अंकन हुआ है, इस कारण सौंदर्य में वृद्धि हो गई है-
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल
सौरभ फैला विपुल धूप बन
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेहहीन नित कितने दीपक
विद्युत ले घिरता है बादल !
प्रश्न 5. कवियित्री किसका पथ आलोकित करना चाह रही हैं?
उत्तर
कवयित्री अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही हैं ताकि परमात्मा तक उसका पहुँचना आसान हो जाए। यदि प्रियतम तक पहुँचने का मार्ग अंधकारमय होगा तो लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। परमात्मा की प्राप्ति के लिए अहंकार को मिटाना पड़ता है। मन की अज्ञानता ही अंधकार है। कवयित्री अपना आस्था रूपी दीपक जलाकर अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाह रही है।
प्रश्न 6. कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन से क्यों प्रतीत हो रहे हैं?
उत्तर
कवयित्री को आकाश के तारे स्नेहहीन इसलिए प्रतीत हो रहे हैं, क्योंकि-
- आकाश में असंख्य तारे होने पर उनसे प्रकाश न निकलने पर ऐसा लगता है, जैसे उनका तेल समाप्त हो गया है।
- ये तारागण दया, करुणा, प्रेम और सहानुभूति रहित मनुष्यों की भाँति हैं।
- यदि इन तारों को तेल मिल जाए तो इनसे प्रकाश फूट पड़ेगा।
- मनुष्य की भाँति ही इन दीपकों को भी प्रकाशपुंज की आवश्यकता है।
प्रश्न 7.पतंगा अपने क्षोभ को किस प्रकार व्यक्त कर रहा है?
उत्तर
पतंगा दीपक की लौ में जलना चाहता है परंतु वह जल नहीं पाता। वह अपना क्षोभ सिर धुन-धुनकर व्यक्त कर रहा है। पतंगा दीपक से बहुत स्नेह करता है और उसकी लौ पर मर-मिटना चाहता है जब वह यह अवसर खो देता है तब वह पछताकर अपना क्षोभ व्यक्त करता है। इसी प्रकार मनुष्य भी अपने अहंकार को त्यागकर परमात्मा को पाना चाहता है परंतु अहंकार के रहते वह ईश्वर को पाने में असफल रहता है।
प्रश्न 8. कवयित्री ने दीपक को हर बार अलग-अलग तरह से मधुर मधुर, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस जलने को क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवयित्री अपने प्रभु के प्रति असीम आस्था और आध्यात्मिकता का दीप खुशी से जलाए हुए है। भक्ति का यह भाव निरंतर बनाए रखने के लिए दीपक अलग-अलग जलने के लिए कहती है। दीपक जलने के लिए प्रयुक्त किए गए अलग-अलग शब्दों के भाव इस प्रकार हैं-
मधुर-मधुर- मन की खुशी को प्रकट करने के लिए मंद-मंद मुसकान का प्रतीक।
पुलक-पुलक- मन की खुशी को मुखरित करने के लिए हँसी का प्रतीक।
विहँसि-विहँसि- मन के उल्लास को प्रकट करने के लिए उन्मुक्त हँसी का प्रतीक।
प्रश्न 9. नीचे दी गई काव्य-पंक्तियों को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए
जलते नभ में देख असंख्यक,
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता,
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस विहँस मेरे दीपक जल!
(क) ‘स्नेहहीन दीपक’ से क्या तात्पर्य है?
(ख) सागर को जलमय’ कहने का क्या अभिप्राय है और उसका हृदय क्यों जलता है?
(ग) बादलों की क्या विशेषता बताई गई है? ।
(घ) कवयित्री दीपक को ‘विहँस विहँस’ जलने के लिए क्यों कह रही हैं?
उत्तर
(क) स्नेहहीन दीपक का अर्थ है-कांतिहीन दीपक। आकाश में तारे ऐसे चमकते हैं मानो इन तारे रूपी दीपकों में स्नेह (तेल) समाप्त हो गया।
(ख) सागर को ‘जलमय’ कहने का तात्पर्य है-संसार के लोगों को सांसारिक सुख वैभव से भरपूर बताना, परंतु हर प्रकार की सुख-समृधि में रहते हुए भी लोग ईष्र्या, द्वेष और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। वे पीड़ित हैं। वे सांसारिक तृष्णाओं के कारण जल रहे हैं तथा आध्यात्मिक ज्योति के अभाव में जल रहे हैं।
(ग) बादल अपने जल के दुवारा धरती को शीतल एवं हरा-भरा बना देते हैं। जब वे गरजते हैं तो उनमें बिजली पैदा होती है। बादलों में उत्पन्न बिजली क्षणभर के लिए प्रकाश फैला देती है। इसका सांकेतिक अर्थ है-युग के महा प्रतिभाशाली | लोग आध्यात्मिक क्षेत्र को छोड़कर सांसारिक उन्नति में विलीन हो गए हैं।
(घ) कवयित्री दीपक को विहँस-विहँस कर जलने के लिए इसलिए कह रही है क्योंकि वह अपनी प्रभु आस्था को लेकर संतुष्ट है, प्रसन्न है और वह उसे संसार भर में फैलाना चाहती है। उसे जलाना तो हर हाल में है ही। इसलिए विहँस-विहँस कर जलते हुए दूसरों को भी सुख पहुँचाया जा सकता है।
प्रश्न 10. क्या मीराबाई और आधुनिक मीरा ‘महादेवी वर्मा इन दोनों ने अपने-अपने आराध्य देव से मिलने के लिए जो युक्तियाँ अपनाई हैं, उनमें आपको कुछ समानता या अंतर प्रतीत होता है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
मीराबाई और आधुनिक मीरा कहलाने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा दोनों ने जो युक्तियाँ अपनाई हैं उनमें असमानता अधिक समानता कम है क्योंकि- असमानता – मीराबाई अपने प्रभु कृष्ण के रूप सौंदर्य पर मोहित हैं। वे उनसे मिलने के लिए उनकी चाकरी करना चाहती हैं। उनके लिए बाग लगाना चाहती है, ताकि कृष्ण वहाँ विहार के लिए आएँ तो मीरा उनके दर्शन कर सकें। वे लाल रंग की साड़ी पहनकर अर्धरात्रि में यमुना किनारे आने के लिए कृष्ण से कहती हैं। महादेवी वर्मा के प्रभु निराकार ब्रह्म हैं जिन तक पहुँचने के लिए वे अपनी आस्था का दीपक जलाए रखना चाहती हैं। समानता – मीराबाई और महादेवी वर्मा दोनों ही अपने-अपने आराध्य की अनन्य भक्त हैं। वे पलभर के लिए भी अपने आराध्य को नहीं भूलना चाहती हैं।
(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए
प्रश्न 1.
दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल गल!
उत्तर
दीपक के व्यवहार की प्रशंसा करते हुए कहा गया है कि सागर अपार, असीमित होता है, शरीर प्रतिदिन क्षीण होता है, दीपक की लौ भी प्रतिक्षण क्षीण होती है वह फिर भी प्रकाश फैलाती है उसी प्रकार हे हृदय रूपी दीपक, तू ज्ञान रूपी प्रकाश फैला तथा जीवन को प्रतिक्षण ईश्वर की आराधना में लीन कर दे। यहाँ मनुष्य को ईश्वर आराधना में लीन होने की प्रेरणा दी गई है।
प्रश्न 2.
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल,
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
उत्तर
भाव यह है कि कवयित्री अपनी आस्था का दीप एक पल के लिए भी नहीं बुझने देना चाहती है। यह दीप निरंतर अर्थात् प्रतिपल, प्रतिदिन और हर क्षण जलता रहे ताकि परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग पर सर्वत्र आलोक बिखरा रहे।
प्रश्न 3.
मृदुल मोम-सा घुल रे मृदु तन!
उत्तर
कवयित्री का सर्वस्व समर्पण भाव व्यक्त हुआ है। वह कहती है-तू अपने नरम शरीर को कोमल मोम के समान पिघला दो अर्थात् तू अपनी कोमल भावनाओं के लिए प्रभु के चरणों में समर्पित हो जा । यहाँ मानव को मोमबत्ती के समान कोमल बनने की सलाह दी गई है।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1. कविता में जब एक शब्द बार-बार आता है और वह योजक चिह्न द्वारा जुड़ा होता है, तो वहाँ पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार होता है; जैसे–पुलक-पुलक। इसी प्रकार के कुछ और शब्द खोजिए जिनमें यह अलंकार हो।
उत्तर
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार वाले कविता में आए अन्य शब्द-मधुर-मधुर, युग-युग, गल-गल, पुलक-पुलक, सिहर-सिहर और विहँस-विहँस।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. इस कविता में जो भाव आए हैं, उन्हीं भावों पर आधारित कवयित्री द्वारा रचित कुछ अन्य कविताओं का अध्ययन करें; जैसे-
(क) मैं नीर भरी दुख की बदली
(ख) जो तुम आ जाते एकबार
ये सभी कविताएँ ‘सन्धिनी’ में संकलित हैं।
उत्तर- (क) “मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता पुस्तकालय से प्राप्त कर छात्र स्वयं पढ़ें।
(ख) जो तुम आ जाते एक बार।
कितनी करुणा कितने संदेश।
पथ में बिछ जाते बन पराग,
गाता प्राणों का तार-तार।
अनुराग भरा उन्माद राग
आँसू लेते वे पद पखार।
हँस उठते पल में आर्द्र नयन,
धुल जाता ओठों से विषाद,
छा जाता जीवन में वसंत,
लुट जाता चिर संचित विराग
आँखें देती सर्वस्व वार।
जो तुम आ जाते एक बार।
प्रश्न 2. इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुति करें।
उत्तर- छात्र कविताओं को कंठस्थ कर उनका गायन स्वयं करें।
प्रश्न 3. महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर- भक्तिकालीन कवयित्री मीरा के पदों एवं गीतों में अपने आराध्य श्रीकृष्ण से न मिल पाने की जो पीड़ा है और उनसे मिलने के तरह-तरह के प्रयास किए गए हैं, उनके रूप-सौंदर्य पर मोहित होकर उनकी अनन्य भक्ति करते हुए उनकी चाकरी करने, नौकरानी बनने और दासी बनने तक के विभिन्न उपाय किए गए हैं। उसी प्रकार महादेवी वर्मा भी अपने आराध्य प्रभु से मिलने के लिए उनकी भक्ति करती हैं और आस्था का दीप जलाए रखना चाहती हैं। महादेवी के गीतों में भी अपने प्रियतम से न मिल पाने की पीड़ा स्पष्ट रूप से महसूस की जा सकती है। अतः महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहना पूर्णतया उपयुक्त है।
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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. कवयित्री अपने प्रियतम का पथ किस प्रकार आलोकित करना चाहती है?
उत्तर- कवयित्री अपने प्रियतम से आध्यात्मिक लगाव, श्रद्धा एवं आस्था रखती है। इसी आस्था का दीप वह हर-पल, हर क्षण, हर दिन जलाए रखना चाहती है। इसी आस्था रूपी दीप के प्रकाश के सहारे वह अपने प्रभु तक पहुँचना चाहती है। इस तरह वह अपने प्रियतम का पथ आलोकित करना चाहती है।
प्रश्न 2. कवयित्री आस्था का दीप किस तरह जलने की अभिलाषा करती है?
उत्तर- कवयित्री की अभिलाषा है कि उसकी आस्था का दीप जलकर अपना सौरभ उसी तरह चारों ओर बिखरा दे जिस तरह सूर्य की किरणें चारों ओर भरपूर प्रकाश फैला जाती हैं। आस्था का यह दीप जलकर चारों ओर अपरिमित उजाला फैला दे, भले ही उसके लिए अपना एक-एक अणु गला देना पड़े अर्थात् वह अपना अस्तित्व नष्ट कर दे।
प्रश्न 3. विश्व के शीतल-कोमल प्राणी क्या भोग रहे हैं और क्यों ?
उत्तर- विश्व के शीतल और कोमल प्राणी अर्थात् जिनकी आस्था प्रभु के चरणों में नहीं है वे प्रकाश पुंज परमात्मा से आस्था एवं भक्ति की चिनगारी माँग रहे हैं ताकि वे भी आस्था का दीप जलाकर अपना जीवन प्रकाशमय कर सकें। वे भी प्रभु के प्रति आस्थावान बन सकें।
प्रश्न 4. विश्व-शलभ को किस बात का दुख है?
उत्तर- विश्व-शलभ को इस बात का दुख है कि क्यों प्रभु के चरणों में अपनी आस्था और श्रद्धी पैदा नहीं कर पाया। वह परमात्मा के ज्योतिपुंज में अपना अहंकार, मोह और अज्ञानता क्यों नहीं जला पाया। यदि वह परमात्मा से एकाकार होकर इनका शमन कर लेता तो उसे भी प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हो जाता।
प्रश्न 5. कवयित्री ने ‘जलमय सागर’ किसे कहा है? उसका हृदय क्यों जलता है?
उत्तर- कवयित्री ने जलमय सागर उन प्राणियों को कहा है जिनका मन रूपी सागर ईर्ष्या, तृष्णा, मोह आदि की सांसारिकता से लबालब भरा हुआ है और आध्यात्मिक आस्था का अभाव है। इसके अभाव में मन इधर-उधर भटकता हुआ सांसारिकता में डूबा रहता है। आस्थाहीन प्राणियों का मन ई और तृष्णा की आग में जलता रहता है।
प्रश्न 6. कवयित्री अपने जीवन का अणु-अणु गलाकर क्या सिद्ध करना चाहती है?
उत्तर- कवयित्री अपने प्रियतम के प्रति पूरी तरह समर्पित है। इसके लिए वह अपना अहम भाव पूरी तरह समाप्त करने के लिए इस अहम का एक-एक अणु गला देना चाहती है। इसके द्वारा वह यह सिद्ध करना चाहती है कि अपने प्रियतम (परमेश्वर) के प्रति उसका समर्पण अनन्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता के आधार पर कवयित्री की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।’ कविता में कवयित्री की आध्यात्मिकता का वर्णन है। वह अपने प्रभु के चरणों में आस्था का दीपक जलाती है और अनवरत जलाए रखना चाहती है। वह इस दीपक से कभी मधुर भाव से जलने के लिए कहती है तो कभी पुलक-पुलककर और कभी विहँस-विहँस कर। वह अपने दीपक की लौ में अपने अहम् को जलाकर अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण, प्रकट करती है। संसार के लोग सांसारिक सुखों में डूबकर ईष्र्या और तृष्णा के कारण जल रहे हैं। कवयित्री चाहती हैं कि वे भी प्रकाश पुंज से चिनगारी लेकर भक्ति की लौ जलाएँ। वह अपने प्रियतम का पथ आलोकित करने के लिए आस्था का दीपक सदा-सदा के लिए जलाकर भक्ति भावना से सारा संसार महकाना चाहती है।
प्रश्न 2. ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ के आधार पर विश्व-शलभ की स्थिति स्पष्ट कीजिए। ऐसे लोगों के प्रति कवयित्री की क्या सोच है?
उत्तर- ‘मधुर-मधुर मेरे दीपक जल’ कविता से ज्ञात होता है कि विश्व रूपी पतंगा अपनी स्थिति पर पछताता है। वह दुख प्रकट करते हुए कहता है कि वह उस प्रभु भक्ति की आस्था रूपी दीपक की ज्वाला से एकाकार न हो सका। वह इस ज्वाला में अपना अहंकार न जला पाने से अब भी अहंकार, ईर्ष्या, अंधकार, मोह, तृष्णा आदि में डूबा हुआ कष्ट भोग रहा है। आस्था एवं आध्यात्मिकता के अभाव में वह प्रभु भक्ति से दूर रह गया और न भक्ति का आनंद उठा सका और न प्रभु का सान्निध्य प्राप्त कर सका। ऐसे लोगों के बारे में कवयित्री सोचती है कि उन्हें भी प्रकाशपुंज से चिनगारी प्राप्त कर अपनी आस्था का दीप जला लेना चाहिए।