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Home Class 10th Solutions

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस

by Sudhir
December 17, 2021
in Class 10th Solutions, 10th Hindi
Reading Time: 5 mins read
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NCERT Class 10th Hindi Solutions
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  • NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस
    • पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
    • योग्यता विस्तार
  •  
    • परियोजना कार्य
    • अन्य पाठेतर हल प्रश्न
      • लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
      • दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 5 are provided here. We have covered all the intext questions of your textbook given in the lesson. We have also provided some additional questions which are important with respect to your exam. Read all of them to get good marks.

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1. पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पावस ऋतु में प्रकृति में बहुत-से मनोहारी परिवर्तन आते हैं।

जैसे :-
1. पर्वत, पहाड़, ताल, झरने आदि भी मनुष्यों की ही भाँति भावनाओं से ओत-प्रोत दिखाई देते हैं।
2. पर्वत ताल के जल में अपना महाकार देखकर हैरान-से दिखाई देते हैं।
3. पर्वतों से बहते हुए झरने मोतियों की लड़ियों से प्रतीत होते हैं।
4. बादलों की ओट में छिपे पर्वत मानों पंख लगाकर कहीं उड़ गए हों तथा तालाबों में से उठता हुआ कोहरा धुएँ। की भाँति प्रतीत होता है।

प्रश्न 2. ‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है?

उत्तर
‘मेखलाकार’ शब्द ‘मेखला + आकार’ से मिलकर बना है। मेखला अर्थात् करधनी नामक एक आभूषण जो स्त्रियों द्वारा कमर में पहनी जाती है। पर्वतों का ढलान देखकर ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी ने इस मेखला से स्वयं को आवृत्त कर रखा हो। यहाँ इस शब्द का प्रयोग कवि ने पहाड़ की विशालता बताने के लिए किया है जो पृथ्वी को घेरे हुए हैं।

प्रश्न 3.
‘सहग्न दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?

उत्तर
‘सहस्र दृग-सुमन’ का अर्थ है-हजारों पुष्प रूपी आँखें । कवि ने इसका प्रयोग पर्वत पर खिले फूलों के लिए किया है। वर्षा काल में पर्वतीय भाग में हजारों की संख्या में पुष्प खिले रहते हैं। कवि ने इन पुष्पों में पर्वत की आँखों की कल्पना की है। पर्वत अपने नीचे फैले तालाब रूपी दर्पण में फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपने सौंदर्य को निहार रहा है। कवि इसके माध्यम से पर्वत का मानवीकरण कर फूलों के सौंदर्य को चित्रित करना चाहता होगा।

प्रश्न 4. कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?

उत्तर
कवि ने तालाब की समानता दर्पण के समान दिखाई है। इसका कारण यह है कि पर्वतीय प्रदेश में पर्वत के पास स्थित जल से परिपूर्ण तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ है। इसी जल में पहाड़ का प्रतिबिंब बन रहा है जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मानो तालाब दर्पण हो। पहाड़ भी इस तालाब रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहारकर आत्ममुग्ध हो रहा है।

प्रश्न 5. पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?

उत्तर
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर देखकर उसे छूने की कोशिश कर रहे हैं मानो वे अपने किसी उच्च आकांक्षा को पाने के लिए उसे देख रहे हों। वे बिलकुल मौन रहकर स्थिर रहकर भी संदेश देते प्रतीत होते हैं कि उद्देश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए और बिना किसी संदेह के चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।

प्रश्न 6. शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों फँस गए?

उत्तर
पर्वतीय प्रदेश में जब वर्षा होती है तो बादल काफ़ी नीचे आ जाते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि हम बादलों के बीच हो गए हैं। ऐसे में जब अचानक वर्षा होने लगती है बादल और कोहरा इतना घनीभूत हो जाता है कि आसपास का दृश्य दिखना बंद-सा हो जाता है। ऐसे में शाल के वृक्ष भी बादलों में बँक से जाते हैं। ऐसा लगता है कि इस मूसलाधार वर्षा से ही डरकर शाल के पेड़ धरती में धंस गए हैं।

प्रश्न 7.
झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?

उत्तर
झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हुए झरनों की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है। पहाड़ों की छाती | पर बहने वाले झाग जैसे जल वाले झरने ऐसे मनोरम लगते हैं मानो वे झर-झर की ध्वनि करते हुए पर्वत की महानता का गुण गान कर रहे हैं। ये उत्साह और उमंग से ओत-प्रोत हो जाते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1. ये टूट पड़ा भू पर अंबर।

उत्तर
मूसलाधार वर्षा होने लगी है। बादलों ने सारे पर्वत को ढक लिया है। पर्वत अब बिलकुल दिखाई नहीं दे रहे। ऐसी लगता है मानो आकाश ही टूटकर धरती पर आ गिरा हो। पृथ्वी और आकाश एक हो गए हैं। अब बस झरने का शोर ही शेष रह गया है।

प्रश्न 2.-यों जलद:यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।

उत्तर
पावस ऋतु में पहाड़ी प्रदेश में प्रकृति पल-पल अपना रूप बदलती प्रतीत होती है। बादलों की सघनता के कारण पेड़-पौधों, पहाड़ झरने इससे आच्छादित होकर अदृश्य से हो जाते हैं। तालाब के पानी से धुआँ उठने लगता है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसे नजर आते हैं। बादलों के साथ पहाड़ भी उड़ते प्रतीत होते हैं। इधर वर्षा के बीच बादल उड़कर इधर-उधर घूमते फिरते हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि इंद्र इन बादलों के विमान पर बैठकर इंद्रजाल अर्थात् अपनी माया की लीला दिखा रहा है।

प्रश्न 3.
गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है
झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर
वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इसमें उनकी मानवीय भावनाओं को स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य भी सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में लिए रहता है। वे कुछ चिंतित भी दिखाई पड़ते हैं।

कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1. इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर
कवि सुमित्रानंदन पंत ने कविता में कई स्थानों पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। पर्वत द्वारा अपने फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपना प्रतिबिंब निहारते हुए गौरव अनुभव करना, झरनों द्वारा पर्वत का यशोगान, पेड़ों द्वारा उच्च आकांक्षा से आकाश की ओर देखना, बादल का पंख फड़फड़ाना, इंद्र द्वारा बादल रूपी यान पर बैठकर जादुई खेल दिखाना, सभी में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है, जिन्हें कवि ने अत्यंत सुंदर ढंग से प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।

उत्तर
कविता का सौंदर्य किसी एक कारण पर निर्भर नहीं है। वे तीनों कारण ही कविता को सुंदर बनाने में सहायक रहे हैं

(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर

उदाहरण-

  1. पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश ।
  2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर।
  3. मद में नस-नस उत्तेजित कर।
  4. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर।
    शब्दों की आवृत्ति से कविता में गति व तीव्रता आई है।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

  1. मेखलाकार पर्वत अपांर।
  2. उड़ गया, अचानक लो, भूधर।
  3. फड़का अपार पारद के पर।
  4. है टूट पड़ा भू पर अंबर।।
    इन चित्रात्मक शब्दों ने कविता में सौंदर्य उत्पन्न किया है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
-कविता में संगीत, लय का भी ध्यान रखा गया है।

प्रश्न 3.
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
इस प्रकार के स्थल निम्नलिखित हैं-

-मेखलाकार पर्वत अपार ।
अपने सहग्न दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर
-गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. इस कविता में वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों की बात कही गई है। आप अपने यहाँ वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर- वर्षा ऋतु में होने वाले प्राकृतिक परिवर्तन-वर्षा को जीवनदायिनी ऋतु कहा जाता है। इस ऋतु का इंतज़ार ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से किया जाता है। वर्षा आते ही प्रकृति और जीव-जंतुओं को नवजीवन के साथ हर्षोल्लास भी स्वतः ही मिल जाता है। इस ऋतु में हम अपने आसपास अनेक प्राकृतिक परिवर्तन देखते हैं; जैसे-

1. ग्रीष्म ऋतु में तवे सी जलने वाली धरती शीतल हो जाती है।
2. धरती पर सूखती दूब और मुरझाए से पेड़-पौधे हरे हो जाते हैं।
3. पेड़-पौधे नहाए-धोए तरोताज़ा-सा प्रतीत होते हैं।
4. प्रकृति हरी-भरी हो जाती हैं तथा फ़सलें लहलहा उठती हैं।
5. दादुर, मोर, पपीहा तथा अन्य जीव-जंतु अपना उल्लास प्रकट कर प्रकृति को मुखरित बना देते हैं।
6. मनुष्य तथा बच्चों के कंठ स्वतः फूट पड़ते हैं जिससे प्राकृतिक चहल-पहल एवं सजीवता बढ़ती है।
7. आसमान में बादल छाने, सूरज की तपन कम होने तथा ठंडी हवाएँ चलने से वातावरण सुहावना बन जाता है।
8. नालियाँ, नाले, खेत, तालाब आदि जल से पूरित हो जाते हैं।
9. अधिक वर्षा से कुछ स्थानों पर बाढ़-सी स्थिति बन जाती है।
10. रातें काली और डरावनी हो जाती हैं।

 

परियोजना कार्य

प्रश्न 1. वर्षा ऋतु पर लिखी गई अन्य कवियों की कविताओं का संग्रह कीजिए और कक्षा में सुनाइए।

उत्तर-
छात्र स्वयं करें।


प्रश्न 2. बारिश, झरने, इंद्रधनुष, बादल, कोयल, पानी, पक्षी, सूरज, हरियाली, फूल, फल आदि या कोई भी प्रकृति विषयक शब्द का प्रयोग करते हुए एक कविता लिखने का प्रयास कीजिए।

उत्तर- छात्र स्वयं करें।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?

उत्तर- ‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि पर्वतीय प्रदेश की वर्षा ऋतु में प्रकृति में क्षण-क्षण में बदलाव आता रहता है। वहाँ अचानक सूर्य बादलों के पीछे छिप जाता है। बादल गहराते ही वर्षा होने लगती है। चारों ओर धुआँ-धुआँ-सा छा जाता है। पल-पल में हो रहे इस परिवर्तन को देखकर लगता है कि प्रकृति अपना वेश बदल रही है।


प्रश्न 2. कविता में पर्वत को कौन-सा मानवीय कार्य करते हुए दर्शाया गया है?

उत्तर- ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में वर्णित पर्वत अत्यंत ऊँचा और विशालकाय है। पर्वत पर हज़ारों फूल खिले हैं। पर्वत के चरणों के पास ही स्वच्छ जल से भरा तालाब है। पर्वत इस तालाब में अपनी परछाई निहारते हुए आत्ममुग्ध हो रहा है। उसका यह कार्य किसी मनुष्य के कार्य के समान है।


प्रश्न 3. पर्वतीय प्रदेश में स्थित तालाब के सौंदर्य का चित्रण कीजिए।

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में पहाड़ की तलहटी में एक विशाल आकार का तालाब है। वहाँ होने वाली वर्षा के जल से यह तालाब परिपूरित रहता है। तालाब के पास ही विशालकाय पर्वत है। इसकी परछाई इसके पानी में उसी तरह दिखाई देती है जैसे साफ़ दर्पण में कोई वस्तु दिखाई देती है।


प्रश्न 4. पर्वत से गिरने वाले झरनों की विशेषता लिखिए।

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में पर्वत के सीने पर झर-झर करते हुए झरने गिर रहे हैं। इन झरनों की ध्वनि सुनकर ऐसा लगता है, जैसे ये पर्वतों का गौरवगान कर रहे हों। इन झरनों का सौंदर्य देखकर नस-नस में उत्तेजना भर जाती है। ये पर्वतीय झरने झागयुक्त हैं जिन्हें देखकर लगता है कि ये सफ़ेद मोतियों की लड़ियाँ हैं।


प्रश्न 5. पर्वतों पर उगे पेड़ कवि को किस तरह दिख रहे हैं?

उत्तर- पर्वतों पर उगे पेड़ देखकर लगता है कि ये पेड़ पहाड़ के सीने पर उग आए हैं जो मनुष्य की ऊँची-ऊँची इच्छाओं की तरह हैं। ये पेड़ अत्यंत ध्यान से अपलक और अटल रहकर शांत आकाश की ओर निहार रहे हैं। शायद ये भी अपनी उच्चाकांक्षा को पूरा करने का उपाय खोजने के क्रम में चिंतनशील हैं।


प्रश्न 6. कविता में पर्वत के प्रति कवि की कल्पना अत्यंत मनोरम है-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पर्वत के प्रति अत्यंत सुंदर कल्पना की है। विशालकाय पहाड़ पर खिले फूलों को उसके हज़ारों नेत्र माना है, जिनके सहारे पहाड़ विशाल दर्पण जैसे तालाब में अपना विशाल आकार देखकर मुग्ध हो रहा है। अचानक बादलों के घिर जाने पर यही पहाड़ अदृश्य-सा हो जाता है तब लगता है कि पहाड़ किसी विशाल पक्षी की भाँति अपने काले-काले पंख फड़फड़ाकर उड़ गया हो।

प्रश्न 7. ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में तालाब की तुलना किससे की गई है और क्यों?

उत्तर- ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में तालाब की तुलना स्वच्छ विशाल दर्पण से की गई है क्योंकि-

* तालाब का आकार बहुत बड़ा है।
* तालाब का जल अत्यंत निर्मल और साफ़ है।
* तालाब के इस स्वच्छ जल में पर्वत अपना महाकार देख रहा है।


प्रश्न 8. पर्वतीय प्रदेश में उड़ते बादलों को देखकर कवि ने क्या नवीन कल्पना की है?

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में बादल इधर-उधर उड़ते फिर रहे हैं। इन बादलों से वर्षा होने से तालाब में धुआँ उठने लगा। पर्वत और झरने अदृश्य होने लगे। शाल के पेड़ अस्पष्ट से दिखने लगे। इन सारे परिवर्तनों के मूल में बादल थे। इन्हें उड़ता देख कवि ने इंद्र यान के रूप में इनकी कल्पना की, जिनमें बैठकर इंद्र अपना मायावी जाल फैला रहा था। कवि की यह कल्पना सर्वथा नवीन है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. कवि के देखते-देखते अचानक कौन-सा परिवर्तन हुआ जिससे शाल के वृक्ष भयाकुल हो गए?

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु में कवि ने देखा कि आकाश में काले-काले बादल उठे और नीचे की ओर आकर पर्वत, पेड़ तथा तालाब आदि को घेर लिया, जिससे निम्नलिखित परिवर्तन हुए-

* ऐसा लगा जैसे पहाड़ चमकीले भूरे पारद के पंख फड़फड़ाकर उड़ गया।
* पहाड़ पर स्थित झरने अदृश्य हो गए।
* झरनों का स्वर अब भी सुनाई दे रहा है।
* मूसलाधार वर्षा होने लगी, जिससे ऐसा लगा कि धरती पर आकाश टूट पड़ा हो।

पर्वतीय प्रदेश में अचानक हुए इन परिवर्तनों को देखकर शाल के पेड़ भयाकुल हो उठे।

प्रश्न 2. पर्वतीय प्रदेश में इंद्र अपनी जादूगरी किस तरह दिखा रहा था?

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में अचानक बादल छाने और धुंध उठने से वातावरण अंधकारमय हो गया। इससे पर्वत अदृश्य हो गए। पहाड़ पर बहते झरते दिखने बंद हो गए। झरनों की आवाज़ अब भी आ रही थी। अचानक जोरदार वर्षा होने लगी। बढ़ती धुंध में शाल के पेड़ ओझल होने लगे। ऐसा लगा, ये पेड़ कटकर धरती में धंसते जा रहे हैं। अचानक तालाब में धुआँ ऐसे उठा मानो आग लग गई हो। इस तरह अपनी जादूगरी दिखाते हुए इंद्र बादलों के विमान पर बैठकर घूम रहा था। यह सब परिवर्तन इंद्र अपनी जादूगरी से दिखा रहा था।


प्रश्न 3. पर्वतीय प्रदेश में कुछ पेड़ पहाड़ पर उगे हैं तो कुछ शाल के पेड़ पहाड़ के पास। इन दोनों स्थान के पेड़ों के सौंदर्य में अंतर कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पर्वतीय प्रदेश में बहुत से पेड़ पर्वत पर उगे हैं जिन्हें, देखकर लगता है कि वे पहाड़ के सीने पर उगे हैं। ये पेड़ मनुष्य की ऊँची आकांक्षाओं के समान हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी आकांक्षाएँ पूरी करने के लिए चिंतित रहता है उसी प्रकार ये पेड़ भी अटल भाव से अपलक आकाश की ओर देखे जा रहे हैं; जैसे अपनी महत्त्वाकांक्षा पूर्ति का उपाय सोच रहे हों। दूसरी ओर पर्वत के पास उगे पेड़ वर्षा होने और धुंध के कारण अस्पष्ट से दिखाई दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि अचानक होने वाली मूसलाधार वर्षा और धुंध से भयभीत होकर ये पेड़ धरती में धंस गए हों।


प्रश्न 4. ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता पर्वतीय सौंदर्य को व्यक्त करने वाली कविता है। प्रकृति का यह सौंदर्य वर्षा में और भी बढ़ जाता है। वर्षा काल में प्रकृति में क्षण-क्षण होने वाला परिवर्तन देखकर लगता है कि प्रकृति सजने-धजने के क्रम में पल-पल अपना वेश बदल रही है। विशाल आकार वाला मेखलाकार पर्वत है जिस पर फूल खिले हैं। पर्वत के पास ही विशाल तालाब है जिसमें पर्वत अपना सौंदर्य निहारता है और आत्ममुग्ध होता है। तालाब का जल इतना स्वच्छ है जैसे दर्पण हो। पर्वतों से गिरते झरने सफ़ेद मोतियों की लड़ियों जैसे लगते हैं।

अचानक बादल उमड़ते हैं। बादलों में पर्वत और झरने अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे पर्वत विशालकाय पक्षी की भाँति पंख फड़फड़ाकर उड़ जाते हैं। मूसलाधार वर्षा आरंभ हो जाती है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसने से लगते हैं। तालाब से धुआँ उठने लगता है। ऐसा लगता है जैसे इंद्र अपनी जादूगरी दिखा रहा है।

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