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Home Class 10th Solutions

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन

by Sudhir
December 28, 2021
in Class 10th Solutions, 10th Hindi
Reading Time: 5 mins read
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NCERT Class 10th Hindi Solutions
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NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन

Table of Contents

  • NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 सपनों के-से दिन
    • पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
    • अन्य पाठेतर हल प्रश्न
      • लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
      • दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 2 are provided here. We have covered all the intext questions of your textbook given in the lesson. We have also provided some additional questions which are important with respect to your exam. Read all of them to get good marks.

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1. कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती पाठ के किस अंश से यह सिद्ध होता है?

उत्तर
‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक श्री गुरदयाल सिंह जी बताते हैं कि बचपन में उनके आधे से अधिक साथी हरियाणा या राजस्थान से व्यापार के लिए आए परिवारों से संबंधित थे। उनके कुछ शब्द सुनकर लेखक व उसके अन्य साथियों को हँसी आ जाती थी। बहुत से शब्द समझ में नहीं आते थे। किंतु जब वे सब मिलकर खेलते थे तब सभी को एक-दूसरे की बातें खूब अच्छी तरह समझ में आ जाती थीं। पाठ के इसी अंश से यह बात सिद्ध होता है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नहीं होती।

प्रश्न 2. पीटी साहब की ‘शाबाश’ फौज़ के तमगों-सी क्यों लगती थी? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर
पीटी साहब अत्यंत कठोर स्वभाव वाले व्यक्ति थे। जो बात-बात में बच्चों को कड़ा दंड देते थे। प्रार्थना के समय जरा-सा इधर-उधर करते ही पीटी साहब उस पर टूट पड़ते और खूब पिटाई करते थे। स्काउटिंग का अभ्यास करवाते हुए बच्चे जब अपना काम गलती किए बिना पूरा करते तो वे कहते-‘शाबाश’। पीटी साहब से भयभीत रहने वाले बच्चों के लिए। यह ‘शाबाश’ शब्द बड़ा ही उत्साहवर्धक लगता था। यह ‘शाबाशी’ उन्हें फ़ौज में तमगों का अहसास कराती थी।

प्रश्न 3. नयी श्रेणी में जाने और नयी कॉपियों और पुरानी किताबों से आती विशेष गंध से लेखक का बालमन क्यों उदास हो उठता है?

उत्तर
नयी श्रेणी में जाने का विद्यार्थियों को विशेष चाव होता है क्योंकि उन्हें वहाँ नए-नए अध्यापक मिलते हैं जो उन्हें नई-नई किताबें पढ़ाते हैं जिस कारण उनमें उमंग और उत्साह छलकता प्रतीत होता है। लेकिन लेखक का मन नई श्रेणी में जाकर उदास हो जाता है। उसके बालमन के उदास होने का कारण निम्नलिखित था

1. लेखक गरीब परिवार का था। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न थी। वह नई किताबें खरीद न सकता था। उसे | नयी कॉपियाँ अवश्य मिल जाती थीं। हेडमास्टर साहब उसके लिए अन्य लड़कों द्वारा पढ़ी गई पुरानी किताबों का प्रबंध कर देते। इन पुरानी किताबों में से विशेष प्रकार की गंध आती थी जो उसके बालमन को उदास कर देती थी।

2. लेखक की उदासी का दूसरा कारण अगली कक्षा की कठिन पढ़ाई को लेकर था। नए मास्टरों द्वारा मारपीट का भय | उसके भीतर तक समाया हुआ था क्योंकि उसके विद्यालय के मास्टर पीटते-पीटते चमड़ी तक उधेड़ देने को तैयार रहते थे।

प्रश्न 4. स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण ‘आदमी’ फौजी जवान क्यों समझने लगता था?

उत्तर
स्काउट परेड करते समय लेखक अपने को महत्त्वपूर्ण आदमी’ फ़ौजी जवान इसलिए समझने लगता था, क्योंकि परेड करते समय वह स्काउट की पूरी वरदी पहने, गले में रंगीन रूमाल डाले और इंडिया हिलाते हुए परेड करता था। इस वेशभूषा में उसे फ़ौजी जवान होने की अनुभूति होने लगती थी।

प्रश्न 5. हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को क्यों मुअत्तल कर दिया?

उत्तर
पीटी साहब चौथी कक्षा के लड़कों को फ़ारसी पढ़ाते थे। वे विद्यार्थियों को शब्द रूप पढ़ने पर बल दिया करते थे। एक दिन जब कक्षा के विद्यार्थी दिए गए शब्द रूप याद करके न आए तो पीटी साहब ने उन्हें क्रूरतापूर्ण ढंग से मुर्गा बनाकर पीठ ऊँची करने का आदेश दिया। सजा के कारण कई लड़के गिर गए तभी हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए और उन्होंने यह सारा दृश्य अपनी आँखों से देख पीटी सर की बर्बरती पर उत्तेजित होकर उन्हें तत्काल मुअत्तल अर्थात् निलंबित कर दिया।

प्रश्न 6. लेखक के अनुसार उन्हें स्कूल खुशी से जाने की जगह न लगने पर भी कब और क्यों स्कूल जाना अच्छा लगने लगा?

उत्तर
लेखक को उस समय के अध्यापकों की क्रूर ढंग से की जाने वाली पिटाई के कारण लगता था कि स्कूल खुशी-खुशी जाने की जगह नहीं लगती है फिर भी उसे स्कूल जाना उस समय अच्छा लगने लगता जब पीटी मास्टर उन्हें स्काउटिंग का अभ्यास करवाते। पीटी मास्टर के वन-टू-श्री कहने पर झंडियाँ ऊपर-नीचे दाएँ-बाएँ करना अच्छा लगता था। स्काउट की परेड के समय पूरी वरदी और गले में दो रंगा रूमाल लटकाए बिना गलती के परेड करने पर पीटी मास्टर द्वारा दी गई ‘शाबासी’ के कारण स्कूल उसे अच्छा लगने लगता था।

प्रश्न 7. लेखक अपने छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए क्या-क्या योजनाएँ बनाया करता था और उसे पूरा न कर पाने की स्थिति में किसकी भाँति ‘बहादुर’ बनने की कल्पना किया करता था?

उत्तर
लेखक के छात्र जीवन में स्कूल से छुट्टियों में बहुत-सा गृहकार्य दिया जाता था। तब लेखक स्कूल से छुट्टियों में मिले काम को पूरा करने के लिए तरह-तरह की योजनाएँ बनाया करता था। उदाहरण के लिए हिसाब के मास्टरजी द्वारा दिए गए 200 सवालों को पूरा करने के लिए रोज 10 सवाल किए जाने पर बीस दिनों में पूरे हो जाएँगे किंतु खेलकूद में जब छुट्टियाँ बीतने लगतीं तो मास्टर जी की पिटाई का डर सताने लगती। फिर लेखक रोज के पंद्रह सवाल करने की योजना बनाता। तब उसे छुट्टियाँ भी बहुत कम लगतीं तथा दिन भी कम लगने लगते तथा स्कूल का भय भी बढ़ने लगता। ऐसे में लेखक पढ़ाई से डरने के बावजूद भी ओमा जैसे सहपाठी की तरह बहादुर बनने की कल्पना करने लगता जो छुट्टियों का काम पूरा करने की अपेक्षा मास्टर जी से पिटना, अधिक बेहतर समझता था।

प्रश्न 8. पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी सर की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर
पाठ में वर्णित घटनाओं के आधार पर पीटी मास्टर की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. अत्यंत कठोर स्वभाव – पीटी मास्टर का स्वभाव इतना कठोर है कि कभी भी स्कूल में उन्हें हँसते या मुसकराते नहीं देखा गया है। वे जरा-सी गलती के लिए कठोर दंड देते थे।
  2. अनुशासन प्रिय – पीटी मास्टर नहीं चाहते थे कि कोई बालक अनुशासन हीनता करे। प्रेयर में लाइन से सिर निकालकर इधर-उधर देखना या पिंडलियाँ खुजलाना आदि उन्हें जरा भी पसंद न था। ऐसा करते देख वे छात्रों पर टूट पड़ते थे।
  3. बाल मनोविज्ञान से अनभिज्ञ – पीटी मास्टर बाल मनोविज्ञान से पूरी तरह अनभिज्ञ थे। वे पिटाई के बल पर सारी पढ़ाई करवा लेना चाहते थे। वे चौथी कक्षा के छात्रों का मानसिक स्तर समझे बिना शब्द रूप याद करने के लिए दे देते थे और न सुना पाने पर मुरगा बना देते थे।
  4. स्वाभिमानी – हेडमास्टर द्वारा मुअत्तल किए जाने के बाद भी पीटी मास्टर के चेहरे पर शिकन नहीं आती है। वे पहले जैसे ही अपने तोतों के साथ समय बिताते हैं।

प्रश्न 9. विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए पाठ में अपनाई गई युक्तियों और वर्तमान में स्वीकृत मान्यताओं के संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।


उत्तर
‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बताया गया है कि विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने के लिए उन्हें कठोर यातनाएँ दी जाती थीं। उन्हें भयभीत अवस्था में रखा जाता था। उस समय के स्कूल के छात्र पीटी सर से बहुत डरा करते थे। वे भय व आतंक के पर्याय थे। बच्चों को शारीरिक दंड भी दिया जाता था। अध्यापक की बात सुनकर बच्चे/छात्र थर-थर काँपते थे। उनके व्यवहार के लिए खाल खींचते जैसे मुहावरों का प्रयोग किया गया है। अनुशासन की यह युक्ति पूरी तरह से गलत मानी जानी चाहिए।

वर्तमान समय में अनुशासन के लिए इस प्रकार की युक्ति अपनाने की मनाही है। अदालत ने भी शारीरिक दंड पर रोक लगा दी है। छात्रों को मारना-पीटना कानूनी अपराध बन चुका है क्योंकि शारीरिक दंड बच्चों को भयभीत करते हैं जिससे उनका मन पढ़ाई से हट जाता है। आजकल बच्चों को सजा देने के लिए मनोवैज्ञानिक तरीके अपनाए जाते हैं जिनका उचित परिणाम देखने को मिलता है। अध्यापकों द्वारा विद्यार्थियों को समझा-बुझाकर, पुरस्कार आदि देकर अनुशासन बनाए रखने के लिए प्रेरित किया जाता है।

प्रश्न 10. बचपन की यादें मन को गुदगुदाने वाली होती हैं विशेषकर स्कूली दिनों की। अपने अब तक के स्कूली जीवन की खट्टी-मीठी यादों को लिखिए।

उत्तर
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 11. प्रायः अभिभावक बच्चों को खेल-कूद में ज्यादा रुचि लेने से रोकते हैं और समय बर्बाद न करने की नसीहत देते हैं। बताइए

  • खेल आपके लिए क्यों जरूरी हैं?
  • आप कौन-कौन से ऐसे नियम-कायदों को अपनाएँगे जिससे अभिभावकों को आपके खेल पर आपत्ति न हो?


उत्तर
(क) खेल प्रत्येक उम्र के बच्चे के लिए जरूरी हैं। खेल की बच्चे के शारीरिक-मानसिक विकास में अहम भूमिका होती है। खेल बच्चे की सोच को विस्तृत तथा विकसित करते हैं। इनसे बच्चे में सामूहिक रूप से काम करने की भावना का संचार होता है। बच्चे में प्रतिस्पर्धा तथा प्रतियोगिता हेतु आगे बढ़ने की होड़ और दौड़ में भाग लेने की इच्छा पैदा होती है। खेलों में भाग लेने से बच्चे को अपना तथा अपने देश का नाम रोशन करने का सुअवसर प्राप्त होता है।

(ख) मैं अपने अभिभावकों के लिए वही नियम और कायदों को अपनाऊँगा, जिनसे उनकी भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसलिए मैं समय पर खेलूंगा और समय पर खेलकर वापस आऊँगा। खेलने के साथ पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान दूंगा। मैं खेलने में उतना ही समय खर्च करूँगा, जितना आवश्यक होगा। अर्थात् मैं केवल वही नियम और कायदे अपनाऊँगा, जिनसे मेरे अभिभावकों को सुख-शांति मिलेगी।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।

प्रश्न 2. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।

प्रश्न 3. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?

उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।

प्रश्न 4. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?

उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।


प्रश्न 5. लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?

उत्तर- लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।

प्रश्न 6. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।

अथवा
लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आ जाती थीं फिर भी अभिभावक पैसों की कमी के कारण नहीं दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पढ़ाई भी तीसरी-चौथी में छूट जाती, परंतु स्कूल के हेडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पढ़ाने जाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।

प्रश्न 7. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?

उत्तर- पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।

प्रश्न 8. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सज़ा वाला कौन-सा दिन आजीवन नहीं भूल सके?

अथवा
फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जो बच्चों को आजीवन याद रहा?

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को। मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड बच्चे आजीवन नहीं भूल सके।

प्रश्न 9. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?

उत्तर- हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।

प्रश्न 10. प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?

उत्तर- विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, उनके चेहरे मुझए रहते। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है?(मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बडे ढंग से कटे-छाँटे झाड उगे थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं जिनकी महक बच्चों को आकर्षित करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।


प्रश्न 2. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था? (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- लेखक और उसके साथी गरमी की छुट्टियाँ खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाँग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ़ कर फिर टीले की ओर भाग जाते।

याद नहीं कि ऐसा, पाँच-दस बार करते या पंद्रह-बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चों द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहाँ नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जैसे इंडोर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं।


प्रश्न 3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)

उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी पढ़ाते थे। छात्रों को पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उन्हें शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होंने सभी को मुरगा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहा। इसी समय हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए। उन्होंने प्रीतमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उन्हें निलंबित कर दिया।

प्रीतमचंद का निलंबन उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी क्या कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।


प्रश्न 4. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Delhi 2013)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों से प्यार करते थे। वे बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से बच्चों को अनुशासित रखते हुए उन्हें पढ़ाने के पक्षधर थे। वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पक्षधर न थे। जो अध्यापक बच्चों को मारने-पीटने या शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापकों को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफ़ारिश कर देते थे।

हेडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योंकि बच्चों के मन से शिक्षा का भय निकालने के लिए मारपीट जैसे तरीके को बच्चों से कोसों दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो बहुत से डरे-सहमें कक्षा में बैठे रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर किसी तरह दिन बिताते हैं। ऐसे बच्चों के मन में अध्यापकों के सम्मान के नाम पर घृणा भर जाती है।

प्रश्न 5. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Foreign 2014)

उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था।छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।

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