NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 हरिहर काका
NCERT Class 10 Hindi Solutions Sanchayan Chapter 1 are provided here. We have covered all the intext questions of your textbook given in the lesson. We have also provided some additional questions which are important with respect to your exam. Read all of them to get good marks.
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
प्रश्न 1. कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं?
उत्तर
हरिहर काका और कथावाचक के बीच में गहरा संबंध था। दोनों एक ही गाँव के निवासी थे। कथावाचक हरिहर काका का बहुत सम्मान करता था। कथावाचक के हरिहर काका के प्रति लगाव के दो मुख्य कारण थे
- हरिहर काका का घर कथावाचक के पड़ोस में था। पड़ोसी होने के कारण सुख-दुख में उनका साथ रहा।
- लेखक की माँ के कथन के अनुसार हरिहर काका बचपन से उसे बहुत दुलार करते थे। वे एक पिता की भाँति उसे अपने कंधों पर बैठाकर घुमाया करते थे। वही दुलार बड़ा होने पर दोस्ती में बदल गया।
प्रश्न 2. हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी में क्यों लगने लगे?
उत्तर
हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी में इसलिए लगने लगे, क्योंकि
- दोनों ही स्वार्थ में आकंठ डूबे हैं। वे हरिहर काका से नहीं बल्कि उनकी जमीन-जायदाद चाहते हैं।
- उनकी ज़मीन पाने के लिए वे किसी भी हद तक गिर सकते थे। यहाँ तक कि काका की जान लेने पर भी उतर आए थे।
- दोनों ही काका के हितैषी होने का दावा करते हैं पर यह दिखावे के सिवा कुछ भी नहीं है। काका दोनों की ही सच्चाई देख चुके थे।
प्रश्न 3. ठाकुरबारी के प्रति गाँववालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं उससे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है?
उत्तर
ठाकुरबारी गाँव में एक प्राचीन धार्मिक स्थल है। ठाकुरबारी के संबंध में जो कहानी प्रचलित है, वह यह है कि वर्षों पहले जब यह गाँव पूरी तरह बसा भी नहीं था; कहीं से एक संत आकर इस स्थान पर झोंपड़ी बनाकर रहने लगे थे। वह सुबह-शाम यहाँ ठाकुरजी की पूजा करते थे। गाँववालों ने चंदा जमा करके ठाकुर जी का एक छोटा-सा मंदिर बनवा दिया। आबादी बढ़ने के साथ-साथ ठाकुरबारी का विकास होता गया। गाँव के लोगों का मानना था कि उनके सभी काम ठाकुरजी की कृपा से पूरे होते हैं। पुत्र के जन्म पर, मुकदमें की जीत पर, लड़की की शादी अच्छी जगह तय होने पर, लड़के को नौकरी मिलने पर, वे अपनी खुशी से ठाकुर जी पर रुपये, जेवर, अनाज आदि चढ़ाते थे। अधिक खुशी होती तो ठाकुरजी के नाम अपने खेत का एक छोटा-सा टुकड़ा लिख देते। इससे पता चलता है कि गाँव वालों में ठाकुरजी के प्रति अपार श्रद्धा थी। वे धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वे अपनी हर सफलता का श्रेय ठाकुर जी को देकर अपनी श्रद्धा और विनम्रता व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 4. अनपढ़ होते हुए भी हरिहर काका दुनिया की बेहतर समझ रखते हैं- कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हरिहर काका अच्छी तरह जान चुके थे कि महंत और उनके भाई जो आदर-सम्मान और सुरक्षा दे रहे हैं उसका कारण उनके साथ घनिष्ठ और सगे भाई का संबंध न होकर जायदाद है अन्यथा इसी गाँव में जायदादहीन को कौन पूछता है। ठाकुरबारी के महंत चिकनी-चुपड़ी बातें इसलिए करते थे ताकि काका की ज़मीन-जायदाद ठाकुरबारी के नाम वसीयत करा सकें। उनके भाइयों ने जो भी आदर-सत्कार और देखभाल बढ़ा दिया है वह भी उनकी जायदाद के कारण है। काका के सामने ऐसे अनेक उदाहरण थे जिन्होंने किसी बहकावे में आकर अपनी जायदाद दूसरों के नाम लिख दिया और वे उपेक्षापूर्ण कष्टमय जीवन जीने को विवश हुए।
प्रश्न 5. हरिहर काका को जबरन उठा ले जाने वाले कौन थे? उन्होंने उनके साथ कैसा बर्ताव किया?
उत्तर
हरिहर काकी को जबरन उठा ले जानेवाले ठाकुरबारी के महंत के भेजे हुए आदमी थे। वे ठाकुरबारी के साधु-संत और महंत के पक्षधर थे। वे लोग भाला, आँड़ासा और डंडे से लैस होकर आधी रात के समय हरिहर काका के घर आए और उन्हें जबरदस्ती अपनी पीठ पर लादकर चंपत हो गए। महंत और उनके साथियों ने हरिहर काका के साथ बुरा व्यवहार किया। उन्होंने काका के हाथ-पाँव बाँधकर मुँह में कपड़ा ठूसकर जबरन जमीन के कागज़ों पर अँगूठे के निशान लगवाए। उसके बाद उन्होंने काका को अनाज के गोदाम में बंद कर दिया।
प्रश्न 6. हरिहर काका के मामले में गाँव वालों की क्या राय थी? और उसके क्या कारण थे?
उत्तर
हरिहर काका के मामले में गाँववालों के दो अलग-अलग वर्ग थे। इस कारण उनकी राय भी अलग-अलग थी। हरिहर काकी के बारे में एक वर्ग जो ठाकुरबारी के महंत और साधु-संतों के साथ था, वह सोचता था कि काकी को अपनी जमीन-जायदाद ठाकुरबारी के नाम लिख देना चाहिए तथा अपना नाम अमर कर लेना चाहिए। ऐसा धार्मिक कार्य करके काका सीधे स्वर्ग को जाएँगे। हरिहर काका के बारे में प्रगतिशील विचारों वाले लोगों (किसानों) की राय यह थी कि काका को अपनी जमीन अपने भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए, क्योंकि वे किसान थे। वे किसान के लिए जमीन का महत्त्व जानते थे।
प्रश्न 7. कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने यह क्यों कहा, “अज्ञान की स्थिति में ही मनुष्य मृत्यु से डरते हैं। ज्ञान होने के बाद तो आदमी आवश्यकता पड़ने पर मृत्यु को वरण करने के लिए तैयार हो जाता है।”
उत्तर
लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि हरिहर काका दोनों ही स्थितियों से गुजरते हैं। पहले जब वे अज्ञान की स्थिति में थे तो मृत्यु से डरते थे परंतु बाद में ज्ञान होने पर वे मृत्यु का वरण करने का तैयार हो जाते हैं। ज्ञान होने पर काका को वे सब लोग याद आ जाते हैं, जिन्होंने परिवार वालों की मोहमाया में फँसकर अपनी ज़मीन उनके नाम कर दी। बाद में वे लोग दाने-दाने को मोहताज़ हो गए। काका सोचने लगे कि ऐसी दुर्गति होने से तो अच्छा है कि लोग उन्हें एक ही बार मार दें। कहानी में महंत एवं काका के भाई उनकी ज़मीन अपने नाम करवाने के लिए कई युक्तियाँ अपनाते हैं। महंत काका का अपहरण करवाता है। उसके आदमी काका को उठा ले जाते हैं, उन्हें डराते-धमकाते हैं। काका के भाई भी उन्हें डरा-धमकाकर ज़मीन अपने नाम करवाना चाहते हैं परंतु हरिहर काका पर उनकी धमकियों का कोई असर नहीं होता। वे मृत्यु का वरण करने के लिए तैयार हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि मृत्यु तो एक दिन होना ही है। अतः मृत्यु से डरना व्यर्थ है। हरिहर काका की इसी मनः स्थिति के कारण लेखक ने उक्त कथन कहा।
प्रश्न 8. समाज में रिश्तों की क्या अहमियत है? इस विषय पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
समाज में रिश्तों की विशेष अहमियत होती है। ये रिश्ते ही एक-दूसरे को अदृश्य डोर में बाँधे रहते हैं। ये रिश्ते व्यक्ति को मान-सम्मान दिलाने में सहायक होते हैं। ये रिश्ते ही हैं जिनके कारण व्यक्ति दूसरे के दुख-सुख में काम आता है। यदि रिश्ते न हों तो समाज में एक तरह का जंगलराज और अव्यवस्था का वातावरण होगा, जिसमें कोई किसी को पहचानेगा ही नहीं। इससे स्वार्थपरता, निजता और आत्मकेंद्रितता आदि का बोलबाला हो जाएगा। भाईचारा, पारस्परिक सौहार्द्र, प्रेम किसी अन्य लोक की बातें बनकर रह जाएँगी।
प्रश्न 9. यदि आपके आसपास हरिहर काका जैसी हालत में कोई हो तो आप उसकी किस प्रकार मदद करेंगे?
उत्तर
यदि हमारे घर के आसपास कोई हरिहर काका जैसी दशा में होगा तो हम उसकी हर संभव मदद करेंगे। पहले तो उसके परिवारवालों को समझाएँगे कि वे उस व्यक्ति के साथ इस तरह का व्यवहार न करें, उसे प्यार, सम्मान और अपनापन दें। फिर भी यदि वे न माने तो पड़ोस के बड़े-बुजुर्गों की सहायता लेंगे कि वे उनकी किसी प्रकार की सहायता करें। यदि पुलिस की मदद लेनी पड़ेगी तो हम पीछे नहीं हटेंगे। हम कोशिश करेंगे कि मीडिया भी सहयोग करे और उस व्यक्ति को इंसाफ़ दिलवाए।
प्रश्न 10. हरिहर कोका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो उनकी क्या स्थिति होती? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
हरिहर काका के गाँव में यदि मीडिया की पहुँच होती तो स्थिति एकदम विपरीत होती। हरिहर काका के अपहरण की बात अखबार और अन्य संचार माध्यमों की आवाज़ बन जाती। इससे पुलिस तत्काल महंत, साधुजन और उनके पक्षधरों पर कार्यवाही करती। इसी प्रकार हरिहर काका के भाइयों की अत्याचार की खबर प्रकाशित होते ही उनके विरुद्ध कार्यवाही होती और हरिहर काका की मदद के लिए अनेक समाज सेवी तथा वृद्धाश्रम संचालक तैयार हो जाते। इतना ही नहीं समाज के कुछ सहृदय व्यक्ति उन्हें गोद ले लेते। संभवतः स्वयंसेवियों द्वारा दायर किसी याचिका पर फैसला सुनाते हुए न्यायालय उनके भाइयों को जमीन देने के बदले हरिहर काका के लिए गुजारा भत्ता तय कर देती। ऐसी स्थिति में हरिहर काका को अपने भाइयों और ठाकुरबारी के भय के साये में न जीना पड़ता और उनकी ऐसी दुर्गति न होती और वे मुँगेपन का शिकार न होते।
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ‘बच्चों की यह स्वाभाविक विशेषता होती है कि खेल ही उन्हें सबसे अच्छा लगता है।’ सपनों के-से दिन नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ नामक पाठ से ज्ञात होता है कि लेखक और उसके बचपन के साथी मिल-जुलकर खेलते थे। खेल खेल में जब उन्हें चोट लग जाती थी और धूल एवं रक्त जमे कई जगह से छिले पाँव लेकर घर जाते थे तो सभी की माँ-बहनें और बाप उन पर तरस खाने की जगह बुरी तरह से पिटाई करते थे, फिर भी वे अगले दिन फिर खेलने चले आते थे। इससे स्पष्ट होता है कि बच्चों को खेलना सबसे अधिक अच्छा लगता है।
प्रश्न 2. लेखक के बचपन के समय बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- अपने बचपन के दिनों में लेखक जिन बच्चों के साथ खेलता था, उनमें अधिकांश तो स्कूल जाते ही न थे और जो कभी गए भी वे पढ़ाई में अरुचि होने के कारण किसी दिन अपना बस्ता तालाब में फेंककर आ गए और फिर स्कूल गए ही नहीं। उनका सारा ध्यान खेलने में रहता था। इससे स्पष्ट है कि लेखक के बचपन के दिनों में बच्चे पढ़ाई में रुचि नहीं लेते थे।
प्रश्न 3. लेखक के बचपन में बच्चों के न पढ़ पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे। इससे आप कितना सहमत हैं?
उत्तर- लेखक के बचपन में अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रयास नहीं करते थे। परचूनिये और आढ़तीये जैसे कारोबारी भी अध्यापक से कहते थे कि मास्टर जी, हमने इसे कौन-सा तहसीलदार लगवाना है। थोड़ा बड़ा हो जाए तो पंडत घनश्याम दास से मुनीमी का काम सिखा देंगे। स्कूल में अभी तक यह कुछ भी नहीं सीख पाया है। इससे स्पष्ट है कि बच्चों की पढ़ाई न हो पाने के लिए अभिभावक अधिक जिम्मेदार थे।
प्रश्न 4. गरमी की छुट्टियों के पहले और आखिरी दिनों में लेखक ने क्या अंतर बताया है?
उत्तर- लेखक ने बताया है कि तब गरमी की छुट्टियाँ डेढ़-दो महीने की हुआ करती थीं। छुट्टियों के शुरू के दो-तीन सप्ताह तक बच्चे खूब खेल-कूद किया करते थे। वे सारा समय खेलने में बिताया करते थे। छुट्टियों के आखिरी पंद्रह-बीस दिनों में अध्यापकों द्वारा दिए गए कार्य को पूरा करने का हिसाब लगाते थे और कार्य पूरा करने की योजना बनाते हुए उन छुट्टियों को भी खेलकूद में बिता देते थे।
प्रश्न 5. लेखक ने ‘सस्ता सौदा’ किसे कहा है? और क्यों?
उत्तर- लेखक ने सस्ता सौदा’ उस समय के मास्टरों द्वारा की जाने वाली पिटाई को कहा है। इसका कारण यह है कि उस समय के अध्यापक गरमी की छुट्टियों के लिए दो सौ सवाल दिया करते थे। बच्चे इसके बारे में तब सोचते जब उनकी छुट्टियाँ पंद्रह-बीस बचती। वे सोचते थे कि एक दिन में दस सवाल करने पर भी बीस दिन में पूरा हो जाएगा। दस दिन छुट्टियाँ और बीतने पर वे बीस सवाल प्रतिदिन पूरा करने की बात सोचते पर काम न करते। अंत में मास्टरों की पिटाई को सस्ता सौदा समझकर उसे ही स्वीकार कर लेते थे।
प्रश्न 6. लेखक ने सातवीं कक्षा तक की जो पढ़ाई की उसमें स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान अधिक था। स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेखक की पढ़ाई में हेडमास्टर शर्मा जी का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- लेखक को याद है कि उस समय पूरे साल की किताबें एक या दो रुपए में आ जाती थीं फिर भी अभिभावक पैसों की कमी के कारण नहीं दिला पाते थे। ऐसी स्थिति में उसकी पढ़ाई भी तीसरी-चौथी में छूट जाती, परंतु स्कूल के हेडमास्टर जो किसी अमीर परिवार के बच्चे को पढ़ाने जाते थे, वे उसकी पुरानी किताबें प्रतिवर्ष लेखक को दे दिया करते थे। इससे लेखक ने सातवीं तक की पढ़ाई कर ली। इस तरह उसकी पढ़ाई में स्कूल के हेडमास्टर शर्मा जी का विशेष योगदान था।
प्रश्न 7. पीटी मास्टर प्रीतमचंद को देखकर बच्चे क्यों डरते थे?
उत्तर- पीटी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में कभी भी हमने मुसकराते या हँसते न देखा था। उनका ठिगना कद, दुबला पतला परंतु गठीला शरीर, माता के दागों से भरा चेहरा और बाज-सी तेज आँखें, खाकी वरदी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले बूट-सभी कुछ ही भयभीत करने वाला हुआ करता। उनका ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के मन में भय पैदा करता और वे डरते थे।
प्रश्न 8. लेखक और उसके साथी प्रीतमचंद की दी गई सज़ा वाला कौन-सा दिन आजीवन नहीं भूल सके?
अथवा
फ़ारसी की कक्षा में मास्टर प्रीतमचंद ने किस तरह शारीरिक दंड दिया जो बच्चों को आजीवन याद रहा?
उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद बच्चों को चौथी कक्षा में फ़ारसी पढ़ाते थे। बच्चों को फ़ारसी अंग्रेज़ी से भी कठिन लगती थी। एक सप्ताह बाद ही प्रीतमचंद ने बच्चों को शब्द रूप याद करके आने और उसे जबानी सुनाने को कहा पर कठिन होने के कारण कोई भी लड़का न सुना सका। यह देख प्रीतमचंद को गुस्सा आया और उन्होंने बच्चों को मुरगा बना दिया। उनके द्वारा लड़कों को। मुरगा बनाने का ढंग बड़ा ही कष्टदायी होता था। उनके द्वारा दिया गया यह शारीरिक दंड बच्चे आजीवन नहीं भूल सके।
प्रश्न 9. हेडमास्टर ने प्रीतमचंद के विरुद्ध क्या कार्यवाही की?
उत्तर- हेडमास्टर शर्मा जी ने देखा कि प्रीतमचंद ने छात्रों को मुरगा बनवाकर शारीरिक दंड दे रहे हैं तो वे क्रोधित हो उठे। उन्होंने इसे तुरंत रोकने का आदेश दिया। उन्होंने प्रीतमचंद के निलंबन का आदेश रियासत की राजधानी नाभा भेज दिया। वहाँ के शिक्षा विभाग के डायरेक्टर हरजीलाल के आदेश की मंजूरी मिलना आवश्यक था। तब तक प्रीतमचंद स्कूल नहीं आ सकते थे।
प्रश्न 10. प्रीतमचंद के निलंबन के बाद भी बच्चों के मन में उनका डर किस तरह समाया था?
उत्तर- विद्यालय के लड़के पीटी मास्टर प्रीतमचंद की पिटाई से इतने डरे हुए थे कि यह पता होते हुए भी कि पीटी मास्टर प्रीतमचंद को जब तक नाभा से डायरेक्टर ‘बहाल’ नहीं करेंगे तब तक वह स्कूल में कदम नहीं रख सकते, जब भी फ़ारसी की घंटी बजती तो बच्चों की छाती धक्-धक करती फटने को आती। परंतु जब तक शर्मा जी स्वयं या मास्टर नौहरिया राम जी कमरे में फ़ारसी पढ़ाने न आ जाते, उनके चेहरे मुझए रहते। इस तरह उनका डर बच्चों के मन में जमकर बैठ चुका था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक ने अपने विद्यालय को हरा-भरा बनाने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया है। इससे आपको क्या प्रेरणा मिलती है?(मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- लेखक के विद्यालय में अंदर जाने के रास्ते के दोनों ओर अलियार के बडे ढंग से कटे-छाँटे झाड उगे थे। उसे उनके नीम जैसे पत्तों की गंध अच्छी लगती थी। इसके अलावा उन दिनों क्यारियों में कई तरह के फूल उगाए जाते थे। इनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी कलियाँ होती थीं जिनकी महक बच्चों को आकर्षित करती थी। ये फूलदार पौधे विद्यालय की सुंदरता में वृद्धि करते थे। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें भी अपने विद्यालय को स्वच्छ बनाते हुए हरा-भरा बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें तरह-तरह के पौधे लगाकर उनकी देखभाल करना चाहिए और विद्यालय को हरा-भरा बनाने में अपना योगदान देना चाहिए।
प्रश्न 2. लेखक और उसके साथियों द्वारा गरमी की छुट्टियाँ बिताने का ढंग आजकल के बच्चों द्वारा बिताई जाने वाली छुट्टियों से किस तरह अलग होता था? (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- लेखक और उसके साथी गरमी की छुट्टियाँ खेलकूद कर बिताते थे। वे घर से कुछ दूर तालाब पर चले जाते, कपड़े उतार पानी में कूद जाते और कुछ समय बाद, भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर, रेत के ऊपर लेटने लगते। गीले शरीर को गरम रेत से खूब लथपथ कर उसी तरह भागते, किसी ऊँची जगह से तालाब में छलाँग लगा देते। रेत को गंदले पानी से साफ़ कर फिर टीले की ओर भाग जाते।
याद नहीं कि ऐसा, पाँच-दस बार करते या पंद्रह-बीस बार करते हुए आनंदित होते। आजकल के बच्चों द्वारा ग्रीष्मावकाश पूरी तरह अलग ढंग से बिताया जाता है। अब तालाब न रहने से वहाँ नहाने का आनंद नहीं लिया जा सकता। बच्चे घर में रहकर लूडो, चेस, वीडियो गेम, कंप्यूटर पर गेम जैसे इंडोर गेम खेलते हैं। वे टीवी पर कार्टून और फ़िल्में देखकर अपना समय बिताते हैं। कुछ बच्चे माता-पिता के साथ ठंडे स्थानों या पर्वतीय स्थानों की सैर के लिए जाते हैं।
प्रश्न 3. मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल से क्यों निलंबित कर दिया गया? निलंबन के औचित्य और उस घटना से उभरने वाले जीवन-मूल्यों पर विचार कीजिए। (मूल्यपरक प्रश्न)
उत्तर- मास्टर प्रीतमचंद सख्त अध्यापक थे। वे छात्रों की जरा-सी गलती देखते ही उनकी पिटाई कर देते थे। वे छात्रों को फ़ारसी पढ़ाते थे। छात्रों को पढ़ाते हुए अभी एक सप्ताह भी न बीता था कि प्रीतमचंद ने उन्हें शब्द रूप याद करके आने को कहा। अगले दिन जब कोई भी छात्र शब्द रूप न सुना सका तो उन्होंने सभी को मुरगा बनवा दिया और पीठ ऊँची करके खड़े होने के लिए कहा। इसी समय हेडमास्टर साहब वहाँ आ गए। उन्होंने प्रीतमचंद को ऐसा करने से तुरंत रोकने के लिए कहा और उन्हें निलंबित कर दिया। प्रीतमचंद का निलंबन उचित ही था, क्योंकि बच्चों को इस तरह फ़ारसी क्या कोई भी विषय नहीं पढ़ाया जा सकता है। शारीरिक दंड देने से बच्चों को ज्ञान नहीं दिया जा सकता है। इससे बच्चे दब्बू हो जाते हैं। उनके मन में अध्यापकों और शिक्षा के प्रति भय समा जाता है। इससे पढ़ाई में उनकी रुचि समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 4. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में हेडमास्टर शर्मा जी की, बच्चों को मारने-पीटने वाले अध्यापकों के प्रति क्या धारणा थी? जीवन-मूल्यों के संदर्भ में उसके औचित्य पर अपने विचार लिखिए। (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Delhi 2013)
उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित हेडमास्टर शर्मा जी बच्चों से प्यार करते थे। वे बच्चों को प्रेम, अपनत्व, पुरस्कार आदि के माध्यम से बच्चों को अनुशासित रखते हुए उन्हें पढ़ाने के पक्षधर थे। वे गलती करने वाले छात्र की भी पिटाई करने के पक्षधर न थे। जो अध्यापक बच्चों को मारने-पीटने या शारीरिक दंड देने का तरीका अपनाते थे, उनके प्रति उनकी धारणा अच्छी न थी। ऐसे अध्यापकों के विरुद्ध वे कठोर कदम उठाते थे। ऐसे अध्यापकों को स्कूल में आने से रोकने के लिए वे उनके निलंबन तक की सिफ़ारिश कर देते थे।
हेडमास्टर शर्मा जी का ऐसा करना पूरी तरह उचित था, क्योंकि बच्चों के मन से शिक्षा का भय निकालने के लिए मारपीट जैसे तरीके को बच्चों से कोसों दूर रखा जाना चाहिए। मारपीट के भय से अनेक बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं तो बहुत से डरे-सहमें कक्षा में बैठे रहते हैं और पढ़ाई के नाम पर किसी तरह दिन बिताते हैं। ऐसे बच्चों के मन में अध्यापकों के सम्मान के नाम पर घृणा भर जाती है।
प्रश्न 5. ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता था? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है और इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है? (मूल्यपरक प्रश्न) (CBSE Foreign 2014)
उत्तर- ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में जिस समय का वर्णन हुआ है उस समय अधिकांश अभिभावक अनपढ़ थे। वे निरक्षर होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते थे। इतना ही नहीं वे खेलकूद को समय आँवाने से अधिक कुछ नहीं मानते थे। अपनी इसी सोच के कारण, बच्चे खेलकूद में जब चोटिल हो जाते और कई जगह छिला पाँव लिए आते तो उन पर रहम करने की जगह पिटाई करते। वे शारीरिक विकास और जीवन-मूल्यों के उन्नयन में खेलों की भूमिका को नहीं समझते थे, इसलिए बच्चों को खेलकूद में रुचि लेना उन्हें अप्रिय लगता था।
छात्रों के लिए पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी विशेष महत्त्व है। ये खेलकूद एक ओर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आवश्यक हैं, तो दूसरी ओर सहयोग की भावना, पारस्परिकता, सामूहिकता, मेल-जोल रखने की भावना, हार-जीत को समान समझना, त्याग, प्रेम-सद्भाव जैसे जीवन-मूल्यों को उभारते हैं तथा उन्हें मजबूत बनाते हैं। इन्हीं जीवन-मूल्यों को अपना कर व्यक्ति अच्छा इनसान बनता है।