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Home Class 10th Solutions 10th Sanskrit

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

by Sudhir
January 6, 2022
in 10th Sanskrit, Class 10th Solutions
Reading Time: 4 mins read
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NCERT Class 10th Sanskrit Solutions
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Table of Contents

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  • Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला
    • Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Summary Translation in Hindi and English
    • Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 MCQs वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला

NCERT Solutions for Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Answers in easily understandable language to keep you prepared.

अभ्यासः

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत

(क) कृषकः किं करोति स्म?
उत्तर:
कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं करोति स्म।

(ख) माता सुरभिः किमर्थ अश्रूणि मुञ्चति स्म?
उत्तर:
माता सुरभिः तं दुर्बलं वृषभं दृष्ट्वा अश्रूणि मुञ्चति स्म।

(ग) सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य किमुत्तरं ददाति?
उत्तर:
सुरभिः इन्द्रस्य प्रश्नस्य उत्तरं ददाति यत्, दुर्बले सुते मातुः अधिका कृपा सहजैव।

(घ) मातुः अधिका कृपा कस्मिन् भवति?
उत्तर:
मातुः अधिका कृपा दुर्बले सुते भवति।

(ङ) इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् कि कृतवान्?
उत्तर:
इन्द्रः दुर्बलवृषभस्य कष्टानि अपाकर्तुम् प्रवर्षः (वृष्टिः ) कृतवान्।

(च) जननी कीदृशी भवति?
उत्तर:
जननी तुल्य वत्सला भवति।

(छ) पाठेऽस्मिन् कयोः संवादः विद्यते?
उत्तर:
पाठेऽस्मिन् सुरभीन्द्रयोः संवाद: वियते?

प्रश्न 2.
‘क’ स्तम्भे दत्तानां पदानां मेलनं ‘ख’ स्तम्भे दत्तैः समानार्थकपदैः कुरुत

क स्तम्भ – ख स्तम्भ
(क) कृच्छ्रेण – (i) वृषभः
(ख) चक्षुभ्याम् – (ii) वासवः
(ग) जवेन – (iii) नेत्राभ्याम्
(घ) इन्द्रः – (iv) अचिरम्
(ङ) पुत्राः – (v) द्रुतगत्या
(च) शीघ्रम् – (vi) काठिन्येन
(छ) बलीवर्दः – (vii) सुताः
उत्तर:
(क) कृच्छ्रेण – काठिनयेन्
(ख) चक्षुभ्याम् – नेत्राभ्याम्
(ग) जवेन – दतगत्या
(घ) इन्द्रः – वासवः
(ङ) पुत्राः – सुताः
(च) शीघ्रम् – अचिरम्
(छ) बलीवर्दः – वृषभः

प्रश्न 3.
स्थूलपदमाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) सः कृच्छ्रेण भारम् उद्वहति।
उत्तर:
सः केन् भारम् उदवहति?

(ख) सुराधिपः ताम् अपृच्छत्।
उत्तर:
कः ताम् अपृच्छत?

(ग) अयम् अन्येभ्यो दुर्बलः।
उत्तर:
अयम् केभ्यो दुर्बल:?

(घ) धेनूनाम् माता सुरभिः आसीत्।
उत्तर:
काम् माता सुरभिः आसीत?

(ङ) सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत्।
उत्तर:
केषु पुत्रेषु सत्स्वपि सा दुःखी आसीत?

प्रश्न 4.
रेखांकितपदे यथास्थानं सन्धि विच्छेद वा कुरुत

(क) कृषकः क्षेत्रकर्षणं कुर्वन् + आसीत्।
उत्तर:
कुर्वन्नासीत

(ख) तयोरेक: वृषभ: दुर्बलः आसीत्।
उत्तर:
तयोः + एकः

(ग) तथापि वृषः न + उत्थितः।
उत्तर:
नोत्थितः

(घ) सत्स्वपि बहुषु पुत्रेषु अस्मिन् वात्सल्यं कथम्?
उत्तर:
सत्सु+अपि

(ङ) तथा + अपि + अहम् + एतस्मिन् स्नेहम् अनुभवामि।
उत्तर:
तथाप्याहमेतस्मिन्

(च) मे बहूनि + अपत्यानि सन्ति।
उत्तर:
बहून्यपत्यानि

(छ) सर्वत्र जलोपप्लव: संजात:।
उत्तर:
जल+उपप्लव:

प्रश्न 5.
अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितसर्वनामपद कस्मै प्रयुक्तम्

(क) सा च अवदत् भो वासव! अहम् भृशं दुःखिता अस्मि ।
उत्तर:
सुरभिः

(ख) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
उत्तर:
सुरभिः

(ग) सः दीनः इति जानन् अपि कृषक: तं पीडयति।
उत्तर:
वृषभः (दुर्बल)

(घ) मे बहूनि अपत्यानि सन्ति।
उत्तर:
सुरभिः

(ङ) सः च ताम् एवम् असान्त्वयत्।
उत्तर:
इन्द्रः

(च) सहस्रेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन् प्रीतिः अस्ति।
उत्तर:
सुरभिः

प्रश्न 6.
उदाहरणमनुसृत्य पाठात् चित्वा प्रकृति प्रत्यय विभाग कुरुतः

यथा – सुरभिवचनं श्रुत्वा इन्द्रः विस्मितः। (श्रु+क्त्वा)
(क) बलीवाभ्या क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।
उत्तर:
कुर्वन् + शत् + आसीत

(ख) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूना मातुः नेत्राभ्यां अश्रूणि आविरासन्।
उत्तर:
दृश् + कत्वा

(ग) सः दीनः इति जानन् अपि पीडयति।
उत्तर:
जन् + शत

(घ) धुर वोढुं सः न शक्नोति।
उत्तर:
वोड़ + तुमुन (उदधातु)

(ङ) विशिष्य आत्मवेदनानुभवामि।
उत्तर:
वि + शिष् + ल्यप्

(च) वृषभो नीत्वा गृहमगात्।
उत्तर:
नी + कत्वा

प्रश्न 7.
‘क’ स्तम्भे विशेषणपदं लिखितम्, ‘ख’ स्तम्भे पुनः विशेष्यपदम्। तयोः मेलनं कुरुत

क स्तम्भ – ख स्तम्भ
(क) कश्चित् – (i) वृषभम्
(ख) दुर्बलम् – (ii) कृपा
(ग) क्रुद्धः – (iii) कृषीवल:
(घ) सहस्राधिकेषु – (iv) आखण्डल:
(ङ) अभ्यधिका – (v) जननी
(च) विस्मितः – (vi) पुत्रेषु
(छ) तुल्यवत्सला – (vii) कृषक:
उत्तर:
(क) – (vii)
(ख) – (i)
(ग) – (iii)
(घ) – (vi)
(ङ) – (ii)
(च) – (iv)
(छ) – (v)

योग्यताविस्तारः

प्रस्तुत पाठ्यांश महाभारत से उद्धृत है, जिसमें मुख्यतः व्यास द्वारा धृतराष्ट्र को एक कथा के माध्यम से यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि तुम पिता हो और एक पिता होने के नाते अपने पुत्रों के साथ-साथ अपने भतीजों के हित का ख्याल रखना भी उचित है। इस प्रसंग में गाय के मातृत्व की चर्चा करते हुए गोमाता सुरभि और इन्द्र के संवाद के माध्यम से यह बताया गया है कि माता के लिए सभी सन्तान बराबर होती हैं। उसके हृदय में सबके लिए समान स्नेह होता है। इस कथा का आधार महाभारत, वनपर्व, दशम अध्याय, श्लोक संख्या 8 से श्लोक संख्या 16 तक है। महाभारत के विषय में एक श्लोक प्रसिद्ध है,

धर्मे अर्थे च कामे च मोक्षे च भरतर्षभ।
यदिहास्ति तवन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ।।

अर्थात्- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन पुरुषार्थ-चतुष्टय के बारे में जो बातें यहाँ हैं वे तो अन्यत्र मिल सकती हैं, पर जो कुछ यहाँ नहीं है, वह अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है।
उपरोक्त पाठ में मानवीय मूल्यों की पराकाष्ठा दिखाई गई है। यद्यपि माता के हृदय में अपनी सभी सन्ततियों के प्रति समान प्रेम होता है, पर जो कमजोर सन्तान होती है उसके प्रति उसके मन में अतिशय प्रेम होता है।

मातृमहत्त्वविषयक श्लोक
नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया।
– वेदव्यास

उपाध्यायान्वशाचार्य, आर्चायेभ्यः शतं पिता।
सहस्रं तु पितृन् माता, गौरवेणातिरिच्यते॥
-मनुस्मृति

माता गुरुतरा भूमेः, खात् पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वातात्, चिन्ता बहुतरी तृणात्।।
– महाभारत

निरतिशयं गरिमाणं तेन जनन्याः स्मरन्ति विद्वांसः।
यत् कमपि वहति गर्भे महतामपि स गुरुर्भवति।।

भारतीय संस्कृति में गौ का महत्त्व अनादिकाल से रहा है। हमारे यहाँ सभी इच्छित वस्तुओं को देने की क्षमता गाय में है, इस बात को कामधेनु की संकल्पना से समझा जा सकता है। कामधेनु के बारे में यह माना जाता है कि उनके सामने जो भी इच्छा व्यक्त की जाती है वह तत्काल फलवती हो जाती है।

काले फलं यल्लभते मनुष्यो
न कामधेनोश्च समं द्विजेभ्यः॥

कन्यारवानां करिवाजियुक्तैः
शतैः सहस्रैः सततं द्विजेभ्यः।

दत्तैः फलं यल्लभते मनुष्यः
समं तथा स्यान्नतु कामधेनोः।।

गाय के महत्त्व के संदर्भ में महाकवि कालिदास के रघुवंश में, सन्तान प्राप्ति की कामना से ग़जा दिलीप द्वारा ऋषि वशिष्ठ की कामधेनु नन्दिनी की सेवा और उनकी प्रसन्नता से प्रतापी पुत्र प्राप्त करने की कथा भी काफी प्रसिद्ध है। आज भी गाय की उपयोगिता प्राय: सर्वस्वीकृत ही है।

एकत्र पृथ्वी सर्वा, सशैलवनकानना।
तस्याः गौायसी, साक्षादेकत्रोभयतोमुखी।
गावो भूतं च भव्यं च, गावः पुष्टिः सनातनी।
गावो लक्षम्यास्तथाभूतं, गोषु दत्तं न नश्यति॥

Class 10 Sanskrit Shemushi Chapter 5 जननी तुल्यवत्सला Summary Translation in Hindi and English

पाठपरिचय – यह कथा महाभारत के वनपर्व से ली गई है महाभारत में अनेक ऐसे प्रसंग है जिसकी आवश्सयकता आज के युग में हो यह कथा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं अपितु जीव जन्तुओं के प्रति भी समदृष्टि (समान भाव) पर बल देती है। समाज में यह देखा गया है कि कमजोर व दुर्बल जीवों के प्रति माँ की ममता प्रगाढ़ होती है। यह पाठ इसी माँ की ममता पर अभिप्रेरित हैं।

1. कश्चित् कृषक: बलीवभ्या क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयो : बलीवर्दयो : एकः शरीरेण दुर्बल: जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्। अतः कृषक: तं दुर्बल वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। सः ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः।
भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधनूनां मातुः सुरभे: नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-” अयि शुभे! किमेव रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च

विनिपातो न वः कश्चित् दृश्यते त्रिदशाधिपः।
अहं तु पुत्र शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥

“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। स: दीन इति जानन्नपि कृषक: तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्।

शब्दार्थ:
बलीवदाभ्याम् – वृषभाभ्याम् (दो बैलों से)
क्षेत्रकर्षणम् – क्षेत्रस्य कर्षणम् (खेत की जुताई)
जवेन – तीव्रगत्या (तीव्रगति से)
तोदनेन – कष्टप्रदानेन (कष्ट देने से)
नुद्यमानः – बलेन नीयमानः (धकेला जाता हुआ, हाँका जाता हुआ)
हलमूढ्वा – हलम् आदाय (हल उठाकर, हल होकर)
पपात – भूमी अपतत् (गिर गया)
कृषीवल: – कृषक: (किसान)
उत्थापयितुम – उपरि नेतुम् (उठाने के लिए)
वृषः – वृषभः (बैल)
धेनूनाम् – गवाम् (गायों की)
नेत्राभ्याम् – चक्षुाम्, नयनाभ्याम् (दोनों आँखों से)
अश्रूणि – नयनजलम् (आँसू)
आविरासाविरासन् – आगताः (आने लगे, आए)
सुराधिपः – सुराणां राजा. (देवताओं के राजा) देवानाम् अधिपः
उच्यताम् – कथ्यताम् (कहें. कहा जाए)
वासव – इन्द्रः, देवराजः (इन्द्र)
कृच्छ्रेण – काठिन्येन (कठिनाई से)
इतरमिव – भिन्नम् इव (दूसरों के समान)
धुरम् – धुरम् (जुए को (गाडी के जुए का वह भाग) जो बेलों के कंधों पर रखा रहता है)
वोढुम् – वहनाय योग्यम् (ढोने के लिए)
प्रत्यवोचत – उत्तरं दत्तवान् (जवाब दिया)

सरलार्थ: –
(किसी समय) कोई किसान दो बैलों से खेत की जुताई कर रहा था। उनके दो बैलों में से एक शरीर से तीव्रगति से कमजोर होता जा रहा था अतः किसान उस कमजोर बैल को कष्ट देते हुए हॉका जा रहा था वह बैल हल को उठाने में असक्षम होता हुआ खेत में गिर गया। क्रोधित किसान ने उरुको उठाने की कितनी ही बार कोशिश की। फिर भी वह नहीं उठा। भूमि पर पड़े हुए अपने पत्र को देखकर सभी गायों की माता सुरभि आँखो में आँसू आने दशा में देखकर राजा लगे। सुरभि की इस दशा में देखकर राजा इन्द्र ने पूछाः “हे सुरभि क्यों इस प्रकार से रही हो? कहो।

ऐसा और वह है कोशिक (इन्द्र) उस के द्वारा गिराया हुआ वह (बैल) क्या आपको नहीं दिख रहा है में (प्रकति माता) तो उस पुत्र के लिए रो रही है। हे वासव (इन्द्र) पुत्र की दीन हीन दशा देखकर से रही हूँ। वह कमजोर है जानते हुए भी किसान उस (बैल) को कष्ट दे रहा है वह कठिनाई से भार उठा पा रहा है दूसरे बैल की तरह धुरी (जुई का भार नहीं उठा पा रहा है ऐसा आप नहीं देख रहे है क्या “ऐसा जवाब दिया।

2. “भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्

यदि पुत्रसहस्र मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा।।

“बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्देष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्-” गच्छ वत्से! सर्व भद्रं जायेत।”
अचिरादेव चण्डवाढेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। पश्यतः एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
कृषक: हर्षतिरेकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने त, सा माता कृपादई दया भवते ।।

शब्दार्थ:
नूनम् – निश्चयेन (निश्चय ही)
सहस्रम् – दशशतम् (हजार)
वात्सल्यम् – स्नेहभावः (वात्सल्य) (प्रेमभाव)
अपत्यानि – सन्ततयः (सन्तान)
विशिष्य – विशेषतः (विशेषकर)
वेदनाम् – पीड़ाम्, दुःखम् (कष्ट को)
तुल्यवत्सला – समस्नेहयुता (समान रूप से प्यार करने वाली)
सुतः – पुत्र:/तनयः (पुत्र)
भृशम् – अत्यधिकम् (बहुत अधिक)
आखण्डलस्य – देवराजस्य इन्द्रस्य (इन्द्र का)
असान्त्वयत् – सान्त्वना दत्तवान्, (सान्त्वना दी) (दिलासा दी) समाश्वासयत्
अचिरात् – शीघ्रम् (शीघ्र ही)
चण्डवातेन – वेगयुता वायुना (प्रचण्ड (तीव्र) हवा से)
मेघरवैः – मेघस्य गर्जनेन (बादलों के गर्जन
प्रवर्षः – वृष्टिः (वर्षा)
जलोपप्लवः – जलस्य विपत्तिः (जलसंकट) (उपप्लवः विपत्ति)
कर्षणविमुखः – कर्षणकर्मणा विमुखः (जोतने के काम से विमुख होकर)
वृषभौ – वृषौ (दोनों बैलों को)
अगात् – गतवान्, अगच्छत् (गया)
त्रिदशाधिपः – त्रिदशानाम्
अधिप: – इन्द्रः,(देवताओं का राजा-इन्द्र)
प्रतोदेन – अत्यधिवेन कष्टप्रददण्डेन (कष्टदायक डण्डे से)
अभिनन्तम् – मारयन्तम् (मारते हुए)
लाङ्गलेन – हलेन (हल से)
निपीडितम् – पीड़ितोऽभवत् (पीड़ित होते हुए)

सरलार्थ: –
हे भेद्र (सुरभि) निश्चय ही हजारों पुत्र आपके है, फिर इस पुत्र पर इतना प्यार क्यों इस प्रकार इन्द्र ने सुरभि से पूछा-और सुरभि ने इस प्रकार उत्तर दिया।
” यदि मेरे हजारों पुत्र है तो वे सब मेरे लिए समान है लेकिन हे इन्द्र! कमजोर पुत्र (गरीब) पुत्र पर माँ की ममता (कृपा) अधिक होती है।”
“मेरे बहुत सी संताने है यह सत्य है। फिर भी इस पुत्र में मेरी विशेष आत्म वेदना अनुभव कर रही हूँ क्यों कि यह दूसरों से दुर्बल (कमजोर) है। सभी संतानों पर माँ की ममता रहती है फिर भी दुर्बल संतान पर माँ की ममता अधि क होती है यह सहज है।”

सुरभि के वचन सुनकर बहुत अधिक विस्मित इन्द्र का हृदय भी द्रवित हो गया और इन्द्र ने सुरभि को सांत्वना दी (दिलासा दी) है वत्स जाओं सब ठीक हो जाएगा। शिघ्र ही प्रचंड वायु के वेग से बादलों की गर्जना के साथ वर्षा हो गयी सभी और जल ही जल हो गया। किसान प्रसन्न होकर जोतने के काम से विमुख होकर दोनों बैलों को घर ले आया।

श्लोकान्वयः सर्वेषु अपव्येषु जननी तुल्य वत्सला च (पर) दीने पुत्रे (तु) माता आई हृद्धया कृपा भवेत “सभी संतानों पर माँ की ममता समान होती है लेकिन कमजोर पर मां की कृपा आर्द्रद्धय (विशेष) होती है।”

Shemushi Sanskrit Class 10 Solutions Chapter 5 MCQs वस्तुनिष्ठ प्रश्न

कोष्ठकेषु उचितं उत्तरं चित्वा प्रश्ननिर्माणं कुरुत

Question 1.
दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा भवति।
(i) के
(ii) कति
(iii) कस्य
(iv) कस्याः

Answer

Answer: (iv) कस्याः


Question 2.
सर्वत्र एव जलोपप्लवः सञ्जातः।
(i) कः
(ii) कीदृशः
(iii) किम्
(iv) कथम्

Answer

Answer: (ii) कीदृशः


Question 3.
बहूनि अपत्यानि सन्ति।
(i) कानि
(ii) कीदृशाः
(iii) कथम्
(iv) कम्

Answer

Answer: (i) कानि


Question 4.
एक :बलीवर्दः शरीरेण दुर्बलः आसीत्।
(i) केन
(ii) कथम्
(ii) कीदृशम्
(iv) किम्

Answer

Answer: (i) केन


Question 5.
कृषीवलः क्रुद्धः अभवत्।
(i) कः
(ii) कीदृशः
(iii) किम्
(iv) केन

Answer

Answer: (ii) कीदृशः


Question 6.
मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्।
(i) काः
(ii) कस्याः
(iii) कीदृशः
(iv) काम्

Answer

Answer: (ii) कस्याः


Question 7.
पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहम् रोदिमि।
(i) किम्
(ii) कम्
(iii) कः
(iv) कीदृशम्

Answer

Answer: (i) किम्


Question 8.
कृषक: तं दीनम् बहुधा पीङयति।
(i) कीदृशम्
(ii) किम्
(iii) केन
(iv) कथम्

Answer

Answer: (i) कीदृशम्


Question 9.
क्रुद्ध कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्।
(i) कीदृशम्
(ii) कतिवारम्
(iii) एकवारम्
(iv) किम्

Answer

Answer: (ii) कतिवारम्


Question 10.
सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला भवति।
(i) कासु
(ii) केषु
(iii) कस्याः
(iv) कथम्

Answer

Answer: (ii) केषु


Question 11.
दीने पुत्रे तु माता कृपाईहृदया भवेत्।।
(i) कासु
(ii) कीदृशी
(iii) का
(iv) कीदृशः

Answer

Answer: (ii) कीदृशी


Question 12.
कृषक: वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।
(i) कः
(ii) को
(iii) किम्
(iv) केन

Answer

Answer: (ii) को


अधोलिखितं गद्याशं पठित्वा गद्यांशाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसार लिखित

(क) कश्चित् कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्। तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत् अतः कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुद्यमानः अवर्तत। स ऋषभः हलमूदवा गन्तुमशक्तः क्षेत्रे पपात। क्रुद्धः कृषीवलः तमुत्थापयितुं बहुवारम् यत्नमकरोत्। तथापि वृषः नोत्थितः। भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्। सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्” इति। सा च

Question 1.
कृषकः काभ्याम् क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्?

Answer

Answer: बलीवाभ्याम्


Question 2.
एकः बलीवर्दः कीदृशः आसीत्?

Answer

Answer: दुर्बलः


Question 3.
कः गन्तुम् अशक्तः आसीत्?

Answer

Answer: एकः (वृषभः)


Question 4.
सर्वधेनूनां माता सुरभिः किमर्थम् रुदन्ती आसीत्?

Answer

Answer: सर्वधेनूनां माता भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा रुदन्ती आसीत्।


Question 5.
कश्चित् कृषकः किं कुर्वन् आसीत्?

Answer

Answer: कश्चित् कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।


Question 6.
‘पपात’ इति क्रियापदस्य कर्ता कः?

Answer

Answer: सः


Question 7.
‘क्रुद्धः कृषीवलः’ अत्र विशेषणपदं किम् प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: क्रुद्धः


Question 8.
‘ताम् पृच्छत्’ अत्र ‘ताम्’ पदं कस्यै प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: सुरभये


Question 9.
‘सबलः’ इति पदस्य विपर्ययपदं किम्?

Answer

Answer: दुर्बलः


(ख) “भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि। सः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छेण भारमुद्वहति। इतरमिव। इतरमिव धुरं वोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्। “भद्रे! नूनम्। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्?” इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभिः प्रत्यवोचत्

Question 1.
सा पुत्रस्य किं दृष्ट्वा रोदिति?

Answer

Answer: दैन्यम्


Question 2.
अत्र सम्बोधनपदं किं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: भो वासव!


Question 3.
कः वृषभं बहुधा पीडयति?

Answer

Answer: कृषक:


Question 4.
सुरभिः इन्द्राय किम् अवदत्?

Answer

Answer: सुरभिः इन्द्राय अवदत्-” भो वासव! अहं पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा रोदिमि। सः दीन इति जाननपि कृषक: तं बहुधा पीडयति। सः कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। इतरमिव धुरं बोढुं सः न शक्नोति। एतत् भवान् पश्यति न?”


Question 5.
सः (कृषक:) तं कथं बहुधा पीटर नि

Answer

Answer: सः वृषभः दीन इति जानन्नपि कृषकः तं बहुधा पीडयति।


Question 6.
‘कृषकः’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?

Answer

Answer: पीडयति


Question 7.
‘रोदिमि’ इति क्रियापदस्य कर्ता कः?

Answer

Answer: अहम्


Question 8.
‘काठिन्येन’ इति पदस्य पर्यायपदं किं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: कृच्छ्रेण


Question 9.
‘प्रसीदामि’ इति पदस्य विपर्ययपदं किं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: रोदिमि


(ग)“बहुन्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्। तथाप्यहमेतस्मिन् पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बलः। सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति। सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्। स च तामेवमसान्त्वयत्-“ गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।” अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्षः समजायत। पश्यतः एव सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः। कृषक: हर्षतिरिकेण कर्षणाविमुखः सन् वृषभौ नीत्वा गृहमगात्।

Question 1.
सर्वेष्वपत्येषु जननी कीदृशी भवति?

Answer

Answer: तुल्यवत्सला


Question 2.
कुत्र जलोपप्लवः सञ्जातः?

Answer

Answer: सर्वत्र


Question 3.
कीदृशे सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजा एव?

Answer

Answer: दुर्बले


Question 4.
कस्य वचनं श्रुत्वा भृश विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्?

Answer

Answer: सुरभिवचनं (सुरभेः वचनं) श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्।


Question 5.
सः (आखण्डलः) ताम् कथम् असान्त्वयत्?

Answer

Answer: स च तामेवमसान्त्वयत्-“गच्छ वत्से! सर्वं भद्रं जायेत।”


Question 6
‘अनुभवामि’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?

Answer

Answer: अहम्


Question 7.
‘जनकः’ इति पदस्य विपर्ययपदं किम्?

Answer

Answer: जननी


Question 8.
‘शीघ्रम्’ इति पदस्य पर्यायपदं किम् प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: अचिरात्


Question 9.
‘एतस्मिन् पुत्रे’ अत्र विशेषणपदं किम् अस्ति?

Answer

Answer: एतस्मिन्


अधोलिखित श्लोकं पठित्वा श्लोकाधारितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि निर्देशानुसारं लिखत

(क) विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥

Question 1.
त्रिदशाधिपः कः अस्ति?

Answer

Answer: इन्द्रः


Question 2.
कश्चित् कः न दृश्यते?

Answer

Answer: विनिपातः (सहायक:)


Question 3.
सुरभिः कं शोचति?

Answer

Answer: पुत्रम्


Question 4.
सुरभिः पुत्रस्य चिन्तां कृत्वा किमर्थम् रोदिति?

Answer

Answer: सुरभिः चिन्तयति यत् कश्चित् न वः विनिपातः दृश्यते अतः सः पुत्रस्य चिन्तां कृत्वा रोदिति।


Question 5.
सुरभिः कं सम्बोधयति?

Answer

Answer: सुरभिः इन्द्रं कौशिकं सम्बोधयति।


Question 6.
‘सहायकः’ इत्यर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: विनिपातः


Question 7.
‘त्रिदशाधिपः’ पदं कस्य पदस्य विशेषणं अस्ति?

Answer

Answer: इन्द्रस्य


Question 8.
‘रोदिमि’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?

Answer

Answer: अहम्


Question 9.
‘कौशिक’ पदं कस्मै प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: इन्द्राय


(ख) यदि पुत्रसहनं मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥

Question 1.
सुरभेः कति पुत्राः सन्ति?

Answer

Answer: सहस्रम्


Question 2.
पुत्राः सर्वत्र कीदृशाः सन्ति?

Answer

Answer: समम्


Question 3.
के सर्वत्र समम् एव सन्ति?

Answer

Answer: पुत्रसहस्रम्


Question 4.
सुरभिः इन्द्रम् प्रति किं कथयति?

Answer

Answer: सुरभिः इन्द्रम् प्रति कथयति-हे शक्र! यदि मे पुत्रसहस्रं मे सर्वत्र सममेव तु तथापि दीनस्य पुत्रस्य सतः अभ्यधिका कृपा (अस्ति)।


Question 5.
कीदृशे पुत्रे मातुः अभ्यधिका कृपा भवति?

Answer

Answer: दीने सति पुत्रे मातुः अभ्यधिका कृपा भवति।


Question 6.
‘शक्र’ इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: इन्द्राय


Question 7.
श्लोके ‘मे’ पदं कस्मै आगतम्?

Answer

Answer: सुरभये


Question 8.
‘दीनस्य पुत्रस्य’ अनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?

Answer

Answer: दीनस्य


Question 9.
श्लोके ‘एकस्मिन् स्थाने’ इति पदस्य विलोमपदं किं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: सर्वत्र


(ग) अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाहद्रया भवेत्॥

Question 1.
जननी कीदृशी भवति?

Answer

Answer: वत्सला


Question 2.
सर्वेषु अपत्येषु जननी कीदृशी भवति?

Answer

Answer: तुल्यवत्सला


Question 3.
तुल्यवत्सला का भवति?

Answer

Answer: जननी


Question 4.
जननी कीदृशम् पुत्रम् प्रति आर्द्रहृदया भवेत्?

Answer

Answer: पुत्रे दीने तु सा माता कृपाहृदया भवेत्?


Question 5.
कीदृशे पुत्रे माता कृपार्द्रहृद्रया भवति?

Answer

Answer: दीने पुत्रे माता कृपार्द्रहृदया भवति।


Question 6.
श्लोके ‘उदारहृदया’ इति अर्थे किं पदं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: (क) आर्द्रहृदया


Question 7.
अत्र ‘दीने’ इति विशेषणपदस्य विशेष्यपदं किम् प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: (ख) पुत्रे


Question 8.
श्लोके ‘भवेत्’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?

Answer

Answer: (ख) माता


Question 9.
अत्र श्लोके ‘जनकः’ इति पदस्य विपर्ययपदं किं प्रयुक्तम्?

Answer

Answer: (ख) जननी


रेखांकितपदानां आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

(क) कृषक: बलीवाभ्याम् क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत।
(ख) तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत्।
(ग) सः ऋषभः क्षेत्रे पपात।
(घ) भूमौ पतिते स्वपुत्रं दृष्ट्वा जननी अरोदत्।
(ङ) मातुः सुरभेः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्।
(च) सुरभेः इमाम् अवस्थां दृष्टट्वा सुराधिपः अपृच्छत्।
(छ) पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि।
(ज) सः बलीवर्दः धुरं वोढुं न शक्नोति।
(झ) सर्वधेनूनां माता सुरभिः आसीत्।
(ञ) सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला भवति।

Answer

Answer:
(क) कृषक: काभ्याम् क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत?
(ख) तयोः कयोः एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत्?
(ग) सः ऋषभः कुत्र पपात?
(घ) भूमौ पतिते कम् दृष्ट्वा जननी अरोदत्?
(ङ) मातुः कस्याः नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्?
(च) सुरभेः इमाम् अवस्था दृष्टट्वा कः अपृच्छत्?
(छ) कस्य दैन्यं दृष्ट्वा अहं रोदिमि?
(ज) सः बलीवर्दः किम् वोढुं न शक्नोति?
(झ) कासाम् माता सुरभिः आसीत्?
(ञ) सर्वेषु अपत्येषु जननी कीदृशी भवति?


श्लोकानाम् अन्वयं लिखतमञ्जूषायां प्रदत्तपर्दै उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयन्तु

(क) विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिप:!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥

अन्वय- कौशिक! (i) …………….. वः कश्चित (ii) …………….. न टश्यते अनम् तु (iii) ……………… शोचामि तेन (iv) …………….
मञ्जूषा- रोदिमि, त्रिदशाधिपः, विनिपातः, पुत्रं

Answer

Answer:
(i) त्रिदशाधिपः
(ii) विनिपातः
(iii) पुत्रं
(iv) रोदिमि


(ख) यदि पुत्रसहनं मे, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥

अन्वय- शक्र! यदि में (i) ………………. में सर्वत्र (ii) …………. तु दीनस्य (iii) ……………….. सतः (iv) …………… कृपा।
मञ्जूषा- सममेव, आभ्यधिका, पुत्रसहस्रं, पुत्रस्य

Answer

Answer:
(i) पुत्रसहस्रं
(ii) सममेव
(iii) पुत्रस्य
(iv) आभ्यधिका


(ग) अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाहृदया भवेत्॥

अन्वय- सर्वेषु (i) …………… च (ii) ………………. जननी दीने (iii) ………………. तु सा माता। (iv) ……………….. भवेत्।
मञ्जूषा- कृपाहृदया, तुल्यवत्सला, पुत्रे, अपत्येषु

Answer

Answer:
(i) अपत्येषु
(ii) तुल्यवत्सला
(iii) पुत्रे
(iv) कृपार्द्रहृदया


भावार्थचयनम् उचितं पदं चित्वा भावार्थम् सम्पूरयत

(क) विनिपातो न वः कश्चिद् दृश्यते त्रिदशाधिपः!।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!।

भावार्थ:- अस्य भावोऽस्ति यत् हे यात्राणां (i) …………….. स्वामि इन्द्र! तस्य मम दीनस्य (ii) …………… कश्चित (iii) ………………. माम् न दृश्यते। अतः अहंतस्य (iv) ……………. चिन्तयित्वा विलयामि।
मञ्जूषा- पुत्रस्य, लोकानाम्, विषय, सहायकः

Answer

Answer:
(i) लोकानाम्
(ii) पुत्रस्य
(iii) सहायकः
(iv) विषये


(ख) यदि पुत्रसहस्रं में, सर्वत्र सममेव मे।
दीनस्य तु सतः शक्र! पुत्रस्याभ्यधिका कृपा॥

भावार्थ:- अर्थात् हे सुरधिप! यद्यपि अस्मिन् (i) ……………. मम सहस्रं पुत्राः महयं (ii) ……………. एव सन्ति, तथापि अस्य दीनस्य (iii) …………. कृते मम अधिकतरा (iv) ………………. अस्ति। मञ्जूषा- कृपा, संसारे, समानाः, पुत्रस्य

Answer

Answer:
(i) संसारे
(ii) समानाः
(iii) पुत्रस्य
(iv) कृपा


(ग) अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपाहृदया भवेत्॥

भावार्थ- अस्य भावोऽस्ति यत् माता तु स्व (i) ……………… सन्तानेषु समान प्रेमवती भवति तथापि स्व (ii) ……………… पुत्रे तु (iii) ……………… हृदयम् अतीव (iv) ………………. भवति।
मञ्जूषा- दीने, तस्याः, दयायुक्त, सर्वेषु

Answer

Answer:
(i) सर्वेषु
(ii) दीने
(iii) तस्याः
(iv) दयायुक्तं


कथाक्रमानुसारम् वाक्यानि पुनः लिखत

(अ) (क) एकः कृषकः आसीत्।
(ख) कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन अवर्तत।
(ग) तस्य समीपे बलीवौ आस्ताम्।
(घ) कृषीवल: क्रुद्धः अभवत्।
(ङ) सः जवेन गन्तुम् अशक्तः च आसीत्।
(च) तमुत्थापयितुम् बहुवारं यत्नमकरोत् तथापि सः नोत्थितः।
(छ) सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुम् अशक्तः क्षेत्रे पपात्।
(ज) तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत्।

Answer

Answer:
(क) एकः कृषकः आसीत्।
(ख) तस्य समीपे बलीवर्दी आस्ताम्।
(ग) तयोः बलीवर्दयोः एकः शरीरेण दुर्बलः आसीत्।
(घ) सः जवेन गन्तुम् अशक्तः च आसीत्।
(ङ) कृषकः तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन अवर्तत।
(च) सः ऋषभः हलमूढ्वा गन्तुम् अशक्तः क्षेत्रे पपात्।
(छ) कृषीवलः क्रुद्धः अभवत्।
(ज) तमुत्थापयितुम् बहुवारं यत्नमकरोत् तथापि सः नोत्थितः।


(आ) (क) सुरभेः इमाम् अवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्।
(ख) एकः दुर्बल: बलीवर्दः भूमौ अपतत्।
(ग) सा अकथयत्-पुत्रस्य दैन्यम् दृष्ट्वा रोदिमि।
(घ) तदा तत्र सुराधिपः आगच्छत्।
(ङ) कृषक: तं दुर्बलं बहुधा पीड़यति।
(च) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां माता सुरभिः रोदिति स्म।
(छ) सः बलीवर्दः धुरं वोढुं न शक्नोति।
(ज) आयि शुभे! किमेवं रोदिषि?

Answer

Answer:
(क) एकः दुर्बलः बलीवर्दः भूमौ अपतत्।
(ख) स्वपुत्रं दृष्ट्वा सर्वधेनूनां माता सुरभिः रोदिति स्म।
(ग) तदा तत्र सुराधिपः आगच्छत्
(घ) सुरभेः इमाम् अवस्थां दृष्ट्वा सुराधिपः तामपृच्छत्।
(ङ) आयि शुभे! किमेवं रोदिषि?
(च) सा अकथयत्-पुत्रस्य दैन्यम् दृष्ट्वा रोदिमि।
(छ) कृषक: तं दुर्बलं बहुधा पीड़यति।
(ज) स: बलीवर्दः धुरं वोढुं न शक्नोति।


(इ) (क) कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्।
(ख) सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला भवति।
(ग) सः बलीवर्दः क्षेत्रे अपतत्।
(घ) तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव।
(ङ) कृषकः वृषभौ नीत्वा गृहम् आगच्छत्।
(च) एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गुन्तुम् अशक्तः च आसीत्।
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
(ज) एतत् दृष्ट्वा माता सुरभिः रोदितुम् आरब्धा।

Answer

Answer:
(क) कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्ष कुर्वन्नासीत्।
(ख) एकः शरीरेण दुर्बलः जवेन गुन्तुम् अशक्तः च आसीत्।
(ग) सः बलीवर्दः क्षेत्रे अपतत्।
(घ) एतत् दृष्ट्वा माता सुरभिः रोदितुम् आरब्धा।
(ङ) सर्वेषु अपत्येषु जननी तुल्यवत्सला भवति।
(च) तथापि दुर्बले सुते मातुः अभ्यधिका कृपा सहजैव।
(छ) सर्वत्र जलोपप्लवः सञ्जातः।
(ज) कृषक: वृषभौ नीत्वा गृहम् आगच्छत्।


(अ) विशेषण-विशेष्यपदानि योजयत

विशेषणपदानि – विशेष्यपदानि
(क) एकः – (i) वृषभं
(ख) दुर्बलं – (ii) पुत्रेषु
(ग) क्रुद्धः – (iii) पुत्रस्य
(घ) अधिकेषु – (iv) सुते
(ङ) दीनस्य – (v) कृषकः
(च) दुर्बले – (vi) कृषीवलः

Answer

Answer:
(क) एकः – (v) कृषकः
(ख) दुर्बलं – (i) वृषभं
(ग) क्रुद्धः – (vi) कृषीवलः
(घ) अधिकेषु – (ii) पुत्रेषु
(ङ) दीनस्य – (iii) पुत्रस्य
(च) दुर्बले – (iv) सुते


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