NCERT Class 10 Hindi Grammar (Hindi Vyakaran) सन्धि
परिभाषा – दो वर्णों के मेल को सन्धि कहते हैं;
जैसे- विद्या + आलय = विद्यालय, रमा + ईश = रमेश आदि।
सन्धि के भेद-सन्धि तीन प्रकार की होती हैं-
- स्वर सन्धि,
- व्यंजन सन्धि,
- विसर्ग सन्धि।
(1) स्वर सन्धि
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल में जो परिवर्तन होता है, वह स्वर सन्धि कहलाता है;
जैसे-
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय, विद्या + अर्थी = विद्यार्थी। स्वर सन्धि के पाँच प्रकार होते हैं
(अ) दीर्घ स्वर सन्धि-हस्व या दीर्घ अ,इ, उ, ऋ के बाद ह्रस्व या दीर्घ समान स्वर आये तो दोनों के मेल से दीर्घ स्वर हो जाता है।
जैसे-हत + आश = हताश, कपि + ईश = कपीश, भानु + उदय = भानूदय आदि।
(आ) गुण स्वर सन्धि-अ या आ के बाद इ या ई आये तो दोनों के स्थान पर ए हो जाता है। अ या आ के बाद उ या ऊ आये तो ओ हो जाता है और अ या आ के बाद ऋ आये तो अर् हो जाता है।
जैसे-देव + ईश = देवेश, वीर + उचित = वीरोचित,महा + ऋषि = महर्षि।
(इ) वृद्धि स्वर सन्धि–यदि अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ हो जाते हैं और अ या आ के बाद ओ या औ हो तो दोनों मिलकर औ हो जाते हैं;
जैसे-सदा + एव = सदैव,महा + औषध = महौषध।
(ई) यण स्वर सन्धि–यदि हस्व या दीर्घ इ.उ.ऋके बाद कोई असमान स्वर आये तो इ का य,उ का व् एवं ऋ का र् हो जाता है;
जैसे-
- प्रति + एक = प्रत्येक,
- सु + आगत = स्वागत,
- पित्र + आदेश = पित्रादेश।
(उ) अयादि स्वर सन्धि–यदि ए.ऐ ओ औ के बाद कोई स्वर आये तो ए का अय.ऐ का आय, ओ का अव् और औ का आव् हो जाता है;
जैसे-
- ने + अन = नयन,
- नै + अक = नायक,
- पो + अन = पवन,
- पौ + अक = पावक।
(2) व्यंजन सन्धि
व्यंजन वर्ण के बाद व्यंजन या स्वर वर्ण के आने पर जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- जगत + ईश = जगदीश,
- जगत + नाथ = जगन्नाथ।
(i) श्चुत्व सन्धि–यदि ‘स’ तथा त वर्ग के योग में (आगे या पीछे) ‘श’ या च वर्ग आये, तो ‘स’ के स्थान पर ‘श’ और त वर्ग के स्थान पर च वर्ग हो जाता है;
जैसे-
- हरिस् + शेते = हरिश्शेते
- सत् + चयन = सच्चयन
- सत् + चरित = सच्चरित
- श्यामस + शेते = श्यामश्शेते
(ii) ष्टनाष्ट सन्धि-यदि ‘स’ तथा त वर्ग के योग में (आगे या पीछे) ‘स’ और त वर्ग कोई भी हो तो स् का और त वर्ग का ट वर्ग (ट,ठ, ड, ढ, ण) हो जाता है;
जैसे-
- रामस् + टीकते = रामष्टीकते
- पेष् + ता = पेष्टा
- तत् + टीका = तट्टीका
- उद् + डयन = उड्डयन
(iii) अपदान्त सन्धि-झल् अर्थात् अन्तःस्थ य र ल व् और अनुनासिक व्यंजन को छोड़कर और किसी व्यंजन के पश्चात् झश् आवे तो पहले वाले व्यंजन जश् (ज, व, ग, ड,द) में बदल जाते हैं;
जैसे-
- योध् + धा = योद्धा
- एतत् + दुष्टम् = एतदुष्टम्
- बुध् + धिः = बुद्धिः
- दुध् + धम् = दुग्धम्
(iv) चरत्व सन्धि–यदि जल् (अनुनासिक व्यंजन) ड,ज,ण, न,म् तथा अन्तःस्थ-य् र् ल् व् को छोड़कर किसी भी व्यंजन के बाद ख्र (वर्ग का प्रथम, द्वितीय व्यंजन) क् च् त् प् तथा श् ष् स् में से कोई आये, तो झल् के स्थान चर् (उसी वर्ग का प्रथम अक्षर) हो जाता है;
जैसे-
- वृक्षात् + पतति = वृक्षात्पतति
- विपद् + कालः = विपत्काल
- सद् + कारः = सत्कार
- तज् + शिवः = तत्छिव
(v) अनुस्वार सन्धि-यदि पद के अन्त में ‘म्’ आये और उसके बाद कोई व्यंजन आवे तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार (-) हो जाता है। यथा
- हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
- गृहम् + चलति = गृहं
- चलति गृहम् + गच्छति = गृहं गच्छति
- सत्यम् + वद = सत्यं वद
- कार्यन् + कुरु = कार्यं कुरु
(vi) लत्व सन्धि–यदि त वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के बाद ल आये तो त वर्ग के स्थान पर ल हो जाता है;
जैसे-
- तत् + लीन = तल्लीन
- उद् + लेख = उल्लेख
(vii) परसवर्ण सन्धि–यदि अनुस्वार (-) के बाद श, ष,स, ह को छोड़कर कोई अन्य व्यंजन आए तो अनुस्वार के स्थान पर अगले वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है;
जैसे-
- शां + त = शान्त
- अं + क = अंक
(3) विसर्ग सन्धि
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं;
जैसे-
- निः + आशा = निराशा,
- मनः + ताप = मनस्ताप।
विग्रह-शब्द के वर्गों को अलग-अलग करना विग्रह या विच्छेद कहलाता है;
जैसे-
- रमेश = रमा + ईश,
- वस्त्रालय = वस्त्र + आलय।
(i) विसर्ग सन्धि–विसर्ग के बाद यदि ‘खर्’ प्रत्याहार का कोई वर्ण (वर्ग का प्रथम, द्वितीय तथा श् ष स) रहे, तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है;
जैसे-
- विष्णुः + माता = विष्णुस्माता
- रामः + मायते = रामस्मायते
- निः + छलः = निश्छल = निश्छल
(ii) रुत्व सन्धि-पदान्त ‘स्’ तथा सजुष् शब्द के ष् के स्थान में (र) हो जाता है। इस पदान्तर के बाद र द् प्रत्याहार (वर्गों के प्रथम, द्वितीय और स्) का कोई अक्षर हो अथवा कोई भी वर्ण न हो,तो र के स्थान में विसर्ग हो जाता है;
जैसे-
- हरिस् + अवदत् = हरिरवदत्
- वधूस + एषा = बधूरेषा
- पुनस् + आगत = पुनरागत
- पुनस् + अन्तरे = पुनरन्तरे
(iii) उत्व सन्धि-स् के स्थान में जो र् आदेश होता है, उसके पूर्व यदि ह्रस्व अ आवे और बाद में ह्रस्व अ अथवा हश् प्रत्याहार का कोई अक्षर आवे,तो र के स्थान में उ हो जाता है;
जैसे-
शिवस् + अर्घ्यः = शिवर् + अर्घ्यः = शिव + उ + अर्घ्यः = शिवो + अर्ध्यः = शिवोऽर्यः . रामस् + अस्तिरामर् + अस्ति = राम + उ + अस्ति = रामोऽस्ति सः + अपि = सस् + अपि = सर् + अपि = स + उ + अपि = सोऽपि। बालस् + वदति = बालर् + वदति = बाल + उ + वदति = बालो वदति
(iv) र लोप सन्धि-यदि ‘र’ के बाद ” आए तो पहले ‘र’ का लोप हो जाता है और यदि लुप्त होने वाले ‘र’ से पूर्व अ, इ, उ में से कोई हो, तो वह स्वर दीर्घ हो जाता है; जैसे-
- हरिर् + रम्यः = हरीरम्यः
- शम्भुर् + राजते = शम्भूराजते।
सन्धि-विग्रह-सन्धि के जोड़े गये वर्गों को अलग-अलग करना विच्छेद कहा जाता है। जैसे-‘पुस्तकालय’ का सन्धि-विच्छेद ‘पुस्तक + आलय’, ‘महेश’ का सन्धि-विच्छेद ‘महा + ईश’ होगा।
प्रश्नोत्तर
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- 1. ‘वागीश’ किस सन्धि का उदाहरण है?
(i) स्वर सन्धि
(ii) दीर्घ सन्धि
(iii) विसर्ग सन्धि .
(iv) व्यंजन सन्धि।
उत्तर-
(ii) दीर्घ सन्धि
- 2. ‘महा + ओजस्वी = महौजस्वी’ में सन्धि है
(i) गुण सन्धि
(ii) वृद्धि स्वर सन्धि
(iii) यण सन्धि
(iv) दीर्घ सन्धि।
उत्तर-
(ii) वृद्धि स्वर सन्धि
- 3. ‘नि: + चय = निश्चय’ कौन-सी सन्धि का उदाहरण है?
(i) विसर्ग
(ii) स्वर
(iii) व्यंजन
(iv) दीर्घ स्वर।
उत्तर-
(i) विसर्ग
- ‘पावक’ शब्द उदाहरण है
(i) दीर्घ स्वर सन्धि
(ii) गुण स्वर सन्धि
(iii) वृद्धि स्वर सन्धि
(iv) अयादि स्वर सन्धि।
उत्तर-
(iv) अयादि स्वर सन्धि।
(ड) ‘नीरस’ का संधि विच्छेद होगा-
(i) निरा + रस,
(ii) निः + रस,
(iii) नि + अरस
(iv) नि + रस।
उत्तर-
(ii) निः + रस,