NCERT Class 10 Hindi Grammar (Hindi Vyakaran) पद्य साहित्य का विकास
हिन्दी काव्य साहित्य का प्रारम्भ कब हुआ ? इसके विषय में विभिन्न विद्वानों के मतभेद हैं। कुछ विद्वान 800 ई.के आस-पास, तो अन्य लोग 1000 ई. के निकट हिन्दी काव्य साहित्य का प्रारम्भ स्वीकार करते हैं । अतः इसके विषय में निश्चित नहीं कहा जा सकता है। अतः विगत 1000 वर्षों से पूर्व के हिन्दी साहित्य को सरलतापूर्वक अध्ययन करने के उद्देश्य से उसे अनेक विद्वानों ने काल खण्डों में विभाजित किया है । इसे हिन्दी साहित्य का काल विभाजन कहते हैं। काल विभाजन का श्रेष्ठतम विभाजन आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में किया है,वह इस प्रकार है-
- वीरगाथा काल (आदिकाल) – (सन् 993-1318 ई)
- भक्ति काल (पूर्व मध्यकाल) – (सन् 1318-1643 ई)
- रीति काल (उत्तर मध्य काल) – (सन् 1643-1843 ई)
- गद्य काल (आधुनिक काल) – (सन् 1843-अब तक)
आदिकाल
आदिकाल को वीरगाथाकाल के नाम से जाना जाता है।
आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. वीर रस की प्रधानता
2. युद्ध का सजीव चित्रण
3. ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण
4. श्रृंगार एवं अन्य रसों का समावेश
5. प्राकृत, अपभ्रंश, डिंगल एवं पिंगल भाषा का प्रयोग
6. आश्रयदाताओं की प्रशंसा एवं उनका यशगान
आदिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्न लिखित हैं-
1. चंदवरदायी- पृथ्वीराज रासो
2. नरपति नाल्ह- वीसलदेव रासो
3. जगनिक- परमाल रासो ‘आल्हाखण्ड’
4. शारंगधर- हम्मीर रासो
5. दलपतिविजय- खुमान रासो
भक्तिकाल
भक्तिकाल हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। भक्ति काल को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
1. सगुण धारा
2. निर्गुण धारा
सगुण धारा
भक्तिकाल की इस काव्य धारा के कवियों ने ईश्वर के साकार रूप की लीलाओं का वर्णन किया है। इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. रामभक्ति शाखा
इस शाखा में राम के जीवन चरित्र को आधार बनाया गया तथा इनके माध्यम से समाज को आदर्श मूल्यों, स्वस्थ गुणों, सामाजिक, पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा देने का प्रयत्न किया गया।
इस शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
तुलसीदास- रामचरित मानस
अग्रदास- अष्टयाम
नाभादास- भक्तमाल
केशवदास- रामचंद्रिका
2. कृष्णभक्ति शाखा
कृष्णभक्ति शाखा में कृष्ण के चरित्र को आधार बनाकर काव्य रचना की गई। इस शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
सूरदास- सूरसागर
मीराबाई- मीराबाई की पदावली
रसखान- प्रेम वाटिका
इस शाखा में अष्टछाप के कवि थे।
निर्गुण धारा
जिन कवियों ने ईश्वर को निराकार रूप में अपने काव्य में स्थान दिया, उन्हें निर्गुण धारा के कवि के रूप में जाना जाता है। इसे दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. ज्ञानमार्गी शाखा
ज्ञान को ही ईश्वर तक जाने का मार्ग मानकर जिन्होंने काव्य साधना की, वे ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि हैं इस शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं-
कबीर दास- बीजक
रैदास- गुरु ग्रंथ साहब
गुरुनानक
2. प्रेममार्गी शाखा
जिन्होंने प्रेम के माध्यम से ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग खोलना चाहा, वे कभी प्रेमाश्रयी शाखा के अंतर्गत परिगणित होते हैं।
इस शाखा के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
मलिक मोहम्मद जायसी- पद्मावत
शेख रहीम
नसीर
भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. साकार एवं निराकार ब्रह्म की उपासना
2. रहस्यवादी कविता का प्रारंभ
3. आध्यात्मिकता और सदाचार प्रेरणा
4. लोक कल्याण के पद पर काव्य का चरमोत्कर्ष
5. समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग
6. प्रकृति सापेक्ष वर्णन।
रीति काल का संक्षिप्त परिचय
भक्ति काल में सूरदास के द्वारा कृष्ण भक्ति व तुलसीदास द्वारा रामभक्ति का उल्लेख किया गया है। इसके उपरान्त एक नवीन काव्यधारा का जन्म हुआ। इसे रीति काल अथवा श्रृंगार काल या कला काल के नाम से पुकारा जाता है । रीति काव्य वह काव्य है, जो लक्षण के आधार पर ध्यान में रखकर रचा गया है अर्थात् बँधी हुई परम्परा में काव्य रचना की गई है । रीति काल में मुक्तक काव्य की परम्परा प्रधान रही है । इस काल में कवियों ने साहित्यिक प्रवृत्ति को प्रधानता दी है,क्योंकि भूषण जैसे वीर रस के कवि ने भी रीति ग्रन्थ की रचना की। रीति काल में कवित्त, सवैया, दोहा तथा कुण्डलियाँ छन्दों की रचना हुईं।
रहीम, वृन्द, गिरिधर की नीतिपरक रचनाएँ बहुत प्रसिद्ध रही हैं। रीति काल में तीन प्रकार की रचनाएँ हुईं-
- रीतिसिद्ध,
- रीतिबद्ध,
- रीतिमुक्त
रीतिसिद्ध और रीतिबद्ध कवियों ने प्रायः राजाश्रय प्राप्त किया। अतः इन्होंने आश्रयदाताओं की प्रशंसा करके पुरस्कार प्राप्त करने की प्रबल आकांक्षा रखी है।
रीतिमुक्त कवियों ने स्वतन्त्र भाव से रचना की है। भक्ति काल को जिस प्रकार से स्वर्ण युग कहा गया, उसी प्रकार से रीति काल को कला काल और श्रृंगार काल कहकर पुकारा गया।
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण
2. ब्रज मिश्रित अवधी भाषा का प्रयोग
3. वीर एवं श्रंगार रस की प्रधानता
4. नीति और भक्ति संबंधी काव्य रचनाएँ
5. मुक्तक काव्य रचनाएँ
रीतिकालीन प्रमुख कवि और रचनाएँ इस प्रकार हैं-
प्रमुख कवि – प्रमुख रचनाएँ
- केशवदास – कवि प्रिया,रामचन्द्रिका, रसिक प्रिया,रतन बावनी आदि
- देव – रस विलास,रस रहस्य, प्रेम तरंग, काव्य रसायन
- भूषण – शिवा बावनी,छत्रसाल दशक, शिवराज भूषण
- बिहारी – ‘बिहारी सतसई’
- घनानन्द – सुजान रसखान, विरह लीला, पद्मावत
- आलम – आलम केलि
- ठाकुर – ठाकुर ठसक,ठाकुर शतक
- चिंतामणि – काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी
- मतिराम – मतिराम,माधुरी,रसराज
आधुनिक काल का संक्षिप्त परिचय
आधुनिक हिंदी कविता का प्रारंभ संवत् 1900 से माना जाता है। यह काल अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। इस काल में हिंदी साहित्य का चहुँमुखी विकास हुआ। यह काल हिंदी साहित्य की अनेक प्रवृतियों एवं परिवर्तनों को लेकर उपस्थित हुआ। इस काल में धर्म, दर्शन, कला एवं साहित्य सभी के प्रति नए दृष्टिकोण का आविर्भाव हुआ। हिंदी साहित्य के विकासक्रम को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है-
1. भारतेंदु युग- सन् 1850 से 1900 तक
2. द्विवेदी युग- सन् 1900 से 1920 तक
3. छायावादी युग- सन् 1920 से 1936 तक
4. प्रगतिवादी युग- सन् 1936 से 1943 तक
5. प्रयोगवादी युग- 1943 से 1950 तक
6. नई कविता- सन् 1950 से आज तक
भारतेंदु युग
भारतेंदु युग को आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवेश द्वार माना जाता है। इस युग के कवियों में नवीन के प्रति मोह, साथ ही प्राचीन के प्रति आग्रह भी था। भारतेंदु युग नव जागरण का युग है। इसमें नई सामाजिक चेतना उभरकर आई। भारतेंदु युग में देशभक्ति और राजभक्ति तत्कालीन राजनीति का अभिन्न अंग थी, जिसका स्पष्ट प्रभाव इस युग के कवियों में देखा जा सकता है।
भारतेंदु युगीन काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. राष्ट्रीयता की भावना- इस युग के कवियों ने देश-प्रेम की रचनाओं के माध्यम से जन-मानस में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण किया।
2. सामाजिक चेतना का विकास- इस काल का काव्य सामाजिक चेतना का काव्य है। इस युग के कवियों ने समाज में व्याप्त अंधविश्वास एवं सामाजिक रूढ़ियों को दूर करने हेतु कविताएँ लिखीं।
3. हास्य व्यंग्य- हास्य व्यंग्य शैली को माध्यम बनाकर पश्चिमी सभ्यता, विदेशी शासन तथा सामाजिक अंधविश्वासों पर करारे प्रहार किए गए।
4. अंग्रेजी शिक्षा का विरोध- भारतेंदु युगीन कवियों ने अंग्रेजी भाषा तथा अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रति अपना विरोध कविताओं में प्रगट किया है।
5. विभिन्न काव्य रूपों का प्रयोग- इस काल में काव्य के विविध रूप दिखाई देते हैं। जैसे मुक्तक काव्य, प्रबंध काव्य आदि।
भारतेंदु युगीन प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र- प्रेम सरोवर, प्रेम फुलवारी
2. प्रताप नारायण मिश्र- प्रेम पुष्पावली
3. जगमोहन सिंह- देवयानी
4. राधाचरण गोस्वामी- नवभक्त माल
5. अंबिका दत्त व्यास- भारत धर्म
द्विवेदी युग
यह युग कविता में खड़ी बोली के प्रतिष्ठित होने का युग है। इस युग के प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं। इन्होंने ‘सरस्वती पत्रिका’ का संपादन किया। इस काल में प्रबंध काव्य भी पर्याप्त संख्या में लिखे गए। अनेक कवियों ने ब्रजभाषा छोड़कर खड़ी बोली को अपनाया। इस काल में खड़ी बोली को ब्रजभाषा के समक्ष काव्य भाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया, साथ ही विकसित चेतना के कारण कविता नई भूमि पर प्रतिष्ठित हुई।
द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. देशभक्ति- द्विवेदी युग में देशभक्ति को व्यापक आधार मिला। इस काल में देशभक्ति विषयक लघु एवं दीर्घ कविताएँ लिखी गई।
2. अंधविश्वास तथा रूढ़ियों का विरोध- इस काल की कविताओं में सामाजिक अंधविश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए।
3. वर्णन प्रधान कविताएँ- ‘वर्णन’ प्रधानता इस युग की कविताओं की विशेषता है।
4. मानव प्रेम- द्विवेदी युगीन कविताओं में मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना विशेष रूप से मिलती है।
5. प्रकृति-चित्रण- इस युग के कवियों ने प्रकृति के अत्यंत रमणीय चित्र खीचें हैं। प्रकृति का स्वतंत्र रूप में मनोहारी चित्रण मिलता है।
द्विवेदी युगीन प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मैथिलीशरण गुप्त- पंचवटी, जयद्रथ-वध, साकेत
2. रामनरेश त्रिपाठी- स्वप्न, पथिक, मिलन
3. माखनलाल चतुर्वेदी- समर्पण, युगचरण
4. महावीर प्रसाद द्विवेदी- काव्य मंजूषा, सुमन
5. अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’- प्रिय प्रवास, रसकलश
छायावाद
हिंदी साहित्य के आधुनिक चरण में द्विवेदी युग के पश्चात् हिंदी काव्य की जो धारा विषय वस्तु की दृष्टि से स्वछंद प्रेमभावना, प्रकृति में मानवीय क्रिया-कलापों तथा भाव-व्यापारों के आरोपण और कला की दृष्टि से लाक्षणिकता प्रधान नवीन अभिव्यंजना पद्धति को लेकर चली, उसे ‘छायावाद’ कहा गया।
डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार, ‘स्थूल के प्रति सूक्ष्म के विद्रोह’ को छायावाद माना जाना है। प्रकृति पर चेतना के आरोप को भी छायावाद कहा गया है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘प्रस्तुत’ के स्थान पर उसकी व्यंजना करने वाली छाया के रूप में ‘अप्रस्तुत कथन’ को छायावाद माना है।
जयशंकर प्रसाद के अनुसार, “छायावादी कविता वाणी का वह लावण्य है जो स्वयं में मोती के पानी जैसी छाया, तरलता और युवती के लज्जा भूषण जैसी श्री से संयुक्त होता है। यह तरल छाया और लज्जा श्री ही छायावादी कवि की वाणी का सौंदर्य है।”
छायावादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. व्यक्तिवाद की प्रधानता- छायावाद में व्यक्तिगत भावनाओं की प्रधानता है। वहाँ कवि अपने सुख-दुख एवं हर्ष-शोक को ही वाणी प्रदान करते हुए खुद को अभिव्यक्त करता है।
2. श्रृंगार भावना- छायावादी काव्य मुख्यतया श्रृंगारी काव्य है किंतु उसका श्रृंगार अतींद्रिय सूक्ष्म श्रृंगार है। छायावाद का श्रृंगार उपभोग की वस्तु नहीं, अपितु कौतूहल और विस्मय का विषय है। उसकी अभिव्यंजना में कल्पना और सूक्ष्मता है।
3. प्रकृति का मानवीकरण- प्रकृति पर मानव व्यक्तित्व का आरोप छायावाद की एक प्रमुख विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को अनेक रूपों में देखा है। कहीं प्रकृति को नारी के रूप में देखकर उसके सूक्ष्म सौंदर्य का चित्रण किया है।
4. अज्ञात सत्ता के प्रति प्रेम- अज्ञात सत्ता के प्रति कवि में हृदयगत प्रेम की अभिव्यक्ति पायी जाती है। इस अज्ञात सत्ता को कवि कभी प्रेयसी के रूप में तो कभी चेतन प्रकृति के रूप में देखता है। छायावाद की यह अज्ञात सत्ता ब्रह्म से भिन्न है।
5. नारी के प्रति नवीन भावना- छायावाद में श्रृंगार और सौंदर्य का संबंध में नारी से है। रीतिकालीन नारी की तरह छायावादी नारी प्रेम की पूर्ति का साधन मात्र नहीं है। वह इस पार्थिव जगत की स्थूल नारी न होकर भाव जगत की सुकुमार देवी है।
टीप- 1. ‘जयशंकर प्रसाद’ छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं।
2. छायावाद की त्रयी- प्रसाद, पंत और निराला
छायावाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. जयशंकर प्रसाद- कामायनी, आँसू, लहर
2. महादेवी वर्मा- नीरजा, निहार, रश्मि, सांध्यगीत
3. सुमित्रानंदन पंत- पल्लव, गुंजन, ग्रंथि, वीणा
4. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’- अनामिका, गीतिका, परिमल
5. रामकुमार वर्मा- आकाशगंगा, निशीथ, चित्ररेखा
रहस्यवाद
हिंदी कविता में रहस्यवाद का काल निर्धारण करना कठिन है क्योंकि रहस्यवाद सृष्टि के आरंभ से ही कवियों को प्रिय रहा है। वेदों में ऊषा, मेघ, सरिता आदि के वर्णन में अव्यक्त परमात्मा के स्वरूप को लक्षित किया गया है। यह प्रकृति और जगत ही रहस्यमय है। कण-कण में परमात्मा के होने का आभास ही रहस्यवाद है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, “चिंतन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।” जहाँ कवि इस अनंत परमतत्व और अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर अत्यंत चित्रमयी भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से अभिव्यंजना करता है, वहाँ रहस्यवाद है। रामचंद्र शुक्ल ने रहस्यवाद को भारतीय साहित्य की विशिष्ट उपलब्धि माना है।
बाबू गुलाबराय ने “प्रकृति में मानवीय भावों का आरोप कर जड़ चेतन के एकीकरण की प्रवृत्ति के लाक्षणिक प्रयोगों को रहस्यवाद कहा है।”
मुकुटधर पांडेय के अनुसार, “प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यवाद है।”
रहस्यवादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम- इस युग की कविताओं में अलौकिक सत्ता के प्रति जिज्ञासा, प्रेम व आकर्षण के भाव व्यक्त हुए हैं।
2. परमात्मा से विरह-मिलन का भाव- आत्मा को परमात्मा की विरहिणी मानते हुए उससे विरह व मिलन के भाव व्यक्त किए गए हैं।
3. जिज्ञासा की भावना- सृष्टि के समस्त क्रिया कलापों तथा अदृश्य ईश्वरीय सत्ता के प्रति जिज्ञासा के भाव प्रकट किए गए हैं।
4. प्रतीकों का प्रयोग- प्रतीकों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति की गई है।
प्रमुख छायावादी कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. सुमित्रानंदन पंत- स्वर्णधूलि, वीणा
2. महादेवी वर्मा- यामा
3. जयशंकर प्रसाद- आँसू
4. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’- परिमल, नए पत्ते, अणिमा
छायावाद एवं रहस्यवाद में अंतर निम्नलिखित है-
1. छायावाद में कल्पना की प्रधानता है, जबकि रहस्यवाद में चिंतन की प्रधानता है।
2. छायावाद में भावना की प्रधानता है, जबकि रहस्यवाद में ज्ञान व बुद्धितत्व की प्रधानता है।
3. छायावाद के मूल में प्रकृति है, जबकि रहस्यवाद की प्रकृति दार्शनिक है।
4. छायावाद में नारी की सुंदरता का अंकन है, जबकि रहस्यवाद में परमात्मा के सौंदर्य का चित्रण है।
5. छायावाद में स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह है, जबकि रहस्यवाद में परमात्मा के प्रति प्रेम की भावना की अभिव्यक्ति है।
6. छायावाद में नियमबध्दता तथा मर्यादा का उल्लंघन है, जबकि रहस्यवाद में यथासंभव मर्यादा, पवित्रता तथा स्वच्छता का समावेश है।
प्रगतिवाद
प्रगतिवाद भौतिक जीवन से उदासीन, आत्मनिर्भर, सूक्ष्म, अंतर्मुखी प्रवृत्ति के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में, लोक के विरुद्ध स्थूल जगत की तार्किक प्रतिक्रिया है। यह काव्यधारा कला की अपेक्षा ‘जीवन’ को, व्यक्ति की अपेक्षा समाज को और स्वाद उन्नति के अपेक्षा सर्वानुभूति को प्रधानता देती है।
प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. शोषको के प्रति विद्रोह और शोषितों के प्रति सहानुभूति- प्रगतिवादी कवियों ने किसानों, मजदूरों पर किए जाने वाले पूँजीपतियों के अत्याचार के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया है।
2. आर्थिक व सामाजिक समानता पर बल- इस युग के कवियों ने आर्थिक एवं सामाजिक समानता पर बल देते हुए निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के अंतर को समाप्त करने पर बल दिया।
3. नारी शोषण के विरुद्ध मुक्ति का स्वर- प्रगतिवादी कवियों ने नारी को उपभोग की वस्तु नहीं समझा। वरन् उसे सम्मानजनक स्थान दिया है। नारी को शोषण से मुक्त कराने हेतु भी इन्होंने प्रयास किए हैं।
4. ईश्वर के प्रति अनास्था- इस काल के कवियों ने ईश्वर के प्रति अनास्था का भाव व्यक्त किया है। वे ईश्वरीय शक्ति की तुलना में मानवीय शक्ति को अधिक महत्व देते हैं।
5. प्रतीकों का प्रयोग- अपनी भावनाओं को स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए इस काल के कवियों ने प्रतीकों का सहारा लिया है।
प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. नागार्जुन- युगधारा
2. केदारनाथ अग्रवाल- युग की गंगा
3. त्रिलोचन- धरती
4. रांगेय राघव- पांचाली
5. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’- कुकुरमुत्ता
प्रयोगवाद
अज्ञेय ने लिखा है- “ये कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।” स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् अज्ञेय के संपादन में ‘प्रतीक’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। उसमें प्रयोगवाद का स्वरूप स्पष्ट हुआ। सबसे पहले प्रथम तार सप्तक का संपादन हुआ। सन् 1951 में दूसरा तार सप्तक प्रकाशित हुआ और तत्पश्चात् तीसरा तार सप्तक।
जीवन और जगत के प्रति अनास्था प्रयोगवाद का एक आवश्यक तत्व है। साम्यवाद के प्रति भी अनास्था उत्पन्न कर देना उसका लक्ष्य है। वह कला को केवल कला के लिए, अपने अहं की अभिव्यक्ति के लिए की मानता है। अहं का विसर्जन तथा साहित्य का सामाजिकरण इसका महत्वपूर्ण लक्षण था। इन कवियों की अनुभूति का केंद्र इनका अहं है। इनकी वाणी में ‘मैं’ का तीव्र विस्फोट है।
प्रयोगवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. प्रेम भावनाओं का खुला चित्रण- इन्होंने प्रेम भावनाओं का अत्यंत खुला चित्रण कर उसमें अश्लीलता का समावेश कर दिया है।
2. निराशावाद की प्रधानता- इस काल के कवियों ने मानव मन की निराशा, कुंठा व हताशा का यथातथ्य रूप में वर्णन किया है।
3. अहं की प्रधानता- फ्रायड के मनोविश्लेषण से प्रभावित ये कवि अपने अहं को अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं।
4. रूढ़ियों के प्रति विद्रोह- इस काल की कविताओं में रूढ़ियों के प्रति विद्रोह का स्वर मुखर हुआ है। इन कवियों ने रूढ़ि मुक्त नवीन समाज की स्थापना पर बल दिया है।
5. व्यंग्य की प्रधानता- इस काल के कवियों ने व्यक्ति व समाज दोनों पर अपनी व्यंग्यात्मक लेखनी चलाई है।
प्रमुख प्रयोगवादी कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. स.ही.वा. अज्ञेय- हरी घास पर क्षण भर
2. धर्मवीर भारती- अंधायुग, ठंडा लोहा
3. गिरिजा कुमार माथुर- धूप के धान, नाश और निर्माण
4. भारत भूषण अग्रवाल- ओ अप्रस्तुत मन
5. नरेश मेहता- बन पाँखी
प्रगतिवाद एवं प्रयोगवाद में अंतर निम्नलिखित है- 1. प्रगतिवाद में मध्यवर्गीय हताशा, कुंठा तथा मनःस्थिति की ऊहापोह का अंकन है, जबकि प्रयोगवाद में शोषितों, दलितों तथा गरीबों की दशा का वास्तविक चित्रण है।
2. प्रगतिवाद में सरल भाषा-शैली अपनाकर अपनी बात को जन-सामान्य तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है, जबकि प्रयोगवाद में अनपढ़ शब्दावली, असम्बध्द उपमाओं तथा रूपकों का प्रयोग किया गया है।
3. प्रगतिवाद में जिंदगी का यथार्थ चित्रण है, जबकि प्रयोगवाद में बौद्धिकता की प्रधानता है।
4. प्रगतिवादी जनसाधारण से सहानुभूति रखते हैं, जबकि प्रयोगवाद में वैयक्तिकता की प्रधानता है।
नई कविता
प्रयोगवादी कविता का ही आगे का दौर नई कविता के रूप में उभरा है। वस्तुतः नई कविता की विषय वस्तु मात्र चमत्कार न होकर एक भोगा हुआ जीवन यथार्थ है। नई कविता परिस्थितियों की उपज है। नई कविता स्वतंत्रता के बाद लिखी गई वह कविता है जिसमें नवीन भावबोध, नए मूल्य तथा नया शिल्प विधान है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पहली बार मनुष्य की विवशता, असहायता तथा निरूपायता सामने आई और उसने अस्तित्व का संकट अनुभव किया।
घुटन, आक्रोश और नैराश्य में व्यंग्य का जन्म लेना स्वाभाविक था। इसलिए नई कविता में व्यंग्य की भी प्रधानता रही है।
नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. लघु मानववाद की प्रतिष्ठा- मानवजीवन को महत्वपूर्ण मानकर उसे अर्थपूर्ण दृष्टि प्रदान की गई।
2. प्रयोगों में नवीनता- नए-2 भावों को नए-2 शिल्प विधानों में प्रस्तुत किया गया है।
3. अनुभूतियों का वास्तविक चित्रण- मानव व समाज दोनों की अनुभूतियों का सच्चाई के साथ चित्रण किया गया है।
4. बिंब- प्रयोगवादी कवियों ने नूतन बिंबों की खोज की है।
5. व्यंग्य की प्रधानता- इस काल में मानव जीवन की विसंगतियों, विकृतियों एवं अनैतिकतावादी मान्यताओं पर व्यंग्य रचनाएँ लिखी गई हैं।
नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. भवानी प्रसाद मिश्र- सन्नाट, गीत फरोश
2. कुंवर नारायण- चक्रव्यूह, आमने-सामने
3. जगदीश गुप्त- नाव के पाँव, बोधि वृक्ष
4. दुष्यंत कुमार- सूर्य का स्वागत, साये में धूप
5. श्रीकांत वर्मा- माया दर्पण, मगध
नवगीत
नई कविता ने जब गेयता को नकारना प्रारंभ किया तब नवगीत का जन्म हुआ।
नवगीतों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अपने युग के परिवेश को प्रस्तुत करना।
2. अभिव्यक्ति में सर्वत्र मौलिकता दिखाई देती है।
प्रमुख नवगीतकार एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. वीरेंद्र मिश्र- झुलसा है छाया नट धूप में, गीतम
2. शंभूनाथ सिंह- दर्द जहाँ नीला है, नवगीत दशक
3. रामनाथ अवस्थी- बंद न करना द्वार
4. सोम ठाकुर- एक ऋचा पाटल की
लोकगीत
लोकगीतों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. लोकगीतों में सामान्य जन-जीवन का सजीव चित्रण होता है।
2. लोकगीतों में संगीतात्मकता का सहज प्रवाह होता है जो श्रोता को आकर्षित कर लेता है।
प्रश्नोत्तर
(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. निम्नलिखित में से कौन-सी कृति रीतिकाल में लिखी गयी है?
(क) पृथ्वीराज रासो,
(ख) विनय पत्रिका,
(ग) बिहारी सतसई,
(घ) साकेत।
उत्तर-
(ग) बिहारी सतसई,
2. महाकवि भूषण की रचना है
(क) रेणुका,
(ख) चिदम्बरा,
(ग) दीप शिखा,
(घ) छत्रसाल दशक।
उत्तर-
(घ) छत्रसाल दशक।
3. रीतिमुक्त कवि कहे जाते हैं-
(क) बिहारी,
(ख) देव,
(ग) केशव,
(घ) घनानन्द।
उत्तर-
(घ) घनानन्द।
4. रीतिकाल के कवियों में प्रधानता है
(क) सखा भाव की भक्ति प्रधानता,
(ख) समन्वयकारी भावना,
(ग) भक्ति की प्रधानता,
(घ) नारी सौन्दर्य का विलासितापूर्ण वर्णन।
उत्तर-
(घ) नारी सौन्दर्य का विलासितापूर्ण वर्णन।
5. निम्नलिखित में से कौन-सा कवि छायावादी नहीं है?
(क) जयशंकर प्रसाद,
(ख) सुमित्रानन्दन पन्त,
(ग) मैथिलीशरण गुप्त,
(घ) महादेवी वर्मा।
उत्तर-
(ग) मैथिलीशरण गुप्त,
6. प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है
(क) रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
(ख) सुमित्रानंदन पन्त,
(ग) जयशंकर प्रसाद,
(घ) महादेवी वर्मा।
उत्तर-
(ख) सुमित्रानंदन पन्त,
7. कौन-सा अलंकार छायावाद की देन है?
(क) अनुप्रास,
(ख) उत्प्रेक्षा,
(ग) सन्देह,
(घ) मानवीकरण।
उत्तर-
(घ) मानवीकरण।
8. प्रगतिवादी कवि हैं
(क) निराला,
(ख) महादेवी वर्मा,
(ग) अज्ञेय,
(घ) प्रसाद।
उत्तर-
(क) निराला,
9. प्रयोगवाद का जनक कहा जाता है
(क) नरेश मेहता,
(ख) त्रिलोचन,
(ग) अज्ञेय,
(घ) भवानी प्रसाद मिश्र।
उत्तर-
(ग) अज्ञेय,
10. नई कविता का युग सन् से है
(क) 1936,
(ख) 1850,
(ग) 1943,
(घ) 1950.
उत्तर-
(घ) 1950.
11. छायावादी युग के प्रर्वतक हैं
(क) जयशंकर प्रसाद,
(ख) श्रीधर पाठक,
(ग) सुमित्रानन्दन पंत,
(घ) रामचन्द्र शुक्ल।
उत्तर-
(क) जयशंकर प्रसाद,
रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. पदमाकर …….. के प्रमुख कवियों में से है।
2. तुलसीदास जी ………. के कवि हैं।
3. कवि सेनापति ………… के कवि माने गये हैं।
4. महादेवी वर्मा को ……….. कहा जाता है।
5. पन्त जी के काव्य में ……… प्रकृति के दर्शन होते हैं।
6. छायावादी युग में प्रसाद के काव्य में ……… का उद्घोष दिखायी देता है।
7. तार सप्तक के प्रवर्तक ………. कवि हैं।
8. प्रयोगवाद का प्रारम्भ ……… माना जाता है।
9. नई कविता के प्रवर्तक ……… कवि हैं।
10. आधुनिक हिन्दी कविता का प्रारम्भ संवत् ……… से माना जाता है।
11. आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता ………. हैं।
उत्तर-
1. भक्तिकाल,
2. रामभक्ति शाखा,
3. रीतिकाल,
4. आधुनिक मीरा,
5. मानवतावादी भावना,
6. राष्ट्र प्रेम,
7. ‘अज्ञेय’,
8. 1943 ई. से,
9. डॉ. जगदीश गुप्त,
10. 1900,
11. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
सत्य/असत्य
1. रीतिकालीन कवियों ने शृंगार रस का सुन्दर वर्णन किया है।
2. रीतिकाल के कवियों ने निर्गुण भक्ति पर बल दिया है। [2018]
3. गिरिधर कवि की कुण्डलियाँ नीतिपरक हैं।
4. छायावादी कविता के पतन का कारण विदेशी शासन कहा जा सकता है।
5. प्रसाद ने कथा साहित्य व गद्य एवं पद्य सभी प्रकार की रचनाएँ की हैं।
6. प्रगतिवाद मार्क्सवाद से प्रभावित नहीं है।
7. प्रगतिवादी कवियों ने धर्म,जाति वर्ग को असमान माना है।
8. नई कविता में नये प्रतीकों व नवीन भाषा-शैली का प्रयोग हुआ है।
उत्तर-
1. सत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. सत्य,
6. असत्य,
7. असत्य,
8. सत्य।
सही जोड़ी मिलाइए
I. ‘अ’ – ‘ब’
1. बिहारी कवि की बिहारी सतसई – (क) केवल राजाओं की प्रशंसा करते थे
2. कामायनी जयशंकर प्रसाद का। – (ख) शृंगार का वर्णन है
3. रीतिकाल के समस्त कवि दरबारी – (ग) सुप्रसिद्ध महाकाव्य है कवि थे वे
4. प्रगतिवादी कवियों ने मानव की – (घ) प्रसिद्ध श्रृंगार रस की रचना है
5. छायावाद में सौन्दर्य की भावना, प्रेम और – (ङ) महत्ता का प्रतिपादन किया है
उत्तर-
1. → (घ),
2. → (ग),
3. → (क),
4. , (ङ),
5. → (ख)।
II. ‘अ’ – ‘ब’
1. नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है – (क) भक्तिकाल
2. प्रगतिवादी कवि को शोषित वर्ग के प्रति – (ख) का विरोध किया है
3. हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग [2009] – (ग) मधुशाला है
4. प्रगतिवादी कवियों ने धर्म और ईश्वर – (घ) सहानुभूति थी
5. हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचना – (ङ) “प्यासी पथराई आँखें
उत्तर-
1. → (ङ),
2. → (घ),
3. → (क),
4. → (ख),
5. → (ग)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. भक्तिकाल के पश्चात् एक नवीन विचारधारा ने जन्म लिया वह हिन्दी साहित्य में किस नाम से विख्यात है?
2. “गागर में सागर भर दिया है” यह उक्ति किस कवि के लिए प्रयोग की गयी है?
3. कठिन काव्य का प्रेत किसे कहा जाता है?
4. छायावाद के प्रमुख तीन कवियों के नाम लिखिये, जिन्होंने इस काल को स्वर्णिम बनाया।
5. छायावाद के उपरान्त काव्य जगत में क्रान्ति लाने वाले विद्रोही कवि का नाम लिखिए।
6. प्रयोगवादी कवि प्रमुख रूप से किससे प्रभावित थे?
7. प्रयोगवादी कवियों ने प्रयोग के उपरान्त क्या-क्या अन्वेषण किया?
8. ‘सुनहले शैवाल’ कविता की रचना किस कवि ने की है?
उत्तर-
1. रीतिकाल के नाम से,
2. बिहारी,
3. केशवदास,
4. महादेवी वर्मा,प्रसाद व पन्त,
5. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
6. फ्रायड से,
7. नये प्रतीक, नये बिम्ब, नये उपमान, नई कविता,
8. अज्ञेय।
(ख) अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है? रीतिकाल के कोई दो कवियों एवं उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
अथवा
रीतिकाल के प्रमुख कवि तथा उनकी एक-एक रचनाओं का उल्लेख कीजिए। [2009, 13]
अथवा
रीतिकालीन काव्य को किन धाराओं में विभक्त किया गया है? इस काल के दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
इस काल में दरबारी कवियों ने श्रृंगार की रचनाओं का ही सृजन किया था, अतः इसे श्रृंगार काल के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इस काल में नारी के नख-शिख का अतिरंजित चित्रण है।
रीतिकाल को तीन भागों में बाँटा गया है-
- रीतिसिद्ध,
- रीतिबद्ध,
- रीतिमुक्त।
रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ-बिहारी (‘बिहारी सतसई), केशव (रामचन्द्रिका), भूषण (शिवराज भूषण), घनानन्द (विरह लीला)।
प्रश्न 2.
रीतिकाल में कौन-से छन्दों का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
छन्दों में दोहा, चौपाई, कवित्त तथा सवैया छन्द का प्रयोग विशेष रूप से किया गया है।
प्रश्न 3.
रीतिकाल के कवियों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। किन्हीं दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
रीतिकाल के कवियों की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- रीति ग्रन्थों की रचना,
- श्रृंगार रस की प्रधानता,
- आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
- नीतिपरक काव्यों की रचना,
- भक्ति-नीति प्रकृति का चित्रण,
- नारी-सौन्दर्य का विलासितापूर्ण चित्रण,
- अलंकारों का चमत्कारिक प्रयोग।
प्रमुख कवि-बिहारी, भूषण।
प्रश्न 4.
छायावादी युग के प्रमुख चार कवियों तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
- महादेवी वर्मा-नीरजा, यामा।
- जयशंकर प्रसाद कामायनी, लहर।
- सुमित्रानन्दन पन्त-युगवाणी, पल्लव।
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-परिमल, अपरा।
प्रश्न 5.
छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
छायावाद की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
- काव्य में वर्णन की काल्पनिकता,
- प्रकृति के कोमल पक्ष का चित्रण,
- रहस्यवादी भावनाओं का पुट,
- सामाजिकता के स्थान पर वैयक्तिकता।
प्रश्न 6.
छायावाद की प्रमुख दो विशेषताएँ लिखते हुए इस काल के चार कवियों के नाम, उनकी रचनाओं सहित लिखिए।
उत्तर-
- काव्य में वर्णन की काल्पनिकता,
- प्रकृति के कोमल पक्ष का चित्रण,
- रहस्यवादी भावनाओं का पुट,
- सामाजिकता के स्थान पर वैयक्तिकता।
- महादेवी वर्मा-नीरजा, यामा।
- जयशंकर प्रसाद कामायनी, लहर।
- सुमित्रानन्दन पन्त-युगवाणी, पल्लव।
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-परिमल, अपरा।
प्रश्न 7.
प्रगतिवादी चार कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
- नरेन्द्र शर्मा,
- बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’,
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
- सुमित्रानन्दन पन्त।
प्रश्न 8.
छायावादी युग में प्रमुख रूप से कौन-सी शैली प्रयुक्त हुई?
उत्तर-
छायावादी युग प्रमुख रूप से मुक्तक गीतों का युग है।
प्रश्न 9.
प्रगतिवाद के किसी ऐसे कवि का नाम और उसकी दो रचनाओं का उल्लेख करें जो दो युगों से सम्बन्धित हैं?
उत्तर-
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ दो युगों-छायावाद और प्रगतिवाद से सम्बन्धित कवि हैं। इनकी दो रचनाएँ हैं-
- अनामिका एवं
- अणिमा।
प्रश्न 10.
प्रयोगवाद का प्रारम्भ किस कविता के संकलन से माना जाता है?
उत्तर-
प्रयोगवाद का प्रारम्भ अज्ञेय द्वारा सम्पादित तारसप्तक, जो कि सन् 1943 ई. में प्रकाशित हुआ था; से माना जाता है।
प्रश्न 11.
प्रयोगवादी काव्यधारा के दो कवि और उनकी एक-एक रचना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
कवि – रचना
- धर्मवीर भारती – कनप्रिया
- सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’। – ऑगन के पार द्वार
प्रश्न 12.
प्रथम ‘तारसप्तक’ के चार कवियों का नाम लिखिए।
उत्तर-
- सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’,
- गजानन माधव मुक्तिबोध,
- विष्णु प्रभाकर माचवे,
- गिरिजा कुमार माथुर।
प्रश्न 13.
अज्ञेय की कुछ रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
- आँगन के पार द्वार,
- अरी ओ करुणा प्रभामय,
- इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये,
- कितनी नावों में कितनी बार,
- बावरा अहेरी,
- इत्यलम्,
- चिन्ता,
- पहले मैं सन्नाटा बुनता था,
- सागर मुद्रा,
- हरी घास पर क्षण भर आदि।
प्रश्न 14.
प्रगतिवादी कवियों का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
सरल शैली को अपनाकर अपनी रचनाओं को जनसाधारण तक पहुँचाना इनका मुख्य उद्देश्य रहा है।
प्रश्न 15.
प्रगतिवादी काव्य की कोई चार विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
प्रगतिवाद की दो प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिए। दो कवियों एवं उनकी एक-एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर-
- व्यंग्य शैली का प्रयोग।
- साम्यवादी विचारधारा से प्रभावित।
- मानवीय सम्बन्धों में समानता पर जोर।
- रूढ़ियों का विरोध।
- क्रान्ति की भावना।
- शोषितों की दुर्दशा का चित्रण।
प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ-
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’-अनामिका।
- नागार्जुन-युगाधार।
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’-रेणुका।
प्रश्न 16.
नई कविता की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
- बौद्धिकता,
- शिल्पगत नवीनता,
- मानवता की महत्ता,
- परम्परागत नहीं है।
प्रश्न 17.
नई कविता की बिम्ब योजना किस प्रकार की है?
उत्तर-
नई कविता की बिम्ब योजना सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक रूप में अंकित है।
प्रश्न 18.
नई कविता में किस गुण का अभाव है?
उत्तर-
नई कविता में रसात्मकता का अभाव है।
प्रश्न 19.
नई कविता के दो कवि और उनकी दो-दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
कवि – रचनाएँ
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना काठ की घंटियाँ,बाँस का पुल
- गजानन माधव मुक्तिबोध चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक धूल
प्रश्न 20.
प्रयोगवादी कविता का परिष्कृत रूप क्या है?
उत्तर-
प्रयोगवादी कविता का परिष्कृत रूप नई कविता है।
प्रश्न 21.
नई कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
नई कविता का मुख्य उद्देश्य वैयक्तिकता के साथ सामाजिकता का भी चित्रण करना है।
प्रश्न 22.
आधुनिक काल की दो प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
आधुनिक काल की कोई दो विशेषताएँ लिखते हुए बताइए कि इसे गद्य काल क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
विशेषताएँ (प्रवृत्तियाँ)-
- हिन्दी काव्य में नवीन भाव, विचार एवं अभिव्यंजना का विकास हुआ।
- छायावाद,प्रयोगवाद एवं प्रगतिवाद का शुभारम्भ हुआ।
आधुनिक काल का समय सन् 1843 ई. से अब तक माना गया है। इस काल में हिन्दी साहित्य का बहुमुखी विकास हुआ। इस काल में अंग्रेजों के शासन के विरुद्ध जन-जागरण समाज-सुधार, नारी जागृति, हरिजनोद्धार, भाषा परिमार्जनोद्धार आदि पर विशेष ध्यान केन्द्रित रहा। आधुनिक चेतना से युक्त होने तथा गद्य प्रधान रचनाओं के कारण इस काल को आधुनिक काल अथवा गद्य काल कहा जाता है।
प्रश्न 23.
रहस्यवाद से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
- महादेवी वर्मा के शब्दों में, “अपनी सीमा को असीम तत्त्व में खोजना ही रहस्यवाद है।”
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है. भावना के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है।”
प्रश्न 24.
(अ) रहस्यवाद के दो कवियों के नाम तथा उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
- कबीर (कबीर ग्रन्थावली)
- मलिक मोहम्मद जायसी (पद्मावत)।
(ब) सूर एवं तुलसीदास की भक्ति भावना की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
सूरदास-
- सखा भाव की भक्ति,
- कृष्ण का लोक रंजन रूप का चित्रण।
तुलसीदास
- दास भाव की भक्ति,
- राम का लोकरक्षक रूप में अंकन।
प्रश्न 25.
रीतिबद्ध एवं रीतिमुक्त काव्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
रीति का आशय है काव्य शास्त्रीय लक्षण। रीतिकाल में जो काव्य रचनाएँ काव्यशास्त्र की रीतियों अथवा लक्षणों के आधार पर लिखे गये, वे रीतिबद्ध काव्य की कोटि में आते हैं।
प्रश्न 26.
लोकायतन महाकाव्य के रचयिता कौन हैं?
उत्तर-
इसके रचयिता महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं।
प्रश्न 27.
हिन्दी साहित्य के प्रथम युग का नाम वीरगाथा काल क्यों पड़ा?
उत्तर-
इस युग में अधिकांशत: वीर रस प्रधान काव्य का सृजन हुआ है। इसलिए इस युग का नाम वीरगाथा काल पड़ा।
(ग) लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रीतिकाल के लिए कौन-कौन-से नाम सुझाये गये हैं? नामकरण करने वाले लेखकों के नाम लिखिए।
उत्तर-
रीतिकाल के विभिन्न नाम और नामकरण करने वाले लेखकों के नाम इस प्रकार हैं
- रीतिकाल-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- कला काल-डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’
- अलंकृत काल-मिश्र बन्धु
- श्रृंगार काल-आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र।
प्रश्न 2.
रीतिबद्ध और रीतिमुक्त काव्य में अन्तर बताइए।
उत्तर-
रीतिबद्ध काव्य में रीतिकालीन काव्य के समस्त बन्धनों एवं रूढ़ियों का दृढ़ता से पालन किया जाता था।
रीतिमुक्त कविता में रीतिकाल की परम्परा के साहित्यिक बन्धनों एवं रूढ़ियों से मुक्त स्वच्छन्द रूप से काव्य रचना की जाती थी।
प्रश्न 3.
“रीतिकाल की कविता, कविता न होकर राज दरवार की वस्तु है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इस काल में प्रत्येक कवि इस बात का प्रयत्न करता था कि वह अन्य कवियों से आगे निकल जाये। फलस्वरूप अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के निमित्त कविता की रचना करने का प्रयास करता था। इस प्रकार कविता, कविता न होकर राज दरबार की सीमा तक सिमट कर रह गई।
प्रश्न 4.
रीतिकाल की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- रीति या लक्षण ग्रन्थों की रचना,
- श्रृंगार रस की प्रधानता,
- काव्य में कलापक्ष की प्रधानता,
- मुक्तक काव्य की प्रमुखता,
- ब्रजभाषा का चरमोत्कर्ष,
- आश्रयदाताओं की प्रशंसा,
- प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण,
- नीतिपरक सूक्तियों की रचना,
- दोहा, सवैया, कवित्त छन्दों की प्रचुरता।
प्रश्न 5.
भारतेन्दुयुगीन काव्य की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
भारतेन्दु युग की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- समाज में फैली कुरीतियों, आडम्बरों, अंग्रेजों के अत्याचारों आदि का चित्रण कर जन-जागरण करना,
- भारत के प्राचीन गौरव तथा नवीन आवश्यकताओं का चित्रण,
- देश-प्रेम तथा राष्ट्रीयता का उद्घोष,
- प्रेम, सौन्दर्य और प्रकृति के विविध रूपों का अंकन,
- सरल एवं सुबोध भाषा शैली।
प्रश्न 6.
आधुनिक काल की कविता के इतिहास को कितने कालों में विभाजित किया गया है? प्रत्येक काल के एक-एक कवि का नाम लिखिए।
उत्तर-
आधुनिक काल की कविता के इतिहास को निम्नलिखित प्रकार से विभाजित किया गया है-
काल – प्रमुख कवि
- छायावाद – जयशंकर प्रसाद
- प्रगतिवाद – सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
- प्रयोगवाद – अज्ञेय
- नई कविता – गिरिजाकुमार माथुर
प्रश्न 7.
आधुनिक काल की चार विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
- राष्ट्रीय चेतना के स्वर मुखरित हैं।
- साहित्य की विभिन्न विधाओं का सृजन हुआ है।
- अंग्रेजी तथा बाल साहित्य का प्रभाव दृष्टिगोचर है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
- प्राचीन एवं नवीन का समन्वय।
प्रश्न 8.
छायावादी काव्य का परिचय दीजिए तथा प्रमुख कवियों के नाम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
जिस काव्य में भावुकतापूर्ण व्यक्तिगत सूक्ष्म अनुभूतियों का चित्रण छाया रूप में किया गया है,मनीषियों ने छायावादी काव्य के नाम से सम्बोधित किया है। काव्य चित्रों के छाया रूप चित्रण के कारण ही छायावादी काव्य में दार्शनिकता रहस्यात्मकता दिखायी देती है।
महादेवी वर्मा,जयशंकर प्रसाद एवं सुमित्रानन्दन पन्त प्रमुख छायावादी कवि हैं।
प्रश्न 9.
छायावादी काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
छायावादी काव्य की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- छायावादी काव्य में कल्पना को प्रधानता दी गई है।
- प्रकृति को चेतन मानते हुए उसका सजीव चित्रण किया गया है।
- प्रेम और सौन्दर्य की व्यंजना हुई है।
- भाषा अत्यन्त ही सरल तथा लाक्षणिक कोमलकान्त पदावली युक्त है।
- छन्दों तथा अलंकारों का नवीनतम् प्रयोग किया गया है।
प्रश्न 10.
प्रगतिवादी प्रमुख कवियों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रगतिवादी प्रमुख कवि इस प्रकार हैं-
- सुमित्रानन्दन पन्त,
- सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’,
- भगवतीचरण वर्मा,
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’,
- नरेन्द्र शर्मा,
- डॉ. रामविलास शर्मा,
- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’,
- नागार्जुन,
- केदारनाथ अग्रवाल।
प्रश्न 11.
प्रगतिवादी युग की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रगतिवादी काव्यधारा में पूँजीवादी व्यवस्था का विरोध करते हुए साम्यवाद का रूपान्तरण हुआ है। प्रगतिवादी युग की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- साम्यवादी विचारधारा (विशेष रूप से कार्ल मार्क्स से प्रभावित),
- मानवतावादी दृष्टिकोण,
- पूँजीपति के प्रति विद्रोह,
- शोषितों के प्रति सहानुभूति,
- छन्दों के बन्धन की उपेक्षा,
- ‘कला को कला के लिए’ न मानकर ‘कला को जीवन के लिए’ का सिद्धान्त अपनाया।
प्रश्न 12.
प्रयोगवादी काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
उत्तर-
प्रयोगवाद हिन्दी साहित्य की आधुनिकतम विचारधारा है। इसका एकमात्र उद्देश्य प्रगतिवाद के जनवादी दृष्टिकोण का विरोध करना है। प्रयोगवादी कवियों ने काव्य के भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों को ही महत्त्व दिया है। इन्होंने प्रयोग करके नये प्रतीकों, नये उपमानों एवं नवीन बिम्बों का प्रयोग कर काव्य को नवीन छवि प्रदान की है। प्रयोगवादी कवि अपनी मानसिक तुष्टि के लिए कविता की रचना करते थे। प्रयोगवादी कविता का प्रारम्भ 1943 ई. में अज्ञेय के ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन से माना जाता है।
प्रश्न 13.
प्रयोगवाद की दो विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
प्रयोगवादी कविता की कोई तीन विशेषताएँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर-
- जीवन का यथार्थ चित्रण।
- भाषा का स्वच्छन्द प्रयोग किया गया।
- नवीन उपमानों का प्रयोग किया गया।
- व्यक्तिवाद को प्रधानता।।
प्रश्न 14.
प्रयोगवादी प्रमुख कवियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रयोगवादी प्रमुख कवि इस प्रकार हैं
- सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ प्रवर्तक,
- गिरिजाकुमार माथुर,
- प्रभाकर माचवे,
- नेमिचन्द्र जैन,
- भारत भूषण,
- धर्मवीर भारती,
- गजानन माधव मुक्तिबोध,
- शकुन्त माथुर,
- रामविलास शर्मा,
- भवानीप्रसाद मिश्र,
- जगदीश गुप्त आदि।
प्रश्न 15.
नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
अथवा
नई कविता की दो विशेषताएँ लिखते हुए दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सन् 1950 ई. के बाद नई कविता के नये रूप का शुभारम्भ हुआ। प्रयोगवादी कविता ही विकसित होकर नई कविता कहलायी। यह कविता किसी भी प्रकार के वाद के बन्धन में न बँधकर वाद मुक्त होकर रची गयी। इस प्रकार यह नया काव्य परम्परागत न होकर इतना अलग हो गया कि इसे कविता न कहकर अकविता कहा जाने लगा। नई कविता की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं
- नये प्रतीकों व बिम्बों का प्रयोग,
- अति यथार्थता,
- पलायन की प्रवृत्ति,
- वैयक्तिकता,
- निराशावाद,
- बौद्धिकता।
नई कविता के प्रमुख कवि-डॉ.जगदीश चन्द्र गुप्त,सोम ठाकुर, दुष्यन्त कुमार।
प्रश्न 16.
तृतीय तारसप्तक कब प्रकाशित हुआ? इसके सात कवियों के नामों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
तीसरा सप्तक’ सन् 1959 ई.में प्रकाशित हुआ। इसके सात कवि इस प्रकार हैं
- केदारनाथ सिंह,
- कुँवर नारायण,
- प्रयाग नारायण त्रिपाठी,
- मदन वात्स्यायन,
- कीर्ति चौधरी,
- विजय देव नारायण साही,
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
प्रश्न 17.
वर्तमान हिन्दी काव्य से सम्बन्धित दो प्रमुख प्रवृत्तियाँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वर्तमान हिन्दी काव्य की प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं-
(1) नारी के प्रति परिवर्तित दृष्टिकोण,
(2) यथार्थवादी चित्रण।
प्रश्न 18.
नई कविता के प्रवर्तक कवि तथा दो जीवित कवियों का नाम लिखिए।
अथवा
नई कविता के प्रमुख कवि बताइए।
उत्तर-
नई कविता के प्रवर्तक कवि डॉ. जगदीश चन्द्र गुप्त हैं। वर्तमान में नई कविता के प्रमुख कवि हैं
- सोम ठाकुर,
- दुष्यन्त कुमार।
प्रश्न 19.
नई कविता की संज्ञा किस प्रकार की कविताओं को दी गयी है?
उत्तर-
जिन कविताओं में आधुनिक युगीन भावों तथा विचारों की अभिव्यक्ति नवीन भाषाशिल्पों के द्वारा होती है, उसे नई कविता की संज्ञा दी जाती है। बौद्धिकता, क्षणवाद, संघर्ष तथा व्यक्तिगत कुंठाओं की नवीन काव्य धारा में प्रधानता होती है।
प्रश्न 20.
द्विवेदी युग की कविता की तीन विशेषताएँ लिखकर दो कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
द्विवेदी युग की कविता की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- यथार्थ प्रधान भाव,
- हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग,
- समाज सुधार की भावना।
कवि-
- मैथिलीशरण गुप्त,
- अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’।