NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 पतझर में टूटी पत्तियाँ
NCERT Class 10 Hindi Solutions Sparsh Chapter 16 are provided here. We have covered all the intext questions of your textbook given in the lesson. We have also provided some additional questions which are important with respect to your exam. Read all of them to get good marks.
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए|
I.
प्रश्न 1.
शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर
शुद्ध सोना बिना किसी मिलावट के होता है। यह पूरी तरह शुद्ध होता है। गिन्नी के सोने में ताँबे की मिलावट होती है। इसी ताँबे के कारण गिन्नी का सोना ज्यादा चमकता है और शुद्ध सोने की तुलना में मजबूत भी अधिक होता है। औरतें अकसर गिन्नी के सोने के गहने बनवाती हैं।
प्रश्न 2.
प्रैक्टिकल आईडियालिस्ट किसे कहते हैं?
उत्तर
प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट वे होते हैं जो आदर्शों का प्रयोग अपने व्यवहार में करते हैं तथा आदर्शों और व्यावहारिकता के मेल से उसे व्यवहार योग्य बनाता है।
प्रश्न 3.
पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर
पाठ के आधार पर शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने के समान है जिस प्रकार शुद्ध सोने में किसी प्रकार की कोई मिलावट नहीं होती उसी प्रकार शुद्ध आदर्शों पर व्यावहारिकता हावी नहीं होती। जिसमें पूरे समाज की भलाई छिपी हुई हो तथा जो समाज के शाश्वत मूल्यों को बनाए रखने में सक्षम हो, वही शुद्ध आदर्श है।
II.
प्रश्न 4.
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर
लेखक ने जापानियों के दिमाग में ‘स्पीड’ का इंजन लगने की बात इसलिए कही है क्योंकि जापानी अपने काम को अत्यंत द्रुत गति से करते हैं। उन्हें देखकर लगता है कि वे महीने भर का काम एक ही दिन में निपटा देना चाहते हैं।
प्रश्न 5.
जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर
जापानी में चाय पीने की विधि को “चा-नो-यू” कहते हैं, जिसका अर्थ है-‘टी-सेरेमनी’ और चाय पिलाने वाला ‘चाजीन कहलाता है।
प्रश्न 6.
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर
जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है वहाँ ऐसी शांति होती है जहाँ पानी का खदबदाना भी सुना जा सकता है। वह ‘चाजीन’ सारे कार्य अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से शांत वातावरण में करता है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए|
I.
प्रश्न 1.
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर
शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से इसलिए की गई है क्योंकि शुद्ध आदर्श सोने की तरह शुद्ध होते हैं। जिस प्रकार शुद्ध | सोने में कोई मिलावट नहीं होती उसी प्रकार शुद्ध आदर्श भी व्यावहारिकता की मिलावट के बिना होते हैं। व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से इसलिए की गई है क्योंकि जिस प्रकार शुद्ध सोने में ताँबा मिलाकर उसकी गुणवत्ता को सुधारा जाता है और उसमें चमक उत्पन्न की जाती है, उसी प्रकार आदर्श का व्यवहारिकता से मेल करवाकर आदर्शों को मजबूत किया जाता है। जीवन केवल आदर्शों से नहीं चलता, जीवन में आदर्शों के साथ-साथ व्यावहारिकता का होना भी आवश्यक है। इससे समाज का रूप भी निखर जाता है।
II.
प्रश्न 2.
चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर
‘चाजीन’ ने टी-सेरेमनी में निम्नलिखित क्रियाएँ गरिमामय ढंग से की-
- चाजीन ने कमर तक झुककर प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई।
- बिना खटपट किए अँगीठी जलाई और उस पर चायदानी रखा।
- चाय के बर्तन लाकर तौलिए से साफ़ किए।
- चाय कपों में डालकर गरिमापूर्ण ढंग से लेखक और उसके साथियों के सामने रखा।
प्रश्न 3.
‘टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर
‘टी सेरेमनी में केवल तीन आदमियों को प्रवेश दिया जाता था। क्योंकि एक तो यह स्थान बहुत छोटा होता है दूसरा इस सेरेमनी का उद्देश्य है-शांतिमय वातावरण । दौड़-धूप भरे जीवन से हटकर भूत और भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान पल को शांति से बिताना ही ‘टी सेरेमनी’ का उद्देश्य होता है। अधिक आदमियों के आने से शांति के स्थान पर अशांति का माहौल बन जाता है, इसलिए तीन से अधिक आदमियों को यहाँ प्रवेश नहीं दिया जा सकता।
प्रश्न 4.
चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर
चाय पीने के बाद लेखक ने अनुभव किया कि-
- जैसे उसके दिमाग की शांति मंद पड़ गई हो।
- उसका दिमाग धीरे-धीरे चलना बंद हो गया।
- उसे सन्नाटे की आवाज़ भी सुनाई देने लगी।
- वह भूतकाल एवं भविष्य को भूलकर वर्तमान में जीने लगा जो उसे लंबा प्रतीत होने लगा।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए
I.
प्रश्न 1.
गांधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी; उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए।
उत्तर
गांधी जी में नेतृत्व की अदभूत क्षमता थी। वे सभी लोगों को साथ लेकर चलते थे। वे अपने आदर्शों में व्यावहारिकता को नहीं मिलने देते थे, बल्कि व्यावहारिकता में आदर्श मिलाते थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन व भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सत्य और अहिंसा को अपने आदर्शों का हथियार बनाया। इन्हीं सिद्धांतों के बलबूते पर उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से टक्कर ली। उनके नेतृत्व में लाखों भारतीयों ने उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। सभी उनका नेतृत्व स्वीकार करके गर्व का अनुभव करते थे। उनकी पहली प्राथमिकता लोक कल्याण थी। वे अपने स्वार्थों को किसी भी कार्य में बाधा नहीं बनने देते थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण सारी जनता उनके पीछे हो जाती थी।
प्रश्न 2.
आपके विचार में कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
मेरे विचार में सत्य अहिंसा, परोपकार त्याग, समानता, करुणा आदि शाश्वत मूल्य हैं। वर्तमान समय में लोगों में स्वार्थपरता, आत्मकेंद्रितता, वैचारिक संकीर्णता, ऊँच-नीच की भावना आदि बढ़ी है। समता और समरसता की भावना कहीं खो-सी गई है। आज सत्य की जगह असत्य का अहिंसा की जगह हिंसा का, त्याग की जगह छीना-झपटी का बोलबाला है। सामाजिक समरसता कहीं खो-सी गई है। लोग एक दूसरे पर हावी होना चाहते हैं ऐसे में एक स्वस्थ और आदर्श समाज के निर्माण सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, विश्व बंधुत्व की भावना आदि मूल्यों की अत्यंत आवश्यकता है। ऐसे में इनकी प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है।
प्रश्न 3.
अपने जीवन की किसी ऐसी घटना का उल्लेख कीजिए जब|
(1) शुद्ध आदर्श से आपको हानि-लाभ हुआ हो।
(2) शुद्ध आदर्श में व्यावहारिकता का पुट देने से लाभ हुआ हो।
उत्तर
(1) मेरे जीवन का आदर्श है कि मैं न तो रिश्वत लेता हूँ और न रिश्वत देता हूँ। यद्यपि इसकी वजह से मुझे कई बार हानि उठानी पड़ी है। मुझे नगर-निगम का प्रमाणपत्र इसलिए देर से मिला कि मैंने एक संबंधित अधिकारी को रिश्वत नहीं दी। वैसे इससे मुझे कोई विशेष हानि नहीं हुई पर निगम कार्यालय के दस चक्कर अवश्य लगाने पड़े।
(2) मेरा आदर्श है कि मैं अपने छात्रों को नकल नहीं करने देती। मैंने अपने इस आदर्श में व्यावहारिकता का पुट यह दिया है कि मैं अब नकल तो नहीं करने देती; पर नकल करनेवालों पर केस न बनाकर उनकी नकल की सामग्री फाड़ देती हूँ या उनकी कॉपी बदल देती हैं। इससे उनका साल खराब नहीं होता।
प्रश्न 4.
शुद्ध सोने में ताँबे की मिलावट या ताँबे में सोना, गाँधी जी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
गांधी जी सच्चे आदर्शवादी थे। वे अपने आदर्शों को गिरने नहीं देते थे और न उनसे समझौता ही किया करते थे अर्थात् वे ताँबे में सोना मिलाते थे। वे अपने आदर्शों को व्यावहारिकता के नाम पर गिराते नहीं थे। दूसरे लोग व्यावहारिकता के नाम पर अपने आदर्शों से समझौता कर लेते हैं। ऐसा करके वे सोने में ताँबा मिलाते थे। इसके विपरीत गांधी जी ताँबे में सोना मिलाते थे।
प्रश्न 5.
‘गिरगिट’ कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी | देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि आदर्शवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्त्व है?
उत्तर
‘गिरगिट कहानी में आदर्शवादिता का महत्त्व है। ‘व्यावहारिकता’ हमें अवसरवादिता का पाठ पढ़ती है। अवसरवादी व्यक्ति सदा अपना हित देखता है। वह प्रत्येक कार्य अपना लाभ-हानि देखकर ही करता है। व्यावहारिक लोग अपने स्वार्थ के लिए किसी से भी समझौता कर लेते हैं। ऐसे लोगों पर विश्वास नहीं किया जा सकता। आज समाज में जितने भी शाश्वत मूल्य हैं, वे सभी आदर्शवादियों की देन हैं। व्यावहारिक लोगों ने तो समाज का अहित किया है। व्यावहारिक लोग अपने स्वार्थ के लिए गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं।
II.
प्रश्न 6.
लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर
लेखक के मित्र ने जापानियों की मानसिक रुग्णता के निम्नलिखित कारण बताए हैं-
- जापानी तेज़ गति से चिंतन-मनन करते हैं।
- वे तेज़ सोचते हुए महीने का काम एक दिन में करना चाहते हैं।
- वे अमेरिका की भाँति विकसित हो जाना चाहते हैं।
- वे तेज़ चलने वाले दिमाग को और भी तेज़ करना चाहते हैं जिससे वह संतुलन खो बैठता है और लोग मानसिक रोगी हो जाते हैं।
मैं इन तथ्यों से पूर्णतया सहमत हूँ क्योंकि हर चीज़ की अति खराब होती है। मानव मस्तिष्क भी एक यंत्र की भाँति है। जिसके काम करने की एक सीमा है तथा उसे भी समय-समय पर आराम की आवश्यकता होती है। दिन-रात काम करने से मानसिक संतुलन बिगड़ना स्वाभाविक ही है।
प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, हमें उसी में जीना चाहिए क्योंकि केवल सत्य ही शाश्वत है। वर्तमान स्वयं ही
सत्य है। हम अकसर या तो गुजरे हुए दिनों की खट्टी-मीठी यादों में उलझे रहते हैं या भविष्य के सुखद सपने देखते रहते हैं। हम या तो भूतकाल में रहते हैं या भविष्यत् काल में। हम जब भूतकाल के अपने सुखों एवं दुखों पर गौर करते हैं तो हमारे दुख बढ़ जाते हैं। भविष्य की कल्पनाएँ भी हमें दुखी करती हैं। क्योंकि हम उन्हें पूरा नहीं कर पाते। जो बीत गया वह सत्य नहीं हो सकता। जो अभी तक आया ही नहीं उस पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। वर्तमान ही सत्य, जो कुछ हमारे सामने घटित हो रहा है। इसमें कोई दुविधा नहीं है।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए
I.
प्रश्न 1.
समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आदर्शवादी लोगों को ही दिया हुआ है।
उत्तर
आदर्श एवं मूल्यों को परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है। आदर्श के बिना मूल्य और मूल्यों के बिना आदर्श की कल्पना करना संभव नहीं है। आदर्शवादी लोग ही समाज में मूल्यों की स्थापना करते हैं। जब समाज एक आदर्श स्थापित करता है। और जो सबके हित में सर्वमान्य हो जाता है वही आदर्श मूल्य बन जाता है। समाज में सत्य, अहिंसा, त्याग, परोपकार, समानता, व बंधुता ऐसे शाश्वत तत्त्व हैं जो आदर्शवादियों द्वारा प्रदान किए गए हैं, जिनका अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता। उन्होंने बिना स्वार्थ अपने व्यवहार से आदर्शों को ऊँचा उठाने का प्रयत्न किया है कभी उनके स्तर को गिरने नहीं दिया। इसके लिए उनका व्यक्तित्व ही प्रमाण है।
प्रश्न 2.
जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब प्रैक्टिकल आइडियालिस्टों के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है।
उत्तर
जब आदर्श और व्यवहार में समन्वय की बात आती है तो लोग आदर्शों की उपेक्षा करने लगते हैं और व्यावहारिकता को अधिक महत्त्व देने लगते हैं। ऐसे में उनका आदर्श व्यवहार गिरने लगता है। वे व्यावहारिकता के कारण आदर्शों से समझौता करने लगते हैं। इन समझौतों से आदर्शों का लोप होने लगता है। लोग आदर्श की उपेक्षा करके व्यावहारिक सूझ-बूझ से काम लेने लगते हैं।
II.
प्रश्न 3.
हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर
लेखक जापानियों की मनोदशा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि जापान के लोगों के जीवन की गति इतनी तीव्र हो गई है कि यहाँ लोग सामान्य जीवन जीने की बजाए असामान्य होते जा रहे हैं। वे चलने की बजाए दौड़ने लगे हैं। वे बोलने की बजाए बकने लगे हैं। अकेले में बड़बड़ाते रहते हैं क्योंकि उनमें प्रत्येक कार्य में अमेरिका से आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा की भावना घर कर गई है। इसी कारण वे तनावपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
प्रश्न 4.
सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर पूँज रहे हों।
उत्तर
लेखक और उसका मित्र टी-सेरेमनी में चाय पीने गए। वहाँ चाजीन द्वारा कमर झुकाकर स्वागत करना, बैठने की जगह की ओर इशारा करना, अँगीठी सुलगाना, बर्तन साफ़ करना, चाय बनाना आदि क्रियाएँ अत्यंत शांत वातावरण में अत्यंत गरिमापूर्ण ढंग से की गईं। ऐसा लगता था कि वहाँ की हर क्रिया में संगीत का स्वर पूँज रहा हो जिसे साफ़-साफ़ सुना। जा सकता है। इससे लेखक को असीम शांति की अनुभूति हुई।
भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए शब्दों का वाक्य में प्रयोग कीजिए
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत।।
उत्तर
व्यावहारिकता-आदर्शो की सार्थकता उसे व्यावहारिकता में लाने पर ही होती है।
आदर्श-हमें अपने व्यवहार को आदर्श बनाने का प्रयास करना चाहिए।
सूझबूझ-युवक ने अपनी सूझबूझ से सभी यात्रियों की जान बचाई।।
विलक्षण-रामानुजम की विलक्षण प्रतिभा से सभी लोग प्रभावित हो गए।
शाश्वत-सत्य शाश्वत रहता है, वह कभी नहीं मरता।
प्रश्न 2.
‘लाभ-हानि’ का विग्रह इस प्रकार होगा-लाभ और हानि
यहाँ द्वंद्व समास है जिसमें दोनों पद प्रधान होते हैं। दोनों पदों के बीच योजक शब्द का लोप करने के लिए योजक-चिह्न लगाया जाता है। नीचे दिए गए वंद्व समास की विग्रह कीजिए-
1. माता-पिता = ……..
2. पाप-पुण्य = …….
3. सुख-दुख = ………
4. रात-दिन = ……….
5. अन्न-जल = ……….
6. घर-बाहर = ………..
7. देश-विदेश = ………..
उत्तर- 1. माता-पिता = माता और पिता
2. पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
3. सुख-दुख = सुख और दुख
4. रात-दिन = रात और दिन
5. अन्न-जल = अन्न और जल
6. घर-बाहर = घर और बाहर
7. देश-विदेश = देश और विदेश
प्रश्न 3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए-
1. सफल = ………
2. विलक्षण = ………….
3. व्यावहारिक = …………………
4. सजग = ………..
5. आदर्शवादी = ……….
6. शुद्ध = ………….
उत्तर-
1. सफल = सफलता
2. विलक्षण = विलक्षणता
3. व्यावहारिक = व्यावहारिकता
4. सजग = सजगता
5. आदर्शवादी = आदर्शवादिता
6. शुद्ध = शुद्धता
प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए-
(क) शुद्ध सोना अलग है।
(ख) बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में सोना” का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना” का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दूसरे वाक्य में ‘सोना’ को अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भो में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर-
उत्तर- सड़क की उत्तर दिशा में डाकखाना है।
मुझे इस प्रश्न का उत्तर नहीं मालूम है।
कर – हमें आय कर चुका कर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए।
अध्यापक को दखते ही मैंने कर बद्ध प्रणाम किया।
अंक – माँ ने सोते बच्चे को अंक में उठा लिया।
एक अंक की कुल 4 संख्याएँ हैं।
नग – हिमालय को नग राज कहा जाता है।
उसके घर में कीमती नग जड़ा है।
प्रश्न 5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए-
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ़ किए।
उत्तर- (क) अँगीठी सुलगायी और उस पर चायदानी रखी।
(ख) चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिये से बरतन साफ़ किए।
प्रश्न 6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए-
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर- (क) चाय पीने की यह एक विधि है जिसे जापानी में चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) उस बर्तन में पानी भरा था जो बाहर बेढब-सा मिट्टी का बना था।
(ग) जब चाय तैयार हुई तब वह प्यालों में भर कर हमारे सामने रखी गई।
योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. गांधी जी के आदर्शों पर आधारित पुस्तकें पढ़िए; जैसे- महात्मा गांधी द्वारा रचित ‘सत्य के प्रयोग’ और गिरिराज किशोर द्वारा रचित उपन्यास ‘गिरमिटिया’।
उत्तर- छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2. पाठ में वर्णित ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर ‘टी-सेरेमनी’ का शब्द चित्र- एक छह मंजिली इमारत की छत पर झोपड़ीनुमा कमरा है, जिसकी दीवारें दफ़्ती की बनी है। फ़र्श पर चटाई बिछी है। वातावरण अत्यंत शांतिपूर्ण है। बाहर ही एक बड़े से बेडौल मिट्टी के बरतन में पानी रखा है। लोग यहाँ हाथ-पाँव धोकर अंदर जाते हैं। अंदर बैठा चाजीन झुककर सलाम करता है। बैठने की जगह की ओर इशारा करता है और चाय बनाने के लिए अँगीठी जलाता है। उसके बर्तन अत्यंत साफ़-सुथरे और सुंदर हैं। वातावरण इतना शांत है कि चायदानी में उबलते पानी की आवाज साफ़ सुनाई दे रही है। वह बिना किसी जल्दबाजी के चाय बनाता है। वह कप में दो-तीन घूट भर ही चाय देता है जिसे लोग धीरे-धीरे चुस्कियाँ लेकर एक डेढ़ घंटे में पीते हैं।
परियोजना कार्य
प्रश्न 1. भारत के नक्शे पर वे स्थान अंकित कीजिए जहाँ चाय की पैदावार होती है। इन स्थानों से संबंधित भौगोलिक स्थितियों और अलग-अलग जगह की चाय की क्या विशेषताएँ हैं, इनका पता लगाइए और परियोजना पुस्तिका में लिखिए।
उत्तर- मानचित्र
अन्य पाठेतर हल प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. शुद्ध सोने का उपयोग कम किया जाता है, क्यों?
उत्तर- शुद्ध सोना मिलावट रहित होता है। इसमें किसी अन्य धातु की मिलावट नहीं होती है। यह नरम लचीला तथा कम कठोर | होता है। इसमें चमक भी कम होती है। इसकी शुद्धता 24 कैरेट होती है तथा इससे आभूषण नहीं बनाए जाते हैं।
प्रश्न 2. गिन्नी के सोने का अधिक उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर– गिन्नी का सोना शुद्ध सोने से अलग होता है। इसमें कुछ अंश तक ताँबे की मिलावट होती है जिससे यह अधिक चमकदार और मज़बूत बन जाता है। इसकी शुद्धता 22 कैरेट होती है। इसका उपयोग आभूषण बनवाने के लिए होता है।
प्रश्न 3. प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर- प्रैक्टिकल आइडियालस्टि वे हैं, जो अपने आदर्शों में व्यावहारिकता रूपी ताँबे का मेल करते हैं और चलाकर दिखाते हैं। वे आदर्श और व्यावहारिकता का समन्वय करके चलते हैं।
प्रश्न 4. गांधी जी प्रैक्टिकल आइडियालिस्ट थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- गांधी जी भली-भाँति जानते थे कि शुद्ध आदर्शों को आचरण में नहीं लगाया जा सकता है फिर भी उनकी दृष्टि आदर्श से हटी नहीं। उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता किए बिना व्यावहारिक आदर्शवाद को अपनाया तथा मर्यादित एवं श्रेष्ठ व्यवहार करते हुए जीवन बिताया।
प्रश्न 5. व्यवहारवादी लोगों की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर- व्यवहारवादी लोग अपनी उन्नति और अपने लाभ-हानि को अधिक महत्त्व देते हैं। वे आदर्शों और मानवीय मूल्यों को महत्त्व नहीं देते हैं। यही नहीं वे समाज के अन्य लोगों की उन्नति या कल्याण की चिंता नहीं करते हैं। उनका व्यवहार लाभ-हानि की गणना से प्रभावित रहता है।
प्रश्न 6. समाज के उत्थान में आदर्शवादियों का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- हर समाज के कुछ शाश्वत मूल्य होते हैं। इनमें सत्य, त्याग, प्रेम, सहभागिता परोपकार आदि प्रमुख हैं। आदर्शवादी लोग ही अपने व्यवहार द्वारा इन मूल्यों को बनाए रखते हैं और आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित कर जाते हैं जिससे समाज में ये मूल्य बने रहते हैं।
प्रश्न 7. ‘व्यवहारवाद’ समाज के लिए किस प्रकार हानिकारी है?
उत्तर- ‘व्यवहारवाद’ अर्थात् ‘लाभ-हानि’ की गणना करके किया गया व्यवहार। इसे अवसरवादिता भी कहा जा सकता है। मनुष्य जब अपने लाभ, उन्नति और भलाई के लिए आदर्शों को त्याग दे तब मानवीय मूल्यों का पतन हो जाता है। ऐसा व्यवहारवाद समाज को पतनोन्मुख बनाता है।
प्रश्न 8. लेखक के मित्र के अनुसार जापानी किस रोग से पीड़ित हैं और क्यों?
उत्तर- लेखक के मित्र के अनुसार जापानी मानसिक रुग्णता से पीड़ित हैं। इसका कारण उनकी असीमित आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए किया गया भागम-भाग भरा प्रयास, महीने का काम एक दिन में करने की चेष्टा, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा आदि है।
प्रश्न 9. ‘टी-सेरेमनी’ की चाय का लेखक पर क्या असर हुआ?
उत्तर- ‘टी-सेरेमनी’ में चाय पीते समय लेखक पहले दस-पंद्रह मिनट उलझन में पड़ा। फिर उसके दिमाग की रफ्तार धीमी होने लगी। जो कुछ देर में बंद-सी हो गई। अब उसे सन्नाटा भी सुनाई दे रहा था। उसे लगने लगा कि वह अनंतकाल में जी रहा है।
प्रश्न 10. ‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा किस स्थिति को कहा है?
उत्तर- ‘जीना इसी का नाम है’ लेखक ने ऐसा उस स्थिति को कहा है जब वह भूतकाल और भविष्य दोनों को मिथ्या मानकर उन्हें भूल बैठा। उसके सामने जो वर्तमान था उसी को उसने सच मान लिया था। टी-सेरेमनी में चाय पीते-पीते उसके दिमाग से दोनों काले उड़ गए थे। वह अनंतकाल जितने विस्तृत वर्तमान में जी रहा था।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. भारत में भी लोगों की जिंदगी की गतिशीलता में खूब वृद्धि हुई है। इसके कारण और परिणाम का उल्लेख ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर कीजिए।
उत्तर- अत्यधिक सुख-सुविधाएँ पाने की लालसा, भौतिकवादी सोच और विकसित बनने की चाहत ने भारतीयों की जिंदगी की गतिशीलता में वृधि की है। भारत विकास के पथ पर अग्रसर है। गाँव हो या महानगर, प्रगति के लिए भागते दिख रहे हैं। विकसित देशों की भाँति जीवन शैली अपनाने के लिए लोगों की जिंदगी में भागमभाग मची है। लोगों के पास अपनों के लिए भी समय नहीं बचा है। यहाँ के लोगों की स्थिति भी जापानियों जैसी हो रही है जो चलने की जगह दौड़ रहे हैं, बोलने की जगह बक रहे हैं और इससे भी दो कदम आगे बढ़कर मनोरोगी होने लगे हैं।
प्रश्न 2. ‘झेन की देन’ पाठ से आपको क्या संदेश मिलता है?
उत्तर- ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।