NCERT Class 10 Hindi Grammar (Hindi Vyakaran) रस एवं उसके प्रकार
रस की परिभाषा
कविता-कहानी को पढने, सुनने और नाटक को देखने से पाठक, श्रोता और दर्शक को जो आनंद प्राप्त होता है, उसे रस कहते हैं।
जिसका आस्वादन किया जाये वही रस है। रस का अर्थ आनन्द है अर्थात् काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से मिलने वाला आनन्द ही रस है। रस की निष्पत्ति विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से होती है। रस काव्य की आत्मा माना गया है।
रस के अंग
रस के चार अंग माने गये हैं-
(i) स्थायी भाव,
(ii) विभाव,
(iii) अनुभाव,
(iv) संचारी भाव
(i) स्थायी भाव
मानव हृदय में स्थायी रूप से विद्यमान रहने वाले भाव स्थायी भाव कहलाते हैं। स्थायी भावों की संख्या नौ-रति,हास,शोक,उत्साह,क्रोध, भय, घृणा, विस्मय एवं निर्वेद मानी गई है। कुछ विद्वान देव विषयक प्रेम और वात्सल्य भाव को स्थायी भाव मानते हैं।
(ii) विभाव
स्थायी भाव को जगाने वाले और उद्दीप्त करने वाले कारण विभाव कहलाते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं—
(क) आलम्बन,
(ख) उद्दीपन।
(क) आलम्बन विभाव-जिस कारण से स्थायी भाव जाग्रत हो. उसे आलम्बन विभाव कहते हैं। जैसे-वन में शेर को देखकर डरने का आलम्बन विभाव शेर होगा।
(ख) उद्दीपन विभाव-जाग्रत स्थायी भाव को उद्दीप्त करने वाले कारण उद्दीपक विभाव कहे जाते हैं। जैसे वन में शेर देखकर भयभीत व्यक्ति के सामने ही शेर जोर से दहाड़ मार दे,तो दहाड़ भय को उद्दीप्त करेगी। अतः यह उद्दीपन विभाव होगी।
(iii) अनुभाव
स्थायी भाव के जाग्रत होने तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय की शारीरिक चेष्टाएँ अनुभाव कहलाती हैं। जैसे वन में शेर को देखकर डर के मारे काँपने लगना, भागना आदि।
अनुभाव पाँच प्रकार के होते हैं –
- कायिक,
- वाचिक,
- मानसिक,
- सात्विक तथा
- आहार्य
(iv) संचारी भाव
जाग्रत स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए कुछ समय के लिए जगकर लुप्त हो जाने वाले भाव संचारी या व्यभिचारी भाव कहलाते हैं। जैसे वन में शेर को देखकर भयभीत व्यक्ति को ध्यान आ जाये कि आठ दिन पूर्व शेर ने एक व्यक्ति को मार दिया था। यह स्मृति संचारी भाव होगा। संचारी भावों की संख्या 33 मानी गई है।
रस के प्रकार
रस नौ प्रकार के माने गये हैं-
- श्रृंगार,
- वीर,
- शान्त,
- करुण,
- हास्य,
- रौद्र,
- भयानक,
- वीभत्स एवं
- अद्भुत
- वात्सल्य रस
कुछ विद्वान भक्ति एवं वात्सल्य को भी रस मानते हैं।
(1) श्रृंगार रस
श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति है। नर और नारी का प्रेम पुष्ट होकर श्रृंगार रस रूप में परिणत होता है। श्रृंगार रस के दो भेद हैं-
(i) संयोग श्रृंगार,
(ii) वियोग श्रृंगार
(i) संयोग श्रृंगार
जहाँ नायक-नायिका के मिलन,वार्तालाप, स्पर्श आदि का वर्णन है। वहाँ संयोग श्रृंगार होता है; जैसे-
“दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुन्दर मन्दिर माहीं।
गावत गीत सबै मिलि सुन्दरि, वेद तहाँ जुरि विप्र पढ़ाहीं॥
राम को रूप निहारति जानकी, कंकन के नंग की परछाहीं।
याते सबै सुधि भूल गयी, कर टेकि रही पल टारत नाहीं॥”
यहाँ राम और सीता का प्रेम (रति) स्थायी भाव है। राम आलम्बन और सीता आश्रय हैं। नग में राम का निहारना, गीत आदि उद्दीपन हैं। कर टेकना,पलक न गिराना अनुभाव हैं। जड़ता, हर्ष,मति आदि संचारी भाव हैं।
(ii) वियोग श्रृंगार
जहाँ नायक-नायिका के वियोग का वर्णन हो वहाँ वियोग श्रृंगार होता है; जैसे-
“भूषन वसन विलोकत सिय के
प्रेम विवस मन कम्प, पुलक तनु नीरज-नयन नीर भये पिय के।”
यहाँ आलम्बन सीता तथा आश्रय राम हैं। सीता के आभूषण, वस्त्र आदि उद्दीपन हैं। कम्पन, पुलक,आँख में आँसू अनुभाव हैं। दर्द,स्मृति संचारी भाव हैं।
(2) वीर रस
युद्ध या कठिन कार्य करने के लिए जगा उत्साह भाव विभावादि से पुष्ट होकर वीर रस बन जाता है। इसका आलम्बन विरोधी होता है, शत्रु की गर्जना, रणभेरी आदि उद्दीपन हैं। हाथ उठाना, वीरता की बातें करना आदि अनुभाव और गर्व,उत्सुकता आदि संचारी भाव हैं; जैसे-
“सौमित्र से घनानन्द का, रव अल्प भी न सहा गया,
निज शत्रु को देखे बिना, तनिक उनसे न रहा गया।
रघुवीर का आदेश ले, युद्धार्थ वे सजने लगे,
रण वाद्य भी निर्घोष करके, धूम से बजने लगे।”
यहाँ मेघनाद आलम्बन तथा लक्ष्मण आश्रय हैं। मेघनाद का रव,रण वाद्य आदि उद्दीपन हैं। लक्ष्मण का युद्ध हेतु तैयार होना आदि अनुभाव और औत्सुक्य,अमर्ष आदि संचारी भाव हैं।
(3) शान्त रस
संसार की असारता, वस्तुओं से विरक्ति के कारण उत्पन्न निर्वेद भाव विभावादि से पुष्ट होकर शान्त रस के रूप में परिणत होता है; जैसे-
“मो सम कौन कुटिल खल कामी।
तुम सों कहा छिपी करुनामय सबके अंतरजामी।
जो तन दियौ ताहि बिसरायौ ऐसौ नोन हरामी।
भरि-भरि द्रोह विषयों को धावत, जैसे सूकर ग्रामी।
सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयनि संग बिसरामी।
श्री हरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की; निसदिन करत गुलामी।
पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।
सूरदास प्रभु अधम-उधारना सुनियै श्रीपति स्वामी॥”
यहाँ भक्त आश्रय तथा विषय वासना, संसार की असारता आलम्बन है। शरीर विस्मृत कर देना,सत्संग में आलस्य आदि उद्दीपन विभाव हैं। द्रोह भरकर विषय को धाना, गुलामी करना आदि अनुभाव और मति, वितर्क, विवोध आदि संचारी भाव हैं।
(4) करुण रस
प्रिय व्यक्ति वस्तु के विनाश या अनिष्ट की आशंका से जागे शोक स्थायी भाव का विभावादि से पुष्ट होने पर करुण रस का परिपाक होता है; जैसे-
“करि विलाप सब रोबहिं रानी।
महाविपति किमि जाइ बखानी।।
सुनि विलाप दुखद दुख लागा।
धीरज छूकर धीरज भागा॥”
इसमें रानियाँ आश्रय, राजा दशरथ की मृत्यु आलम्बन है। मृत्यु की सूचना उद्दीपन है। आँसू बहाना, रोना, विलाप करना, अनुभाव और विषाद, दैन्य, बेहोशी आदि संचारी भाव हैं।
(5) हास्य रस
विचित्र वेश-भूषा, विकृत आकार, चेष्टा आदि के कारण जाग्रत हास स्थायी भाव विभावादि से पुष्ट होकर हास्य रस में परिणत होता है; जैसे
“हँसि हँसि भजे देखि दूलह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।
कहै पद्माकर सु काहु सों कहै को कहा,
जोई जहाँ देखे सो हँसोई तहाँ राह में।।
मगन भएई हँसे नगन महेश ठाड़े,
और हँसे वेऊ हँसि-हँसि के उमाह में।
सीस पर गंगा हँसे भुजनि भुजंगा हँसे।
हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में।”
यहाँ दर्शक आश्रय हैं तथा शिवजी आलम्बन हैं। उनकी विचित्र आकृति, नग्न स्वरूप आदि उद्दीपन हैं। लोगों का हँसना, भागना आदि अनुभाव तथा हर्ष, उत्सुकता, चपलता आदि संचारी भाव हैं।
(6) रौद्र रस
दुष्ट के अत्याचारों, अपने अपमान आदि के कारण जाग्रत क्रोध स्थायी भाव का विभावादि में पुष्ट होकर रौद्र रस रूप में परिपाक होता है; जैसे-
“श्रीकृष्ण के सुन वचन, अर्जन क्रोध से जलने लगा।
सब शोक अपना भूलकर, करतल युगल मलने लगा ||
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा, वे हो गए उठकर खड़े॥”
यहाँ अर्जुन आश्रय, अभिमन्यु के वध पर कौरवों का हर्ष आलम्बन है। श्रीकृष्ण के वचन उद्दीपन विभाव हैं। हाथ मलना, कठोर बोल,उठकर खड़ा होना, अनुभाव तथा अमर्ष,उग्रता, गर्व आदि संचारी भाव हैं।
(7) भयानक रस
किसी भयंकर व्यक्ति, वस्तु के कारण जाग्रत भय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से भयानक रस रूप में परिणत होता है; जैसे-
“एक ओर अजगर सिंह लखि, एक ओर मृगराय।
विकल वटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।।”
यहाँ आश्रय वटोही तथा आलम्बन अजगर और सिंह हैं। अजगर एवं सिंह की डरावनी चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। बटोही (राहगीर) का मूच्छित होना अनुभाव तथा स्वेद, कम्पन, रोमांच आदि संचारी भाव हैं।
(8) वीभत्स रस
घृणापूर्ण वस्तुओं के देखने या अनुभव करने के कारण जगने वाला जुगुप्सा (घृणा) स्थायी भाव का विभावादि के संयोग से वीभत्स रस रूप में परिपाक होता है; जैसे-
“सिर पर बैठो काग आँखि दोऊ खात निकारत।
खींचति जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द उर धारत।।
गिद्ध जाँघ कहँ खोदि-खोदि के मांस उपारत।
स्वान अंगुरिन काटि के खात विरारत।।”
यहाँ युद्ध क्षेत्र या श्मशान आलम्बन तथा दर्शक आश्रय हैं। कौओं का आँख निकालना, स्यार का जीभ खींचना, गिद्ध का मांस नोंचना आदि उद्दीपन हैं। इन्हें देखने पर हृदय की व्याकुलता,शरीर का कम्पन आदि अनुभाव तथा मोह,स्मृति, मूर्छा आदि संचारी भाव हैं।
(9) अद्भुत रस
किसी असाधारण या अलौकिक वस्तु के देखने में जाग्रत विस्मय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अद्भुत रस में परिणत होता है; जैसे-
“अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई गद्-गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।।”
यहाँ माँ यशोदा आश्रय तथा श्रीकृष्ण के मुख में विद्यमान सब लोक आलम्बन हैं। चर-अचर आदि उद्दीपन हैं। आँख फाड़ना,गद-गद स्वर,रोमांच अनुभाव तथा दैन्य,त्रास आदि संचारी भाव हैं।
(10) वात्सल्य रस
सन्तान के प्रति वात्सल्य भाव उपयुक्त विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के सम्मिश्रण के परिणामस्वरूप जब आनन्द में परिणत हो जाता है, तब वहाँ वात्सल्य रस होता है।
उदाहरण-
“जसोदा हरि पालने झलावै।
हलरावै दुलराय मल्हावें, जोइ सोइ कछु गावै।।”
अभ्यास प्रश्न
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में निहित रस का नाम बताइए
1. दूलह श्री रघुनाथ बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माही। ।
गावत गीत सबै मिलि सुंदरि वेद जुआ जुरि विप्र पढ़ाही। |
राम को रूप निहारति जानकी कंगन के नग की परछाहीं॥
याते सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारति नाहीं॥
2. बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौहिं करै भौहन हँसै, देन कहे नरिजाय ॥
3. कहत, नटत रीझत खिझत हँसत मिलत लजियात।
भरे भौन में करत हैं नयनन ही सो बात॥
4. खद्दर कुरता भकभकौ, नेता जैसी चाल।
येहि बानक मो मन बसौ, सदा विहारी लाल॥
5. तन मन सेजि जरै अगि दाहू। सब कहँ चंद भयउ मोहिराहू॥
चहूँ खंड लागे अँधियारा। जो घर नाही कंत पियारा॥
6. भाषे लखन कुटिल भई भौंहें।
रद फुट फरकट नैन रिसौंहें ।
7. जाके प्रिय न राम बैदेही।
तजिए उसे कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही।
तज्योपिता प्रहलाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज बनितनि, भय मुद-मंगलकारी।
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै बहुतक कहौ कहाँ लौं।
तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासो होत सनेह राम पद ऐतो मतो हमारे ॥
8. पौरि के किंवार देत धरै सबै गारिदेत
साधुन को दोष देत प्राति न चहत हैं।
माँगते को ज्वाब देत, बात कहै रोयदेत,
लेत-देत भाज देत ऐसे निबहत है।
मागेहुँ के बंद देत बारन की गाँठ देत
धोती की काँछ देत देतई रहत है।
ऐसे पै सबैई कहै, दाऊ, कछू देत नाहि,
दाऊ जो आठो याम देतई रहत है।
9. राम नाम मणि दीप धरि, जीह देहरी द्वार।
तुलसी बाहर भीतरेहु जो चाहत उजियार ॥
10. ‘यशोदा हरि पालने झुलावे।
हलरावै दुलराइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै।
मेरे लाल को आउ निदरिया काहे न आनि सोवावै।
तू काहे ना बेगि सो आवै तोको कान्ह बुलावै।
11. सखिन्ह रचा पिउ संग हिंडोला। हरियल भूमि कुसुंभी चोला॥
हिय हिंडोल अस डोले मोरा। विरह झुलाइ देत झकझोरा ॥
12. मेरी भवबाधा हरो, राधा नागरि सोय।
जा तन की झांई परे, स्याम हरित दुति होय॥
13. बाने फहराने घहराने घंटा गजन के,
नाही ठहराने, राव राने देश-देश के।
नग भहराने, ग्राम नगर पराने सुनि,
बाजत निसाने शिवराज जू नरेश के।
हाथिन के हौदा उकसाने कुंभ कुंजर के
मौन की भजाने अलि छूटे लट केश के।
दल के दरारन ते कमठ करारे फूटे,
केरा कैसे पात विहराने फन सेस के॥
14. चूरन खावै एडीटर जात,
जिनके पेट पचै नहिं बात।
चूरन पुलिस वाले खाते,
सब कानून हज़म कर जाते।
साँच कहै ते पनही खावै,
झूठे बहुविधि पदवी पावै।
15. निज दरेर सौ पौन पटल फारति फहरावति।
सुर-पुरते अति सघन घोर घन धसि धवरावति॥
चली धार धुधकार धरादिशि काटत कावा।
सगर सुतन के पाप ताप पर बोलति धावा।
16. स्वानों को मिलता दूध भात भूखे बालक अकुलाते हैं।
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते हैं।
युवती की लज्जा वसन बेच जब ब्याज चुकाए जाते हैं।
मालिक तब तेल फुलेलों पर पानी सा द्रव्य बहाते हैं।
17. बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजै।
तब ये लता लगति अति शीतल जबभई विषम ज्वाल की पुंजै।
वृथा बहति जमुना खग बोलत वृथा कमल फूलैं अलि गुंजै।
पवन पानि धनसारि संजीवनि दधिसुत किरन भानु भई भुंजै।
हे ऊधव कहिए माधव सो विरह विरद कर मारत लुंजै।
सूरदास प्रभु को मग जोहत अखियाँ भई बरनि ज्यों गुंजै।
18. चरन कमल बंदी हरि राई ।
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघे, अंधे को सब कुछ दरसाई।
बहिरौ सुनै गूंग पुनि बोलै, रंक चले सिर छत्र धराई ।
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौ तिहि पाई॥
19. हे खग, हे मृग मधुकर श्रेनी
तुम्ह देखी सीता मृग नैनी॥
20. लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए।
देख रूप लोचन ललचाने । हरसे जनुनिज निधि पहचाने।
थके नयन रघुपति छबि देखी। पलकनि हूँ परिहरी निमेषी।
अधिक सनेह देहभइ भोरी। सरद ससिहिं जनु चितव चकोरी।
लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हें पलक कपाट सयानी॥
उत्तर:
- संयोग श्रृंगार रस
- संयोग श्रृंगार रस
- संयोग श्रृंगार रस
- हास्य रस
- वियोग श्रृंगार रस
- रौद्र रस
- शांत रस
- हास्य रस
- शांत रस
- वात्सल्य रस
- वियोग श्रृंगार रस
- शांत रस
- वीर रस
- हास्य रस
- वीर रस
- करुण रस
- वियोग श्रृंगार रस
- शांत रस
- वियोग श्रृंगार रस
- संयोग श्रृंगार रस
बोर्ड परीक्षाओं के प्रश्न
1. (क) काव्यांश का रस पहचानकर उसका नाम लिखिए –
1. कहत नटत रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैनन ही सों बात
2. जगी उसी क्षण विद्युज्ज्वाला,
गरज उठे होकर वे क्रुद्ध;
“आज काल के भी विरुद्ध है
युद्ध-युद्ध बस मेरा युद्ध।”
3. कौरवों को श्राद्ध करने के लिए,
या कि रोने को चिता के सामने,
शेष अब है रह गया कोई नहीं.
एक वृद्धा, एक अंधे के सिवा।
उत्तरः
- संयोग श्रृंगार रस
- भयानक रस
- करुण रस
(ख) काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।
उत्तरः
स्थायी भाव – उत्साह
2. (क) निम्नलिखित काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए –
1. पड़ी थी बिजली-सी विकराल, लपेटे थे घन जैसे बाल।
कौन छेड़े ये काले साँप, अवनिपति उठे अचानक काँप।
2. कहीं लाश बिखरी गलियों में
कहीं चील बैठी लाशों में।
3. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
उत्तरः
- अद्भुत रस
- वीभत्स रस
- रौद्र रस
(ख) निम्नलिखित काव्यांश में कौन-सा स्थायी भाव है?
वह मधुर यमुना कि जिसमें,
स्निग्ध दृग का जल बहा है।
वह मधुर ब्रजभूमि जिसको,
कृष्ण के उर ने वरा है।
उत्तरः
शांत रस
3. (क) निम्नलिखित काव्यांश पढ़कर रस पहचानकर लिखिए –
1. कहत, नटत, रीझत, खिझत
मिलत, खिलत, लजियात
भरे भवन में करते हैं
नैननि ही सौं बात।
2. एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।
3. एक मित्र बोले “लाला तुम किस चक्की का खाते हो?
इतने महँगे राशन में भी, तुम तोंद बढ़ाए जाते हो।”
उत्तरः
- संयोग श्रृंगार रस
- भयानक रस
- हास्य रस
(ख) वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तरःउत्साह
4. (क) काव्य पंक्तियों को ध्यानपूर्वक पढ़कर रस का निर्णय कीजिए।
1. निसदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।
2. हँसि हँसि भाजै देखि दूलह दिगंबर को
पाहुनी जे आँखें हिमाचल के उछाह में।
3. रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न संभार।
उत्तरः
- शांत रस
- हास्य रस
- रौद्र रस
(ख) वीर रस का स्थायी भाव क्या है?
उत्तरः उत्साह
अब स्वयं करें
1. नीचे कुछ रसों के नाम दिए गए हैं। आप उनके स्थायी भावों के नाम लिखिए –
(क) श्रृंगार रस ……………..
(ख) वीर रस ……………..
(ग) हास्य रस ……………..
(घ) करुण रस ……………..
(ङ) वात्सल्य रस ……………..
(च) भयानक रस ……………..
2. नीचे कुछ स्थायी भाव दिए गए हैं। आप उनसे संबंधित रसों के नाम लिखिए –
(क) विस्मय ……………..
(ख) जुगुप्सा ……………..
(ग) हास ……………..
(घ) उत्साह ……………..
(ङ) वात्सल्य ……………..
(च) निर्वेद ……………..
3. नीचे दी गई काव्य पंक्तियों में निहित अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) किलक अरे मैं नेह निहारूँ,
इन दाँतों पर मोती वारूँ ।
(ख) ऐसा यह संसार है, जैसा सेमल फूल।
दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल॥
(ग) हिमाद्रि तुंग शृंग से, प्रबुद्ध शुद्ध भारती।
स्वयं-प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती।
(घ) बसो मोरे नैनन में नंद लाल।
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिए भाल।
मोहनि मूरत साँवली सूरत नैना बने विशाल।
(ङ) क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह, है क्या ही निस्तब्ध निशा;
है स्वच्छंद-सुनंद गंधबह, निरानंद है कौन दिशा?
(च) हा राम! हा प्राण प्यारे!
जीवित रहूँ किसके सहारे ?
(छ) खोज रहे थे भूले मनुको
जो घायल होकर लेटे।
इड़ा आज कुछ द्रवित हो रही,
दुखियों को देखा उसने।
4. नीचे दी गई काव्य पंक्तियों में निहित अलंकारों के नाम लिखिए –
(क) देख समस्त विश्व सेतु से मुख में,
यशुदा विस्मय सिंधु में डूबी।
(ख) निशा काल के चिर अभिशापित
बेबस उन चकवा-चकवी का
बंद हुआ क्रंदन फिर उनमें,
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर, प्रणय कलह छिड़ते देखा है।
(ग) जौ तुम्हारि अनुशासन पाऊँ। कन्दुक इव बह्मांड उठाऊँ॥
काँचे घट जिमि डारौं फोरी। सकऊ मेरु मूसक जिमि तोरी॥
(घ) एक दूसरे से वियुक्त हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होगी
(ड) मदिरारुण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अँगुलियों को वंशी पर फिरते देखा है।
(ड) कबहूँ करताल बजाइ के नाचत, मातु सबै मन मोद भरै
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन मंदिर में बिहरै।
(च) साजि चतुरंग वीर रंग मैं तुरंग चढ़ि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चहत है।
(छ) हाय फूल सी कोमल बच्ची
हुई राख की थी ढेरी।
5. संचारी भाव को व्यभिचारी भाव क्यों कहा जाता है?
6. रस के मुख्य अंग कौन-कौन से हैं? उनके नाम लिखिए।
7. श्रृंगार रस के भेदों के नाम उदाहरण सहित लिखिए।
8. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर निर्देशानुसार लिखिए
(क) स्थायी भाव और संचारी भाव में अंतर स्पष्ट कीजिए।
(ख) रौद्र रस का स्थायी भाव लिखिए।
(ग) जुगुप्सा (घृणा) से कौन-सा रस निष्पन्न होता हैं ?
(घ) वियोग श्रृंगार रस से संबंधित काव्य पंक्तियाँ लिखिए।